इंटरनेट पर विचरण करते-करते हिन्दी की एक उम्दा साइट पर निगाह पड़ी. साइट का पता है – http://unmukt.com . इस साइट की सारी सामग्री उन्मुक्त...
इंटरनेट पर विचरण करते-करते हिन्दी की एक उम्दा साइट पर निगाह पड़ी. साइट का पता है – http://unmukt.com.
इस साइट की सारी सामग्री उन्मुक्त जी के चिट्ठों की है. तो, प्रकटत: यही लगा कि उन्मुक्त जी ने डोमेन नाम खरीद लिया है और अपना वेबसाइट भी बनाकर लांच कर दिया है. परंतु नाम का शीर्षक उन्मुक्त की जगह उनमुक्त दिखा रहा था. इससे लगा कि मामला कहीं गड़बड़ है, और कोई क्यों अपना नाम गलत लिखेगा?
तो, मैंने आनन-फानन में उन्मुक्त जी को बधाई देने के विचार को त्यागा और, उनसे पूछा कि भई माजरा क्या है?
उन्होंने स्पष्ट किया कि उन्होंने कोई डोमेन-वोमेन नहीं खरीदा है और न ही ऐसी कोई योजना है. अलबत्ता प्रतीत होता है कि इस साइट को उनके चिट्ठे के किसी प्रशंसक ने बनाया है और वे उसमें उनकी सारी सामग्री को प्रकाशित कर रहे हैं. उन्होंने यह भी स्पष्ट किया कि वैसे भी उनकी रचनाएँ कॉपीलेफ़्टेड रहती हैं, और उनका उपयोग किसी भी रूप में किया जा सकता है – नाम व कड़ी दे दें तो उत्तम. और, तमाम दीगर चिट्ठाकारों के विपरीत, उन्मुक्त जी ने कहा कि उन्हें खुशी हुई और गर्व महसूस हुआ कि किसी प्रशंसक ने उनके चिट्ठों पर लिखी सामग्री इस तरह साइट बना कर प्रकाशित करने लायक समझा गया. – शायद हमें उन्मुक्त जी से यह सीख नहीं लेनी चाहिए जो हम छोटी-मोटी चिट्ठाचोरी के नाम पर हम चिल्ल-पों मचाने लगते हैं और अपने चिट्ठों में सामग्री चोरी रोकने हेतु “बिनाकाम” का ताला डाल रखते हैं?
उन्मुक्त.कॉम देखने में साफ सुथरी और अच्छे इरादों की साइट प्रतीत हो रही है, क्योंकि चोरी के माल छापने वाले एडसेंसिया चिट्ठों जैसा रूप रंग इसका नहीं है, और न ही इसमें किसी तरह का विज्ञापन आदि है.
तो, भला जो प्रशंसक अपने जेब से नांवा खर्च कर उन्मुक्त जी के नाम का डोमेन पंजीकृत करवा कर, साइट बना कर उनकी रचनाएँ उन्हीं के नाम से पुनः प्रकाशित करेगा, वह भी प्रकटतः बिना किसी लाभ के, तो उसकी प्रशंसा ही की जानी चाहिए? इससे यह भी सिद्ध होता है कि उन्मुक्त जी की रचनाएँ काबिले तारीफ और काम की होती हैं इसीलिए इनकी रचनाओं को एकत्र करने का प्रयास भी किया गया है.
डोमेनटूल्स से उन प्रशंसक महोदय का अता-पता हासिल करने की कोशिश की गई तो सिर्फ ईमेल और फोन नंबर हासिल हुआ. ईमेल से उन्हें इंगित किया गया कि भइए, आपने अपने पसंदीदा चिट्ठाकार को जो सम्मान दिया है, उसके तो आभारी हैं, परंतु नाम की वर्तनी जरा ठीक कर देते तो उत्तम होता. और उन प्रशंसक महोदय ने तत्परता दिखाते हुए वह वर्तनी घंटे भर में ठीक भी कर दी.
पर, प्रशंसक महोदय, लगे हाथ जरा ये भी बताते जाएं कि इंटरनेट एक स्थल पर प्रकाशित सामग्री को दोबारा जस-का-तस अन्यत्र छाप कर अंतत: इसमें डुप्लीकेट सामग्री डालकर उसमें जंक की वृद्धि तो नहीं कर रहे? कल को यदि उन्मुक्त जी के दो दर्जन प्रशंसक पैदा हो गए और सभी ने उनके चिट्ठों की सामग्री को इसी तरह के छः दर्जन प्रकल्पों पर डालने लगें तब?
जो भी हो, प्रशंसक महोदय, क्या आप सबके सामने आएंगे? काश हमें भी उन्मुक्त जी के प्रशंसक जैसा कोई मिलता? अभी तक तो हमारे चिट्ठों की चोरी एडसेंसिया फायदे के बिना पर होती रही है...
यानी चिट्ठों पर भी साहित्यिक लिखा जा रहा है!?
हटाएंvah aisa bhi hota hai dhany hain hamare blogrs jai ho
हटाएंउन्मुक्त-हृदय उन्मुक्त जी के उन मुक्त प्रशंसक की सजगता को नमन कि उन्होंने इतनी तत्परता से उन्मुक्त जी का नाम सही कर दिया ।
हटाएंआप खोजते रहिये, और भी बहुत से प्रशंसक छुपे पड़े होंगे ।
एक ही जैसी सामग्री यदि इन्टरनेट पर अधिक स्थानों पर उपलब्ध होती है इससे निश्चिततया मूल लेखक की सर्च रेकिंग पर भी प्रभाव पड़ सकता है.
हटाएंउन्मुक्त जी के सारे लेख एक साईट पर डालना अच्छा विचार है लेकिन ये श्री उन्मुक्त द्वारा ही किया जाता तो बहुत अच्छा होता.
उन्मुक्त जी के लेख बहुत अच्छे होते हैं, मैं भी उन्मुक्त जी को बधाई दे चुका हूं.
रवि जी, आप चेतिये, अभी तुरंत raviratlami.com को बुक करा डालिये. फिलहाल तो यह उपलब्ध है. वरना कभी भी आपका कोई प्रशंसक इसे बुक करा सकता है.
उन्मुक्त जी बड़े दिल वाले व्यक्ति हैं और एक असल रचनाकार ऐसी ही सोच रखता है।..लेकिन चोरी तो चोरी है। कम से कम साभार लिखकर उनका असल लिंक तो देना ही चाहिए।
हटाएंunmukt ji ko bahut badhayi..
हटाएंmain to sochta hun ki is janm me hi agar 1 bhi aisa prasansak paida kar sakun to bahut badi uplabdhi hogi..
कृपया इस लिंक पर जाएँ, मेरा ख्याल है कि यह इस विधि का कमाल है.
हटाएंhttp://www.archive.org/about/faqs.php#103
रवी जी आपको धन्यवाद। आभारी हूं कि आपने यह चिट्ठी लिखी और मेरे बारे में अच्छे विचार रखते हैं।
हटाएंमैंने जैसे अपनी इस चिट्ठी में दो साल पहले लिखा था मैं अपने इस अज्ञात मित्र को भी धन्यवाद देना चाहूंगा। उसने न केवल मेरे उन्मुक्त चिट्ठे पर छुटपुट और लेख चिट्ठे एवं पॉडकास्ट बकबक की प्रविष्टियां छाप कर मुझे सम्मान दिया - मैं उसका आभारी हूं।
रवी जी, वैसे यदि कोई मेरी प्रविष्टियों पर पैसा भी कमाता है तो मुझे प्रसन्नता होगी। वह यह कर सकता है। इसके लिये उसका स्वागत है। मेरी चिट्ठे की शर्तें यह भी अनुमति देती हैं।
वाह!! ... उन्मुक्त जी को बधाई ... लेखक के नाम से ही रचनाएं प्रकाशित हो, तो हो हल्ला की कोई बात नहीं ... पर लोग तो रचनाओं को अपने नाम से भी प्रकाशित कर लेते हैं ... फिर बात यह है कि यदि लेखक के नाम से ही सही ,सामग्री को तोड मरोडकर गलत ढंग से पेश किया जाए तो हुई गल्ती का जवाबदेह लेखक भी तो हो सकता है ... इसलिए नियमत: लेखक को सूचना मिल जाना अधिक अच्छा है।
हटाएंमगर डुप्लिकेट माल को गूगल इंडेक्स करते समय पहचान लेता है और इग्नोर करता है।
हटाएंरवि जी !! भगवान् करे मेरी नजर आपको लगे और आपको ऐसे हजारों प्रशंसक मिल जाएँ!!
हटाएंकुल जमा उन्मुक्त जी के बारे में अनेक कौतूहलों के बाद भी उनके पढने में एक अलग तरह का मजा आता है !!
शुक्रिया इस जानकारी का !!
तो, भला जो प्रशंसक अपने जेब से नांवा खर्च कर उन्मुक्त जी के नाम का डोमेन पंजीकृत करवा कर, साइट बना कर उनकी रचनाएँ उन्हीं के नाम से पुनः प्रकाशित करेगा, वह भी प्रकटतः बिना किसी लाभ के, तो उसकी प्रशंसा ही की जानी चाहिए? इससे यह भी सिद्ध होता है कि उन्मुक्त जी की रचनाएँ काबिले तारीफ और काम की होती हैं इसीलिए इनकी रचनाओं को एकत्र करने का प्रयास भी किया गया है.
हटाएंकॉन्टेन्ट डुप्लिकेसी का मामला तो है ही, सर्च इंजन में रैंकिंग पर क्या प्रभाव पड़ेगा यह तो अलग-२ सर्च इंजन पर निर्भर करता है क्योंकि सभी की एक ही पॉलिसी नहीं जान पड़ती।
दूसरी बात जो अपने को समझ नहीं आई वह यह कि आखिर इस सबका मकसद क्या है? व्हॉट इज़ द प्वायंट?? उन्मुक्त जी जो माल अपने ब्लॉग पर छाप रहे हैं उसको वैसे का वैसा ही ये महोदय अपनी वेबसाइट पर भी छाप रहे हैं, एक्सट्रा वैल्यू तो कोई जुड़ नहीं रही मसौदे में! बल्कि उन्मुक्त जी के ब्लॉग की रूप-रेखा इन महोदय के ब्लॉग से अधिक बेहतर लगी, पाठ बड़े अक्षरों में साफ़ सुथरे ढंग से प्रस्तुत होता है जबकि उन्मुक्त.कॉम पर वर्डप्रैस की डिफ़ॉल्ट और बुढ़ा चुकी थीम क्युबरिक है तथा पाठ का आकार बहुत छोटा है!! एक्सट्रा वैल्यू भी कोई नहीं है तो कोई वहाँ आकर क्यों पढ़े, उन्मुक्त जी के ब्लॉग पर ही न पढ़ ले?!
हम छोटी-मोटी चिट्ठाचोरी के नाम पर हम चिल्ल-पों मचाने लगते हैं और अपने चिट्ठों में सामग्री चोरी रोकने हेतु “बिनाकाम” का ताला डाल रखते हैं?
हटाएंवाह वाह वाह, आपने बडी हिम्मत से ये बात कही है। बल बल जायें इस बात पर। बहुत सी ऐसी पोस्ट पढीं जिनमें किसी ने मेरा चुटकुला चुरा लिया किसी ने मेरा २१वीं सदी का महानतम विमर्श लेख चुरा लिया, किसी ने मेरी प्रतिनिधि कहानी चुरा ली...ब्ला ब्ला ब्ला...
ताला तो जावा स्क्रिप्ट को डिसेबल करते ही पट्ट से खुल जाता है फ़िर जिसे चुराना हो चुरा ले। कम से कम लोग उन्मुक्त जी से प्रभावित हों तो ऐसी हल्ला गुल्ला वाली पोस्ट को कम हों।
उन्मुक्त
हटाएंहम तो पैसे देकर भी ऐसे प्रसंसक बनाने को तैयार हो जाएँ :-)
हटाएंउन्मुक्तजी महान हैं। ब्लागपोस्ट चुराने के मामले में मची चिल्लपों देखकर कभी -कभी हैरत होती है। उन्मुक्तजी तो कहते हैं कि ले जाओ भैया जिसको ले जाना हो। हमारे भी एकाध लेख लोगों ने अपने ब्लाग पर लगाये लेकिन वे आलसी प्रशंसक हैं एक-दो लेख के बाद बैठ गये। उन्मुक्तजी जैसे प्रशंसक सबको मिलें!
हटाएंऐसा भी होता है ......पार्ट.२
हटाएंदिलचस्प व्यक्तित्व है उन्मुक्त जी....
उन्मुक्त जी को बहुत बधाई ऐसे सुविचार रखने के लिए। फिर भी मेरे विचार से इस वेबसाइट पर यह स्पष्ट उल्लेख होना चाहिए कि यहां लेख भले ही उन्मुक्त जी के हों, लेकिन इसका संचालनकर्ता कोई और है। हो सकता है कि कभी इस पर कोई ऐसी पोस्ट प्रकाशित कर दी जाए, जो उन्मुक्त जी की न हो.. ऐसे में भ्रम की स्थिति तो बन ही सकती है। यह तो वही हुआ कि अपने मुखौटे में किसी अजनबी को बैठा देना..
हटाएंरवि जी, धन्यवाद इस वेबसाइट की ओर सबका ध्यान दिलाने के लिए.. चिट्ठों से सामग्री चोरी रोकने वाला ताला ही “बिनाकाम” का नहीं है.. बल्कि चिट्ठे पर पोस्ट की मौलिक सामग्री और सार्थक टिप्पणियों के अलावा सबकुछ “बिनाकाम” का कहा जा सकता है.. आपका आभार..
रोचक मामला है।
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तस्लीम
साइंस ब्लॉगर्स असोसिएशन
रवि भाई,
हटाएंअद्भुत चौर्य कर्म की जानकारी दी आपने!
पर ब्याज स्तुति के बहाने
एक (नान) सेंस का भी खुलासा कर दिया!!
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आपको पढना सदैव प्रियकर है.
.चन्द्रकुमार
उन्मुक्त जी के दिए गए लिंक से यहाँ तक पहुंची हूँ | सच कहूँ तो यही या इस प्रकार का एक चिटठा उन्मुक्त जी को अपने ब्लॉग पर डालना चाहिए जिसमें चोरी करनेवाले से कुछ सवाल पूछे गए हों | फिर देखते हैं कि क्या वह उस चिट्ठे को भी प्रकाशित करता है या नहीं |
हटाएंउन्मुक्त जी को बधाई ..वाकई उन्मुक्तजी महान हैं. जय हो.
हटाएंखूब होता है ये सब अन्तर्जाल पर, जाल जो है…
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