जनता जब ज्यादा ही चिल्लाने लगी कि मेरा धर्म तेरे धर्म से ज्यादा सफेद तो बात चाँद पर भी पहुँच गई और आखिर इंस्पेक्टर मातादीन* से रहा नहीं ...
जनता जब ज्यादा ही चिल्लाने लगी कि मेरा धर्म तेरे धर्म से ज्यादा सफेद तो बात चाँद पर भी पहुँच गई और आखिर इंस्पेक्टर मातादीन* से रहा नहीं गया तो धरती पर आकर निकल पड़ा जेबी झूठ पकड़ने की मशीन और सच उगलवाने का नार्को टैस्ट में काम आने वाला सीरम-इंजैक्शन लेकर. अब तो जनता से उसका सही धर्म उगलवाना ही पड़ेगा.
वो अभी निकला ही था कि सामने ट्रैफ़िक जाम मिला. पता चला कि किसी वीवीआईपी नेता के काफ़िले के लिए ट्रैफ़िक रोका गया है. अब वो तो सुपर कॉप इंस्पेक्टर मातादीन था. उसने अपना डंडा अड़ाया और वीवीआईपी नेता को रोका. उससे बोला – महामहिम, मेरे कन्ने ये झूठ पकड़ने की मशीन भी है और ये नार्को टेस्ट वाला इंजेक्शन. इधर धर्म के नाम पर दुनिया में बड़ा बावेला मच रहा है, दंगे-फ़साद हो रहे हैं, कर्मकाण्ड-जेहाद हो रहे हैं. तो, मेहरबानी होगी, अब आप सच-सच बता दें कि आपका धर्म क्या है?
वीवीआईपी नेता पसीने पसीने हो गया. उसकी जुबान से अबतक, जब से वो नेता बना था कभी सच तो निकला ही नहीं था. पर उसे पता था कि जुबान से सच तो निकलना ही है – चाहे झूठ पकड़ने की मशीन से चाहे सच उगलवाने के इंजेक्शन से. तो वो सचमुच में सच बयान करने लगा –
“भई, मेरा धर्म तो नेतागिरी है. ऐन-कैन-प्रकारेण वोट कबाड़ने का धर्म. वोटर मेरा भगवान और इलैक्शन मेरा त्यौहार. चुनाव जीतने के लिए मुझे अपने घर में आग लगाना पड़े, यहाँ तक कि जेहाद के नाम पर अपनी खुद की दाईं आँख भी फोड़नी पड़े तो वो मैं करूंगा. इसे ही मेरा धर्म समझ लें.”
इंस्पेक्टर मातादीन कन्फ़्यूजिया गया. ये साला कौन सा नया धर्म आ गया. पर मशीन इसे सच बता रही थी. वो हिचकिचाते हुए आगे बढ़ा. सामने पीली बत्ती वाली कार में सिविल सेवा का एक आला अफ़सर चौराहे के लालबत्ती की परवाह किए बगैर चला आ रहा था. सुपर कॉप इंस्पेक्टर मातादीन ने डंडा चमकाया तो अफ़सर भुनभुनाता हुआ आया. अफ़सर के मन में भाव थे – बाद में देख लूंगा तुझे बेटा! ऐसी जगह फ़िंकवाऊंगा कि बस तनख्वाह में गुजारा करता फिरेगा!
इंस्पेक्टर मातादीन ने अफ़सर को आदतन सैल्यूट दागा और फिर बोला – श्रीमान् मेरे पास झूठ पकड़ने की मशीन है और सच उगलवाने का इंजेक्शन. मैं जनता का असली धर्म पता करने निकला हूं. आप भी जनता का हिस्सा हैं, भले ही आप अपने आप को उससे कुछ ऊपर की चीज मानते हों. तो श्रीमान्, जरा बताने का कष्ट करेंगे कि आपका धर्म क्या है?
अफ़सर चकराया. आजतक किसी ने उससे प्रश्न पूछने की जुर्रत नहीं की थी. एक जमाने से वही लोगों से तमाम फ़ालतू के सर्कुलरों के जरिए बेकार के प्रश्न पूछता रहा था. मगर उसे झूठ पकड़ने की मशीन और सच उगलवाने का इंजेक्शन दिख रहा था. वो चालू हो गया –
“भई, मेरा धर्म तो पैसा कमाना है. भ्रष्टाचार के जरिए रेत में से तेल निकालना. हम सिविल सेवा में आए ही इसलिए हैं. हमें तो ट्रेनिंग के दौरान ही सिखा दिया गया था कि रेत में से तेल कैसे निकालते हैं. सरकारी योजनाओं से, जनता की जेब से पैसा निकालना और उसे सुरक्षित इन्वेस्ट करना ही हमारा धर्म है.”
इंसपेक्टर मातादीन का दिमाग भिन्नाया. ये और कौन सा नया धर्म आ गया है. कभी इसके बारे में नहीं सुना. वो अफ़सर को सेल्यूट लगाकर वापस मुड़ा तो सीधे एक बुद्धिजीवी से टकरा गया. बुद्धिजीवी ने इंस्पेक्टर मातादीन को पहचान लिया और उससे पूछा कि वो चाँद से कब लौटा. इंसपेक्टर मातादीन ने बुद्धिजीवी को हड़काया और बोला कि अपने काम से काम रखे और ये बताए कि उसका धर्म क्या है. और ध्यान रहे कि सच बताए. झूठ पकड़ने की मशीन और सच उगलवाने का इंजेक्शन उसके पास है.
बुद्धिजीवी ने इंस्पेक्टर मातादीन को बताया कि वो तो बे-धर्मी है. उसका कोई धर्म नहीं है. अगर इंसानियत नाम का कोई धर्म होता तो जरूर वो उसका धर्म हो सकता था. मगर आजकल साली इंसानियत नाम की चीज भी ग़ायब हो चली है. बुद्धिजीवी इस बात को याद कर बड़ा दुःखी प्रतीत हो रहा था. इधर इंस्पेक्टर मातादीन की झूठ पकड़ने की मशीन का कांटा 100% सही से भी आगे ओवरशूट कर रहा था. इंसपेक्टर मातादीन का दिमाग एक बार फिर चकराया. बुद्धिजीवी दुःखी मन से इंसानियत धर्म के नाम पर भाषण झाड़ने लगा था.
इंसपेक्टर मातादीन बुद्धिजीवी से जैसे तैसे पिंड छुड़ाकर भागा और सीधे झुग्गी बस्ती में पहुँच गया. उसने सुन रखा था कि भारत की अधिकांश जनता यहीं रहती है. जनता का असली धर्म यहीं पता चलेगा. वहां पहुँचकर उसने अपना डंडा फटकारा और सबसे पहले सामने पड़ने वाले आदमी को बुलाया. वो पच्चीस साल का जवान था, मगर था हड्डियों का ढांचा. गाल पिचके ऐसे हुए, आँखें ऐसी धंसी हुई – मानो पिचहत्तर साल का बुढ़ऊ हो. इंसपेक्टर मातादीन ने डंडा फटकारा और हुड़काया – बता, तेरा धर्म क्या है बे?
इंसपेक्टर मातादीन को पता था कि इसे झूठ पकड़ने की मशीन और सच उगलवाने के इंजेक्शन का भय दिखाना बेकार है. इस किस्म की जनता तो वर्दी वाले किसी भी आदमी को देख कर भय में आ जाती है और खुद ब खुद सच उगलने लगती है.
वो आदमी अपनी कॉपती आवाज में बोला – “माई-बाप! हमें क्या पता हमारा धर्म क्या है. आप ही बता दें. हमें तो अपनी रोजी-रोटी कमाने से ही फुर्सत नहीं मिलती. जिस दिन कभी फुर्सत मिलती भी है तो दारू सुड़क लेते हैं. जब ज्यादा ही फुर्सत मिलती है – यानी रोजी नहीं मिलती तो पेट पर कपड़ा बाँध कर सो जाते हैं. यदि आप इसे ही हमारा धर्म समझते हैं तो...”
बस, बस, चुपकर! इंसपेक्टर मातादीन का दिमाग पूरी तरह भिन्ना गया. “जनता साली झूठी है. वो झूठ-मूठ का धर्म निभाने के चक्कर में बेवजह दंगा फसाद करती है. आज उसका सच पकड़ में आ ही गया.” वो मन ही मन भुनभुनाया और वापस चाँद पर जा पहुँचा.
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चित्र – साभार, मप्र उत्सव 2009.
* – इंस्पेक्टर मातादीन – व्यंग्यकार हरिशंकर परसाईं रचित कैरेक्टर है.
"इंस्पेक्टर मातादीन चांद पर" व्यंग्य लेख 'हरिशंकर परसाई' ने लिखा है.उसमें बताया गया है कि कैसे भारत का इंस्पेक्टर चांद पर जाता है और वहां शून्य अपराधिक दर देखकर परेशान हो जाता है.पुलिस महकमें को 'सुधारने'के लिये मातादीन जी कई तरकीबें अपनाते हैं जिसमें कुछ है:-
१.पुलिस का वेतन कम करना.
२.पुलिस लाइन में हनुमान मंदिर बनवाना.
३.बिना अपराध लोगों को सजा दिलवाना.
इस तरह के प्रयासों जल्द ही मातादीन जी को आशातीत सफलता मिलती और शीघ्र अपराध दर बढ़ती है.
“भई, मेरा धर्म तो नेतागिरी है. ऐन-कैन-प्रकारेण वोट कबाड़ने का धर्म. वोटर मेरा भगवान और इलैक्शन मेरा त्यौहार...
हटाएंBahoot Khoob
वाकई रोजी रोटी से परे जनता के पास कहाँ फुर्सत है कि वह धर्म निभाने से पहले रोटी से निपटना चाहती है.
हटाएंsab apana apan dharm nibhane mi mast hai ji...
हटाएंसच्चाई तो आईने की तरह साफ हो गई. मातादिन चाँद पर ही रहे तो ठीक है.
हटाएंहे हे हे हे हे. एकदम झकास व्यंग्य. क्या आप हरिशंकर परसाई जी के व्यग्यों का कोई वेब लिंक उपलब्ध करवा सकते हैं?
हटाएंमातादीन से जरा ब्लोगरों को भी पूछ्वाइये
हटाएंअंकुर जी,
हटाएंयहाँ पर हरिशंकर परसाईं के व्यंग्य संकलन की एक हिन्दी पीडीएफ़ किताब है -
http://www.scribd.com/doc/7220341/Harishankar-Parsai-
मातादीन को ब्लोगर भी मिला जब उससे मातादीन ने पूछा कि तेरा धर्म क्या है ?
हटाएंब्लोगर बोला - मेरा धर्म तो ऐसी पोस्ट लिखना है जिससे कोई विवाद फैले और उसका शीर्षक ज्यादा से ज्यादा पाठक खींचने में सक्षम हो और उस विवादस्पद पोस्ट पर ढेरों टिप्पणियाँ मिले मुझे इस बात का कोई फर्क नहीं पड़ता कि मेरी पोस्ट से किसी का दिल दुखे या सांप्रदायिक तनाव फैले या कुछ भी हो | मेरा धर्म तो बस अपने ब्लॉग की टी आर पी बढाने का है |
इस टिप्पणी को सभी ब्लोगर्स पर नहीं माना जाए |
आदरणीय,
हटाएंआपका धर्म तय करना हमारे लिए मुश्किल हो रहा है, आप कम्प्यूटर एक्सपर्ट हैं, काटूनिस्ट है, कवि है, व्यंजलकार हैं, व्यंग्यकार हैं, क्या हैं ??????????? बहरहाल जोरदार व्यंग्य साधा है, साधुवाद। आशा है आगे भी ऐसे ही व्यंग्य आपकी लेखनी से पढ़ने को मिलते रहेंगे।
प्रमोद ताम्बट
भोपाल
www.vyangya.blog.co.in
http://vyangyalok.blogspot.com/
बहुत बढिया बन पडा है यह व्यंग । बेहतरीन लिखा है आपने । मनोरंजक और मारक । बधाई ।
हटाएंजनता का धर्म ...अफसरों का धर्म ...नेताओं का धर्म ...सबसे बढ़कर इंसपेक्टर मातादीन का धर्म ..सबकी अपनी अपनी परिभाषा है धर्म की ...
हटाएंकरार व्यंग्य ...!!
करारा ..!!
हटाएंधर्म उस बड़ी सी हाथी के समान है जिसके अलग-अलग हिस्सों को सात अन्धे छूते है और सात अलग अलग परिभाषाएं दे डालते हैं। बहरहाल धर्म वह नहीं है जिसके लिए दंगे फसाद होते हैं और आदमी आदमी की जान ले लेता है।
हटाएंबहुत अच्छा व्यंग्य साधा है आपने। बधाई।
रवि जी , मार्गदर्शन के लिये आभार ,
हटाएंएक और चीज पर और आपका मार्गदर्शन चाहिए ,हिंदी ब्लॉग पढ़ पढ़ कर मुझे भी एक ब्लॉग बनाने की सूझी ,
और मैंने बनाया भी , पर मैंने उसमे टेम्पलेट गूगल का नहीं लिया ,
अब उसे मैंने तीन बार बनाया और तीनो बार डिलीट भी किया लेकिन तीनो बार एक ही समस्या आ रही है,
मेरी साइड बार पोस्ट के नीचे चली जाती है देखे :- http://bhaskartimes.blogspot.com
इसे सही करने का कोई उपाय और ये समस्या क्यों हो रही है ये भी कृपया बताएं
Sun जी,
हटाएंआपने लेआउट में जाकर इन पेज एलिमेंटों को साइड बार में लेजाकर फिर टैम्प्लेट सहेजा या नहीं? क्योंकि कुछ पेज एलिमेंट तो साइड बार में हैं, कुछ नहीं. शायद बाद में जोड़े गए पेज एलिमेंट नीचे आ रहे हैं?
मुझे लगता है कि यह टैम्प्लेट की समस्या हो सकती है. कोई और दूसरा टैम्प्लेट ट्राई कर देखें.
तुरंत प्रतिउत्तर के लिए आभार .
हटाएंलेकिन मैंने दो - तीन टेम्पलेट बदल बदल कर देखे पर समस्या ज्यो की त्यों है ,
क्या ब्लोगर इतना सेंसेटिव होता है, की थोड़े से बदलाव से ही करप्ट हो जाता है
कारण की मैंने काफी सारे फेर-बदल करे थे
धर्म का उद्देश्य - मानव समाज में सत्य, न्याय एवं नैतिकता (सदाचरण) की स्थापना करना ।
हटाएंव्यक्तिगत धर्म- सत्य, न्याय एवं नैतिक दृष्टि से उत्तम कर्म करना, व्यक्तिगत धर्म है ।
सामाजिक धर्म- मानव समाज में सत्य, न्याय एवं नैतिकता की स्थापना के लिए कर्म करना, सामाजिक धर्म है । ईश्वर या स्थिर बुद्धि मनुष्य सामाजिक धर्म को पूर्ण रूप से निभाते है ।
धर्म संकट- सत्य और न्याय में विरोधाभास की स्थिति को धर्मसंकट कहा जाता है । उस स्थिति में मानव कल्याण व मानवीय मूल्यों की दृष्टि से सत्य और न्याय में से जो उत्तम हो, उसे चुना जाता है ।
धर्म को अपनाया नहीं जाता, धर्म का पालन किया जाता है । धर्म के विरुद्ध किया गया कर्म, अधर्म होता है ।
व्यक्ति के कत्र्तव्य पालन की दृष्टि से धर्म -
राजधर्म, राष्ट्रधर्म, मनुष्यधर्म, पितृधर्म, पुत्रधर्म, मातृधर्म, पुत्रीधर्म, भ्राताधर्म इत्यादि ।
धर्म सनातन है भगवान शिव (त्रिदेव) से लेकर इस क्षण तक व अनन्त काल तक रहेगा ।
धर्म एवं उपासना द्वारा मोक्ष एक दूसरे आश्रित, परन्तु अलग-अलग है । ज्ञान अनन्त है एवं श्रीमद् भगवद् गीता ज्ञान का सार है ।
राजतंत्र में धर्म का पालन राजतांत्रिक मूल्यों से, लोकतंत्र में धर्म का पालन लोकतांत्रिक मूल्यों के हिसाब से किया जाता है ।
कृपया इस ज्ञान को सर्वत्र फैलावें । by- kpopsbjri
धर्म का अर्थ - मानव समाज में सत्य, न्याय एवं नैतिकता (सदाचरण) की स्थापना करना ।
हटाएंव्यक्तिगत धर्म- सत्य, न्याय एवं नैतिक दृष्टि से उत्तम कर्म करना, व्यक्तिगत धर्म है ।
सामाजिक धर्म- मानव समाज में सत्य, न्याय एवं नैतिकता की स्थापना के लिए कर्म करना, सामाजिक धर्म है । ईश्वर या स्थिरबुद्धि मनुष्य सामाजिक धर्म को पूर्ण रूप से निभाते है ।
धर्म संकट- सत्य और न्याय में विरोधाभास की स्थिति को धर्मसंकट कहा जाता है । उस स्थिति में मानव कल्याण व मानवीय मूल्यों की दृष्टि से सत्य और न्याय में से जो उत्तम हो, उसे चुना जाता है ।
धर्म को अपनाया नहीं जाता, धर्म का पालन किया जाता है । धर्म के विरुद्ध किया गया कर्म, अधर्म होता है ।
व्यक्ति के कत्र्तव्य पालन की दृष्टि से धर्म -
राजधर्म, राष्ट्रधर्म, मनुष्यधर्म, पितृधर्म, पुत्रधर्म, मातृधर्म, पुत्रीधर्म, भ्राताधर्म इत्यादि ।
धर्म सनातन है परमात्मा शिव से लेकर इस क्षण तक व अनन्त काल तक रहेगा ।
धर्म एवं ‘उपासना द्वारा मोक्ष’ एक दूसरे पर आश्रित, परन्तु अलग-अलग विषय है । ज्ञान अनन्त है एवं श्रीमद् भगवद् गीता ज्ञान का सार है ।
राजतंत्र में धर्म का पालन राजतांत्रिक मूल्यों से, लोकतंत्र में धर्म का पालन लोकतांत्रिक मूल्यों से होता है ।
कृपया इस ज्ञान को सर्वत्र फैलावें ।
सत्य, न्याय और नीति को धारण करके समाज सेवा करना पुलिस का व्यक्तिगत धर्म है । अपराधियों को पकड़ना पुलिस का सामाजिक धर्म है, चाहे पुलिस को अपराधी को पकड़ने के लिए असत्य एवं अनीति का सहारा क्यों न लेना पड़े ।
हटाएंवर्तमान युग में पूर्ण रूप से धर्म के मार्ग पर चलना किसी भी आम मनुष्य के लिए कठिन कार्य है । इसलिए मनुष्य को सदाचार एवं मानवीय मूल्यों के साथ जीना चाहिए एवं मानव कल्याण के बारे सोचना चाहिए । इस युग में यही बेहतर है ।
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