अंततः मैं भी आधा दर्जन पैकेट नमक के ले ही आया. थोड़ी बहुत मशक्कत तो खैर करनी ही पड़ी, और बहुत सारा जुगाड़ भी. जो कि इस देश-वासियों की खासिय...
अंततः मैं भी आधा दर्जन पैकेट नमक के ले ही आया. थोड़ी बहुत मशक्कत तो खैर करनी ही पड़ी, और बहुत सारा जुगाड़ भी. जो कि इस देश-वासियों की खासियत या ये कहें कि जीवन की अनिवार्य आवश्यकता है. छः घंटे की लाइन में लगकर, रात बारह बजे, दैवयोग से खुली किराने की दुकान से, और, उससे भी बड़े दैवयोग से कि मेरा नंबर आते तक स्टॉक खत्म नहीं हुआ. जेब में, जोड़-तोड़ और जुगाड़ से हालिया हासिल किए नए-नकोर पिंक कलर के एक-मात्र दो हजार रुपये के नोट से छः किलो नमक ले आना तो जैसे स्वर्गिक आनंद की तरह था.
जी हाँ, स्वर्गिक आनंद. जरा डॉमिनोज़ के एक्स्ट्रा टॉपिंग वाले पित्ज़ा या केएफसी के फ़ाइव-इन-वन मील बॉक्स को बिना नमक के खाने का अहसास कर देखिए. आपके हजार रुपल्ली के माल का वैसे भी स्वाद भूसे जैसा होगा. ऐसे में, हजार रुपए में भी हासिल एक चुटकी नमक अपनी कीमत की औकात बखूबी बता ही देता है. और, मैंने तो वैसे भी हजार रुपए में तीन पैकेट के भाव से नमक खरीदा है.
माना कि महीने भर में मेरा नमक-खर्च कोई सौ-पचास ग्राम भी नहीं होगा, मगर भविष्य को सुरक्षित रखना भी तो कोई बात है. आदमी पशु तो है नहीं जो भविष्य की चिंता न करे. यूं भी अपने नमक का हिसाब कौन रखता है कि कितना खाया. अलबत्ता दूसरों को नमक खिलाने और दूसरों के नमक खाने का हिसाब-किताब रखना हमारी "गब्बर-कालिया" परंपरा रही है, मगर आजकल परंपराओं को तोड़ने-मरोड़ने व उन्हें उखाड़ फेंकने, गोली मारने का रिवाज भी तो चल पड़ा है. फिर भी, नमक के मामले में कोई रियायत नहीं. इसलिए, यदि खाने-खिलाने को नमक न रहे जीवन में तो ये जीवन ही क्या! इसलिए, सभी को नमक का पर्याप्त संग्रह कर रखना चाहिए. बल्कि तो भारतीय परंपरानुसार सात पुश्तों तक के लिए नमक-संग्रह कर रखना चाहिए. जितना अधिक संग्रह उतना अच्छा!
इस देश में वैसे भी कहीं भी कुछ भी हो सकता है. जब पत्थर के गणेश दूध पी सकते हों, जब किसी खूबसूरत सी शाम आप जेब में हजार पाँच सौ के नोट लेकर घूमने निकले हों और पता चले कि घंटा भर पहले तो ये अप्रचलित हो चुके हैं, तो फिर वास्तव में कहीं भी, कुछ भी हो सकता है. देश क्या दुनिया में कहीं भी कुछ भी हो सकता है – जब ट्रम्प अमरीकी चुनाव जीत सकता है तो यह देश क्या पूरी दुनिया नमक से खाली हो सकती है. वैसे भी देश का सारा नमक लोग-बाग खा-खा-कर नमकहरामी तो आजादी के पहले से करते आ रहे हैं और आजादी के बाद भी ये बदस्तूर एक्सपोनेंशियली बढ़ता हुआ जारी ही है. तो ये भी हो सकता है कि किसी दिन अलसुबह पता चले कि नमकहरामों ने देश का सारा नमक रातोंरात हजम कर लिया है. और आम जनता की थाली से नमक ग़ायब हो गया है.
आपकी चुटकी में लिए नमक में स्वाद तब और बढ़ जाता है जब आप इसे हजार रुपल्ली किलो के भाव में खरीदते हैं. खुल्ले में मिलने वाला पच्चीस पैसे किलो का नमक भी कोई नमक हुआ. वो तो पूरा बेस्वाद ही होगा. फेंकने लायक. महंगे, पैकेज्ड आयोडीन से भरपूर, भले ही एक स्वस्थ आदमी को उसकी आवश्यकता हो न हो, की बात ही कुछ और है. स्वाद की कहें तो इसका स्वाद तब और द्विगुणित हो जाता है जब आपके चिकित्सक ने अधिक नमक खाने से मना किया हो. आपको बीपी आदि की शिकायत हो और आपको कम नमक खाने की हिदायत हो.
नमक में यदि अंग्रेज़ी का तड़का हो तो खाने-खिलाने का मजा कुछ और होता है. फ़्रूट साल्ट हो या ब्लैक साल्ट. सी साल्ट हो या हिमालयन साल्ट या फ्लैक साल्ट. नमक के स्वाद पर देश-स्थान-समय-वातावरण आदि का भी धीर-गंभीर असर होता है. शीशम के डाइनिंग टेबल पर रखे चाँदी-सोने के नमक-दानी में रखे 'टेबल साल्ट' यानी साधारण नमक का स्वाद तो वही बता सकता है जिसने ऐसा खाया हो. अलबत्ता किसी मजदूर के रात्रि भोजन में सादी रोटी के साथ एक चुटकी नमक का स्वाद सर्वश्रेष्ठ होता है – ऐसा पंडितों (ब्राह्मणों नहीं, विचारकों) का कहना है. क्या किसी ने खाया है ऐसा नमक? मुझे तो आजतक यह नमक मिला नहीं, मैं इस नमक की एक चुटकी के लिए हजार रुपए तक देने को तैयार हूँ. पुराना अप्रचलित नहीं, नया, प्रचलित.
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