कुछ अर्थ दे रहा हूं - भारत में - पैसा खिलाने के बाद, किसी का कोई काम सचमुच में हो जाता है. घोर लालफीताशाही के बाद भी कोई प्रोजेक्ट चार ...
कुछ अर्थ दे रहा हूं -
भारत में -
- पैसा खिलाने के बाद, किसी का कोई काम सचमुच में हो जाता है.
- घोर लालफीताशाही के बाद भी कोई प्रोजेक्ट चार के बजाय चौबीस महीनों में सही, जैसे तैसे पूरा तो हो जाता है.
- कोई अन्ना पैदा हो जाता है.
- जाम में फंसने के बाद भी जब कोई काम पर समय पर पहुँच जाता है.
- गर्मी की रातों में, किसी रात, रातभर बिजली गोल नहीं होती.
- नल में किसी दिन बढ़िया प्रेशर से पांच मिनट ज्यादा पानी आ जाता है.
- जरूरी समय में किसी नेटवर्क पर किया गया किसी का कॉल ड्रॉप नहीं होता.
- आपका वायर्ड/वायरलेस इंटरनेट कनेक्शन पूरी रफ़्तार और गति से सप्ताह भर बढ़िया चल जाता है.
- कहीं जाने-आने के लिए रेल में आरक्षण आसानी से मिल जाता है.
- एयरपोर्ट पर सिक्यूरिटी चेक पाइंट पर आपका मुस्कुराहटों से स्वागत किया जाता है.
- किसी प्रॉडक्ट पर बिक्री उपरांत सर्विस भी शानदार मिल जाती है.
- ट्रैफिक नहीं होने पर भी ऑटो/मिनिबस लालबत्ती जंप नहीं करते, और सिगनल हरा होने का इंतजार करते हैं.
- किसी सरकारी ऑफिस में कोई बिल जमा करते समय बिना किसी हील-हुज्जत के, आपको पूरा चिल्लर लौटा दिया जाता है.
- किसी सप्ताह, अखबार में सप्ताह भर भ्रष्टाचार संबंधी खबर नहीं आती.
- किसी माह, महीने भर पेट्रोल के दाम बढ़ने की खबर नहीं आती.
- ... इत्यादि.
आपके अपने भी अर्थ होंगे, परिभाषाएँ होंगी - वास्तविक सुंदरता के. हमें भी बताएंगे जरा?
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इस प्रविष्टि को इंडीब्लॉगर.इन द्वारा प्रायोजित - The Yahoo Dove Real Beauty Contest के लिए विशेष तौर पर प्रकाशित किया गया. इसमें आप भी भाग ले सकते हैं. अधिक जानकारी के लिए यहाँ देखें.
आप चाहें तो इंडीब्लॉगर पर इस प्रविष्टि को प्रमोट भी कर सकते हैं.
अपने देश की इस सुन्दरता के आगे तो बाकि सारी सुन्दरता फीकी है...
जवाब देंहटाएं* पूरी जूतमपैजार के बावजूद ब्लॉगजगत में भाई चारा है! यह प्वॉइण्ट जोड़ा जाये! :)
जवाब देंहटाएंयह सब तो सुखों की श्रेणी में आता है।
जवाब देंहटाएंआपकी उम्दा प्रस्तुति कल शनिवार (04.06.2011) को "चर्चा मंच" पर प्रस्तुत की गयी है।आप आये और आकर अपने विचारों से हमे अवगत कराये......"ॐ साई राम" at http://charchamanch.blogspot.com/
जवाब देंहटाएंचर्चाकार:-Er. सत्यम शिवम (शनिवासरीय चर्चा)
स्पेशल काव्यमयी चर्चाः-“चाहत” (आरती झा)
एसा होता तो नहीं ,होना भी नहीं चाहिये। और अगर इत्तेफाकन ऐसा हो जाता है तो एसी खुशिया समेट कर थैली में भरते जाना चाहिये । एक दिन वह थेैली परेशानियों से भारी हो जावेगी और जिनको हम परेशानी समझते है और जो हमारे बश में नहीं है, उन पर क्रोधित होकर झल्लाने की वजाय उन्हे ईजीली लेंगे ।
जवाब देंहटाएंकाश ये सब कभी कभार हमारे महान देश में होते रहे !
जवाब देंहटाएंजानदार लेख/बाते, सोचना पडेगा इनके बारे में
जवाब देंहटाएंकोई काम जब लोग हार मान लेते हैं कि ये नहीं हो सकता और मैं कर डालता हूँ :)
जवाब देंहटाएंसुंदरता की नई पहचान.
जवाब देंहटाएंऐसी सुंदरता तो देखते ही बनती है .....
जवाब देंहटाएंgyandutt ji ka sujhav achha hai...
जवाब देंहटाएंक्या विडम्बना है कि जो सब कुछ सहज होना चाहिए वह सब कुछ अपवादों के रूप में देखना पड रहा है। आपकी बातों ने गहरे तक बेध दिया।
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