क्या प्रिंट मीडिया के दिन लदने लगे हैं? क्या ऑनलाइन प्रकाशन ही अंतिम विकल्प रहेगा? पहल और पीसीमैगजीन के प्रिंट संस्करण बंद होने जा रहे...
क्या प्रिंट मीडिया के दिन लदने लगे हैं? क्या ऑनलाइन प्रकाशन ही अंतिम विकल्प रहेगा?
पहल और पीसीमैगजीन के प्रिंट संस्करण बंद होने जा रहे हैं. पहल का ऑनलाइन संस्करण न तो था और शायद भविष्य की ऐसी कोई योजना भी नहीं है, मगर पीसीमैगजीन अपने ऑनलाइन संस्करण के जरिए उसी दमदारी और उसी मजबूती से पत्रिका रूप में प्रकाशित होती रहेगी. और आप इस ऑनलाइन पत्रिका को बेहद सस्ते दामों में (एक डिजिटल प्रति के लिए सिर्फ 62 सेंट मात्र) पढ़ सकते हैं.
साक्षात्कार के संपादक हरि भटनागर से पिछले दिनों औपचारिक चर्चा के दौरान पता चला कि साक्षात्कार की कोई पंद्रह सौ प्रतियाँ निकलती हैं. विज्ञापन रहित पत्रिका साक्षात्कार एक साहित्यिक पत्रिका है, जिसमें हर विधा की रचनाएँ प्रकाशित होती हैं. पत्रिका का कलेवर बहुत ही अच्छा है, बेहतरीन कागज पर छपता है, और इसकी कीमत भी बहुत कम (एक वर्ष के 12 अंकों के लिए रु. 150 मात्र) है. चूंकि यह पत्रिका सरकारी सहायता से निकल रही है, अन्यथा इस कीमत पर ऐसी उच्च गुणवत्ता युक्त पत्रिका किसी सूरत में संभव नहीं है.
आपमें से अधिकतर पाठकों को साक्षात्कार के अस्तित्व का पता ही नहीं होगा. तमाम दृष्टिकोण से पत्रिका अच्छी होते हुए भी आम लोगों की पहुँच में नहीं है. इसमें छपी रचनाएँ, इस पत्रिका को निकालने में किया गया श्रम – सिर्फ पंद्रह सौ प्रतियों तक सीमित हो जाता है. एक प्रति को औसतन चार लोग पढ़ते हों, तो ये मानें कि प्रत्येक संस्करण को सिर्फ छः हजार पाठक मिल पाते होंगे. वर्षों से निकल रही इस पत्रिका के कोई 342 संस्करण निकल चुके हैं, और प्रत्येक संस्करण में पंद्रह रचनाएँ मान लें तो कोई पाँच हजार से अधिक रचनाएँ इसमें छप चुकी हैं. मगर ये पाँच हजार रचनाएँ पत्रिका के प्रकाशन उपरांत पत्रिका के साथ ही दफन हो चुकी हैं – कहीं किसी लाइब्रेरी के किसी आलमारी में पुरानी पत्रिकाओं के बीच पड़ी मिल जाएँ तो बात अलग है. काश! साक्षात्कार जैसी पत्रिका की सामग्री ऑनलाइन उपलब्ध होती.
इसके विपरीत, रचनाकार को अस्तित्व में आए सिर्फ तीन साल हुए हैं. इस दौरान इसमें कोई ग्यारह सौ से ऊपर रचनाएँ प्रकाशित हो चुकी हैं. रचनाकार को औसतन 700 पेज लोड प्रतिदिन मिल रहे हैं. 125 नियमित ग्राहक हैं जो इसे सब्सक्राइब कर पढ़ते हैं. इस हिसाब से रचनाकार को हर महीने कोई पच्चीस हजार दफा पढ़ा जा रहा है. रचनाकार में प्रकाशित हर रचना प्रत्येक पाठक के लिए निःशुल्क हर कहीं उपलब्ध है. रचनाकार के जरिए कोई दो दर्जन पुस्तकें – जिनमें उपन्यास, कहानी संग्रह, यात्रा वृत्तांत, कविता संग्रह इत्यादि हैं – ई-बुक के रूप में भी प्रकाशित हुए हैं. उपन्यास-कहानी संग्रह के ऑडियो बुक्स तथा कविता-कहानी के जीवंत वीडियो भी प्रकाशित हुए हैं. नतीजतन रचनाकार के पाठक दिन-प्रतिदिन बढ़ रहे हैं.
अर्थ यही कि प्रिंट मीडिया के दिन अब लदने लगे हैं. ऑनलाइन प्रकाशन ही अंतिम विकल्प रहेगा. ऐसे में रचनाकार जैसे दर्जनों ऑनलाइन प्रकल्प की जरूरत है. पहल के बंद होने के खबरों के बीच उदंती.कॉम के उदय होने की खबर निःसंदेह राहत प्रदान करती है.
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दादा,शायद ये बदलती तकनीक और लोगों की प्राथमिकता देने के चलते हो रहा है यही परिवर्तन तो एक मात्र अपरिवर्तशील नियम है बाकी सब तो कहीं न कहीं अपवाद लिये होते हैं।
हटाएंसार्थक और सामयीक जानकारी के लिए धन्यवाद!
हटाएंनिश्चित तौर पर आनलाइन पत्रिका बहुत से नये ग्राहक जोडने में सफल होगी लेकिन नीम के पेड़ के नीचे बिजली के बगैर, पलंग पर लेट कर ये कैसे पढ़ी जा सकेगी?
हटाएंनयी जानकारी के लिये धन्यवाद्
'साक्षात्कार' का कोई सानी नही।
हटाएंसहमत हूं कि निश्चित तौर पर उदंती डॉट काम का उदय एक अच्छी बात है उपर से खास बात यह कि इस पत्रिका का प्रिंट वर्जन भी काफी आकर्षक है।
साक्षात्कार के लगभग दस अंक मेरे पास हैं, निश्चय ही यह पत्रिका उत्कृष्ट साहित्य का प्रकाशन करती है . ऐसी पत्रिकाओं का ऑनलाइन होना इनकी सेहत और साहित्य दोनों के लिए जरूरी है.
हटाएंरचनाकार का महत्व असंदिग्ध है . रचनाकार के संचालन के लिए आभार .
अच्छी जानकारी लेकिन प्रिंट के तमाम विकल्प आनलाइन में कभी न हो सकेंगे!
हटाएंमुझे नहीं लगता कि आपका अनुमान सच साबित होगा । आपके दिए आंकडे और सूचनाएं निस्सन्देह सच हैं किन्तु मुद्रित शब्द के बिना जीवन शायद ही चल पाए ।
हटाएंअनूप जी, विष्णु जी,
हटाएंनई तकनॉलाज़ी बेहतर विकल्प प्रस्तुत करती है. आने वाले समय में तमाम किताबें इलेक्ट्रॉनिक फ़ॉर्म में ही मिला करेंगी. ये काग़ज जैसे फोल्डेबल डिस्प्ले पर नेचुरल कागज जैसा दिखेंगी और इनमें हजारों लाखों किताबें डाउनलोड कर दिखाने की क्षमता होगी.
कल्पना कीजिए, कि आपके पास एक ऐसी जादुई किताब है, जिसमें जब जी चाहे, रामायण भी पढ़ लें और हैरी पॉटर भी! और, सुबह का समाचार पत्र भी.
याने कि - भविष्य ऑनलाइन का ही है. यह ग्रीन और इको फ्रेंडली भी है - टनों काग़ज की आवश्यकता नहीं रहेगी - वैसे भी जब वन नहीं रहेंगे तो कागज भी नहीं रहेगा तब ऑनलाइन विकल्प ही बचा रहेगा - लूज - लूज सिचुएशन?