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सवाल ये है कि बीस साल में क्या हो सकता है और क्या नहीं. एक सरकारी नौकर को बीस साल में फायर किया जा सकता है, यदि वो कामचोर निकला तो. बीस...

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सवाल ये है कि बीस साल में क्या हो सकता है और क्या नहीं.

एक सरकारी नौकर को बीस साल में फायर किया जा सकता है, यदि वो कामचोर निकला तो. बीस साल! इसका अर्थ ये है कि आप उन्नीस साल तक तो आराम से बिना काम धाम किए निकाल सकते हैं. कानूनन कोई आपका बाल बांका नहीं कर सकता. क्योंकि बीस साल से पहले आपको निकाला ही नहीं जा सकता – कम से कम कामचोरी की तोहमत लगाकर. अलबत्ता दूसरे चार्ज हों तो बात दीगर है. फिर आप उन्नीसवें साल के अंत से या अधिक सेफ गेम खेलना है तो, अठारहवें साल से ही सही, काम करना चालू कर दीजिए. अपनी एफ़ीशिएंसी दिखानी चालू कर दीजिए. अब तो आपको वैसे भी निकाला नहीं जा सकता, क्योंकि अब आप काम कर रहे हैं. प्रसंगवश, यहाँ, ये भी दीगर बात है कि सरकारी दफ़्तरों में कामचोरों को भले ही कोई पूछता न हो, एफ़ीशिएंसी दिखाने वालों की ज्यादा दुर्गति होती है. यहाँ तो पासिंग द बक का गेम चलता है. गेम दूसरे के पाले में डालने का खेल चलता है.

ऋणात्मक सोच वालों को जरूर ये तकलीफ़ हो सकती है कि अब तक तो ऐसा कोई क़ानून ही नहीं था. बीस साल क्या, जीवन के पूरे साठ वर्ष तक यानी रिटायर होते तक कामचोरी की बिना पर सरकारी नौकरी से फायर नहीं किया जा सकता था, अब बीस साल का डर आ रहा है. मगर उन्हें शायद ये नहीं मालूम कि बीस साल में दुनिया बदल जाती है, परिस्थितियाँ बदल जाती हैं, और सरकारें पाँच बार अदल-बदल सकती हैं. उन्हें बीस साल में भी अपना स्वर्णिम भविष्य देखना चाहिए. वैसे भी, बीस दिन या बीस महीने की बात तो नहीं की जा रही है! इसीलिए, क्यों न बीस साल का जश्न मनाएँ.

वैसे भी, बीस साल में क्या क्या नहीं किया जा सकता? यदि आपके पास बढ़िया मलाईदार विभाग है तो आप तो पाँच-सात साल में भी बहुत सारा काम कर सकते हैं. अपनी 7 पुश्तों के खाने-पीने का बंदोबस्त कर सकते हैं. यदि आपने प्लानिंग सही की तो बीस साल में तो आपका सुपुत्र भी गबरू जवान होकर खाने-कमाने लायक बन जाएगा और अपनी सुपुत्री के हाथ बढ़िया तरीके से, सरकारी कर्मचारी बने रहते हुए, समय पर, पीले कर सकते हैं.

इस क़ानून के चलते सरकारी दफ़्तरों में रोचक प्रसंग देखने को मिल सकते हैं. दफ़्तरों में हर बाबू की टेबल पर उसका अपना बीस-वर्षीय काउंटडाउन घड़ी टंगा मिल सकता है. किसी कर्मचारी का बॉस उसे किसी काम के लिए डांटेगा तो कर्मचारी उल्टा बॉस पर बिफरेगा – तुम मेरा आने वाले पंद्रह (या, बारह, तेरह...) साल तक कुछ उखाड़ नहीं सकते!

लगता है सरकार ने इस क़ानून को बनाते समय अपने कर्मियों की दशा-दिशा का पूरा खयाल रखा है. आखिर सरकारी कर्मचारी भी तो उनके अपने, इस देश के प्रिय नागरिक हैं. बीस साल से एक दिन भी कम होता तो कर्मियों को कई समस्याएँ हो सकती थीं. अब जब सरकार ने ये कानून बना ही दिया है तो क्यों न सभी सरकारी कर्मचारियों को इसका लाभ आवश्यक रूप से लेना ही चाहिए?

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समाचार कतरन – साभार टाइम्स ऑफ इंडिया

COMMENTS

BLOGGER: 8
  1. कामचोरों को बीस बरस की मोहलत!!! क्या बात है?!

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  2. "इस क़ानून के चलते सरकारी दफ़्तरों में रोचक प्रसंग देखने को मिल सकते हैं. दफ़्तरों में हर बाबू की टेबल पर उसका अपना बीस-वर्षीय काउंटडाउन घड़ी टंगा मिल सकता है."

    ऐसा भी होगा क्या ? नहीं, नहीं .

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  3. मेरे ख्याल से २०-२२ साल की सरकारी नौकरी की बाली उमर खतरनाक है। इस बैण्ड को बिना टीका टिप्पणी के पार कर लिया तो हर गंगे!

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  4. रोचक प्रसंग. आभार

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  5. आख़िर सरकारी है ! हाथी मर भी जाय तो...

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  6. अच्छी ख़बर ली है नीति नियोजकों की रवि जी आपने !

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  7. इस तरह के कानून भी यह नीतियां ये सरकारी के लोग ही तो बनाते है तो भला वे अपनी सुविधाए क्यों न देखें। आजादी से अब तक ये लोग देष का खा-खा कर मोटे हुए जा रहें है।

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  8. yah Kanoon bhee to babuon ka banaya hee hai.

    जवाब दें हटाएं
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