व्यंज़ल देश तो साला जैसे सुबह का अख़बार हो गया वो तो एक नॉवेल था कैसे अख़बार हो गया तमाम जनता ने लगा लिए हैं मुँह पे भोंपू मेर...
व्यंज़ल
देश तो साला जैसे सुबह का अख़बार हो गया
वो तो एक नॉवेल था कैसे अख़बार हो गया
तमाम जनता ने लगा लिए हैं मुँह पे भोंपू
मेरा शहर यारों कुछ ऐसे अख़बार हो गया
दुश्वारियाँ मुझपे कुछ ऐसी गुजरीं कि मैं
एक कॉलम सेंटीमीटर का अख़बार हो गया
लोगों ने कर डाली हैं विवेचनाएँ इतनी कि
धर्म तो बीते कल का रद्दी अख़बार हो गया
बहुत गुमाँ था अपने आप पे यारों रवि को
जाने क्या हुआ कि वो बस अख़बार हो गया
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(समाचार कतरना – साभार – अदालत ब्लॉग)
वाह !
जवाब देंहटाएंबहुत बढ़िया साहब
जवाब देंहटाएंबहुत ही मारक लगा..........
जवाब देंहटाएंजय हिन्द, जय बुन्देलखण्ड
waah lajawaab rachna...
जवाब देंहटाएंबहुत ही सही निर्णय । अखबार पढ़ने से अच्छा है कि कुछ न पढ़ें ।
जवाब देंहटाएंसच कहा आपने और सुप्रीम कोर्ट ने
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