एंग्रीबर्ड खिलाड़ी का एक दिन

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  “बस, बहुत हो चुका. बंद करो यह खेल!” – खिलाड़ी की बीवी/मां [आवश्यकतानुसार, अनावश्यक को काट दें] चिल्लाई. “हाँ, बस एक मिनट..” खिलाड़ी मिम...

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“बस, बहुत हो चुका. बंद करो यह खेल!” – खिलाड़ी की बीवी/मां [आवश्यकतानुसार, अनावश्यक को काट दें] चिल्लाई.

“हाँ, बस एक मिनट..” खिलाड़ी मिमियाया.

“तुम खुद किसी दिन एक एंग्रीबर्ड में तबदील हो जाओगे!”

“ब्यूईईई...” खिलाड़ी के मुँह से आवाज निकली और उसने अपने टैबलेट को मेज पर दे मारा और मुँह धोए बिना नाश्ता जैसे तैसे भकोसा और काम पर जाने के लिए बाहर भागा. क्योंकि पतलून के बिना भले ही निकल जाए, मगर नाश्ते के बिना वो घर से किसी सूरत नहीं निकल सकता था. एंग्रीबर्ड का एक और लेवल पार करने के लालच में वो पहले ही बहुत लेट हो चुका था.

जनता, वैसे तो होशियार है, मगर कुछ बाकी लोगों के लिए यहाँ बता देना जरूरी है कि एंग्रीबर्ड एक खेल है जिसे आईपैड, टैबलेट और मोबाइल उपकरणों पर खेला जाता है. दरअसल कुछ पंडितों का तो यहां तक मानना है कि कइयों के पास इस तरह के उपकरण और गॅजेट होने का असली और प्रमुख कारण एंग्रीबर्ड ही है. तो एंग्रीबर्ड में तमाम किस्म, रंग और पावर के तरह तरह के बर्ड होते हैं. उनकी दुनिया में कुछ पिग्गी जैसे हरे रंग के, विविध आकारों के जानवर भी होते हैं जो एंग्रीबर्ड के अंडों को, पता नहीं क्यों, चुरा लेते हैं. इससे एंग्रीबर्ड और एंग्री हो जाते हैं. पिग्गी गुर्राते बहुत हैं, और अपने सिर को बचाने के लिए हैट पहनते हैं. प्रत्येक एंग्रीबर्ड को अधिक से अधिक पिग को मारना होता है ताकि अगले लेवल पर पहुँचा जा सके. पिग होशियार होते हैं जो नाना प्रकार के स्ट्रक्चर में छुपते छुपाते हैं. जब एंग्रीबर्ड स्ट्रक्चर को विस्फोट से उड़ाते हैं, तो पिग मरते हैं, और एंग्रीबर्ड खुशी मनाते हैं. और खिलाड़ी अगले लेवल पर पहुँचते हैं. यदि पिग बच जाते हैं तो खिलाड़ी हार जाते हैं और उस लेवल को फिर से पूरा करने की कोशिश करते हैं. और प्रायः हर बार यही होता है. इसी लिए बर्ड हमेशा एंग्री ही बने रहते हैं. और खिलाड़ी भी. और चेन रिएक्शन के तर्ज पर खिलाड़ी के आसपास के लोग भी.

जो भी हो, आम दिनों की तरह खिलाड़ी काम पर लेट हो चुका था. वह लेवल पार नहीं कर पाने के कारण पहले ही एंग्री हो चुका था. उसका एंग्रीपना, आधे-अधूरे खेल को, जब वह लेवल पार करने ही वाला था, अल्टीमेटम मिलने पर छोड़ने के कारण और बढ़ गया था. चौराहे पर लालबत्ती यलो हो चुकी थी, मगर उसने गाड़ी जम्प मार दी. एक कार और तीन मोटरसायकलें ठुकते ठुकते रह गईं. वो खिलाड़ी था, एंग्रीबर्ड नहीं, तो सिर्फ अपनी गाड़ी लालबत्ती में जम्प मार सकता था. उड़ा तो नहीं सकता था.

मगर, ट्रैफ़िक पुलिस वालों की मुस्तैदी आज के लिए ही थी शायद. लालबत्ती जम्प करने के जुर्म में उसे रोक लिया गया. चालान काटने के लिए पुलिसिया मोटी सी रसीद बुक उसके सामने लहरा रहा था. ठीक वैसे ही जैसे एंग्रीबर्ड के सामने पिग्गी अपने हैट हिलाते हैं. कुछ करारे नोट रूपी बम फेंककर वह इस ब्रेक-लेवल को जल्द ही पार कर गया.

गाड़ी चलाते वक्त वो सोच रहा था- एंग्री बर्ड की लाखों खिलाड़ियों की आल-टाइम लिस्ट में उसका नंबर दस-लाख-सात-हजार-अट्ठावनवां है. यदि वो सावधानी से मेहनत करे तो जल्दी ही कई सीढ़ियाँ पार कर टॉप सूची में पहुँच सकता है. ऑफ़िस में कार पार्किंग की जगह ढूंढने में उसे बड़ी मुश्किल हुई. वो सोच रहा था कि यदि उसके पास एंग्रीबर्ड का पावर होता तो सामने प्रिविलेज पार्किंग में खड़ी बीएमडबल्यू और मर्सीडीज बैंज की कतारों को डिस्ट्रॉय कर देता और अपनी गाड़ी वहीं लगाता.

लेट होने पर खिलाड़ी का बॉस पहले ही भुनभुनाया हुआ था. पिछले एंग्रीबर्ड लेवलों को क्रास करने के फेर में खिलाड़ी अपने बॉस को दर्जनों बार गाड़ी के टायर पंचर होने, लालबत्ती पर जाम होने, रिश्तेदार के मरने अथवा बीमार पड़ने और खुद के सर्दीबुखार में होने के बहाने बता चुका था. अब तक या तो कोई बहाना बचा नहीं था या कोई बहाना काम ही नहीं करता था. बॉस ने खिलाड़ी को असंभव सा टारगेट पूरा करने के लिए थमा दिया.

“बॉम! ज्वोट! क्वापी!” खिलाड़ी ने कल्पना में अपने आप को एंग्रीबर्ड के रूप में पाया और बॉस को पिग के रूप में और, उस पर अपने हथियार और बम फेंके. मगर बॉस होशियार था. टारगेट थमाकर, बच-बचाकर चला गया था. इधर खिलाड़ी ने अपने हथियार चले. काम को कल की पेंडिंग में डाला और एंग्रीबर्ड का एक और लेवल पूरा करने में काम का पूरा समय लगा दिया. अपने क्यूबिकल में चतुराई से छुपते छुपाते तमाम उपायों से उसने खेल खेला.

दिन भर काम और वापस भारी भरकम ट्रैफ़िक से जूझकर खिलाड़ी वापस घर आया तो अपने आप को एक धीमे भारी भरकम लाल गोले के रूप में पाया जिसमें जान ही नहीं बची थी. उसे थोड़ा विश्राम चाहिए था. अगले दिन एंग्रीबर्ड का एक और लेवल जो पार करना था!

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{फार्च्यून - 21 मार्च 2011 में प्रकाशित स्टेनले बिंग के लेख से प्रेरित}

COMMENTS

BLOGGER: 8
  1. मैंने ये गेम कभी नहीं खेला है और ना ही ज्यादा रूची है लेकिन आपका चित्रण खिलाड़ी की वास्तविक मनोदशा को बयाँ करता है |

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  2. वाह वाह, गजब की सच्चाई है इसमें. :)

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  3. Game ko aadat mein shumaar kar chuke logon ki manodasha ko bakhubi vyakt karti hai aapki Post.

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  4. पढ़ कर नशा होने लगा.

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  5. अखबार पढना, नेट सर्फिंग और ब्‍लागिंग की तरह यह भी एक नशा है।

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  6. हा हा मजेदार कहानी। मेरे साथ यह अक्सर होता है बस ऐंग्रीबर्ड की जगह दिमाग में टूल, लेख आदि होते हैं।

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