क्या सोशल नेटवर्किंग भावनाओं से खिलवाड़ का मंच है? यह विशाल साइनबोर्ड शहर के मध्य स्थित एक व्यस्ततम चौराहे पर लगा है. चलिए, सोशल नेटवर्किं...
क्या सोशल नेटवर्किंग भावनाओं से खिलवाड़ का मंच है?
यह विशाल साइनबोर्ड शहर के मध्य स्थित एक व्यस्ततम चौराहे पर लगा है. चलिए, सोशल नेटवर्किंग आपके हमारे कंप्यूटरों और मोबाइल उपकरणों से बाहर निकल कर शहर के चौराहों तक तो आ ही गया.
सोशल नेटवर्किंग के चौराहे पर आने का प्रसंग है एक सामाजिक वादविवाद प्रतियोगिता का जो 23 मार्च तक जारी रहेगा.
यदि आपको इस विषय - "क्या सोशल नेटवर्किंग भावनाओं से खिलवाड़ का मंच है?" पर बोलना हो तो किसका पक्ष लेंगे, और क्यों? और आप अपने तर्क में प्रमुख रूप से क्या बातें रखेंगे?
आपकी इस प्रविष्टी की चर्चा कल रविवार (24-03-2013) के चर्चा मंच 1193 पर भी होगी. सूचनार्थ
हटाएंआज तो २४ हो गयी, वादविवाद का निष्कर्ष भी बतायें..
हटाएंजमुना सुखी, नर्मदा सुखी, सुखी सुवर्णरेखा,
हटाएंगंगा बनी गन्दी नाली, कृष्णा काली रेखा,
तुम पियोगे पेप्सी कोला, बिस्लरी का पानी,
हम कैसे अपना प्यास बुझाए, पीकर कचरा पानी? ॥
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आपने अपने ब्लॉग का सौन्दर्य निखार दिया है। बहुत-बहुत धन्यवाद।
हटाएंसमय के साथ बस एक नया माध्यम भर है। भावनाएं तो भावनाएं रहेंगी ही। ठीक उसी तरह जैसे हर पिछली पीढ़ी को लगता है नयी पीढ़ी अलग है। और ये निरंतर इसी तरह चलता रहता है। कुछ बदलता नहीं क्योंकि निरंतर उसी गति से बदलता रहता है
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