चाह नहीं मैं नेता मंत्री के ऊपर फेंका जाऊँ, चाह नहीं प्रेस कान्फ्रेंस में किसी पत्रकार को ललचाऊँ, चाह नहीं, किसी समस्या ...
चाह नहीं मैं नेता मंत्री के
ऊपर फेंका जाऊँ,
चाह नहीं प्रेस कान्फ्रेंस में
किसी पत्रकार को ललचाऊँ,
चाह नहीं, किसी समस्या के लिए
हे हरि, किसी के काम आऊँ
चाह नहीं, मजनूं के सिर पर,
किसी लैला से वारा जाऊँ!
मुझे पहन कर वनमाली!
उस पथ चल देना तुम,
संसद पथ पर देस लूटने
जिस पथ जावें वीर अनेक।
(श्रद्धेय माखनलाल चतुर्वेदी की आत्मा से क्षमायाचना सहित,)
(चित्र – साभार : सीएवीएस संचार)
वैसे, एक लट्ठ की मार्मिक अभिलाषा भी आप यहाँ पढ़ सकते हैं.
चले लुटेरे संसद पथ-
जवाब देंहटाएंपर जूता साथ नही देता।
पत्रकार से उलझे नेता,
बूता साथ नही देता।
सुन्दर रचना है....
जवाब देंहटाएंbehtarin bahut bahiya,jute ki bhi koi chah hoti hai apni.
जवाब देंहटाएंशानदार अभिलाषा है। इस पर सारा देश निसार होने को तैयार है।
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तस्लीम
साइंस ब्लॉगर्स असोसिएशन
वाह वाह ! अब तो आपके द्वारा लिखी हुई 'जूते की आत्मकथा' भी पढने का मन हो रहा है ! एक श्रृंखला लिख डालिए.
जवाब देंहटाएंJuton ki pida bhi chipi hai in panktiyon mein.
जवाब देंहटाएंबहुत खूब...। :)
जवाब देंहटाएंबहुत अच्छे.
जवाब देंहटाएंबहुत बढिया!!
जवाब देंहटाएंअच्छा है:)
जवाब देंहटाएंमुझे पहन कर वनमाली!
जवाब देंहटाएंउस पथ चल देना तुम,
संसद पथ पर देस लूटने
जिस पथ जावें वीर अनेक।
बढिया पैरोडी ---बधाई।
जवाब देंहटाएंबढिया है।
जवाब देंहटाएंमाखन लाल जी की आत्मा आशीष दे रही होगी आपको!!! आजकल के नेताओं के यही पुष्प हैं. :)
जवाब देंहटाएंgazab kar diya aapne.....
जवाब देंहटाएंऔर अगर श्रद्धेय माखनलाल चतुर्वेदी की आत्मा ने क्षमायाचना स्वीकार नहीं की, तो क्या विकल्प है ?
जवाब देंहटाएंजय हो .... जय हो बडे भईया ।
जवाब देंहटाएंभंदई पनही अप गोड ले मूड कोती जाये चाहत हे, दुनिया बदलत हे, अब पागा के जघा पनही ह नेता मन के मूडी म बने सुघ्घर फबही तईसे लागत हे।
दु:ख की बात कि यह कविता पहले नहीं पढ़ पाया। जूते से उसकी अभिलाषा भी जान लेनी चाहिए।
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