सर्वाधिक भ्रष्ट? *-*-* अब तक आदमी या तो ईमानदार होता था या भ्रष्ट होता था. परंतु आज के दौर में भ्रष्टता की भी कैटेगरी भाई लोगों ने बना ली है...
सर्वाधिक भ्रष्ट?
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अब तक आदमी या तो ईमानदार होता था या भ्रष्ट होता था. परंतु आज के दौर में भ्रष्टता की भी कैटेगरी भाई लोगों ने बना ली है. यूपी के पूर्व प्रमुख सचिव अखंड प्रताप सिंह, जो अपने ही साथी अफ़सर बंधुओं के द्वारा “उत्तर प्रदेश का सर्वाधिक भ्रष्ट अफसर” के शानदार खिताब से नवाज़े जा चुके थे, अंतत: सीबीआई की नज़रों में आ ही गए.
सवाल यह है कि सर्वाधिक भ्रष्ट का अर्थ क्या है? क्या इसके लिए कोई पोल - कोई वोटिंग हुई थी? सर्वाधिक भ्रष्ट के लिए कोई पैजेंट हुआ था? इस खिताब को पाने के क्या मापदंड थे? अगर यह अफसर सर्वाधिक भ्रष्ट था, तो उससे कम भ्रष्ट और न्यूनतम भ्रष्ट अफसर भी वहाँ होंगे. क्या सर्वाधिक भ्रष्ट उसे माना गया जो किसी काम के तय रेट से दस गुना या बीस गुना ज्यादा रिश्वत लेता था, या रिश्वत लेते समय वह अपने ख़ून के रिश्तों की भी परवाह नहीं करता था? या, किसी दिए गए वित्तीय कालखंड में उसने सबसे ज्यादा पैसे बनाए? अगर यह मापदंड जारी कर दिया जाता तो और दूसरे स्टेट के अफसरों का भी भला हो जाता.
जब मैं सरकारी सेवा में था, तो एक सीनियर इंजीनियर शर्माजी के बारे में लोग कहा करते थे कि बहुत भ्रष्ट है साला. कहा जाता था कि वे सीआर (गोपनीय चरित्रावली, सरकारी विभागों में ‘चरित्र’ गोपनीय ही होता है!) लिखने के भी पैसे लेते थे. उनके बारे में एक किस्सा प्रचलित था. एक बार उसका एक मातहत 3 अप्रैल को किसी अन्य विभाग में ट्रांसफर हो गया. उस मातहत ने सोचा कि 3 दिन का क्या सीआर और कैसे पैसे. परंतु शर्माजी ने पैसे के अभाव में 3 दिन के लिए एडवर्स रिमार्क लिख दिए. इसके विपरीत एक अन्य शर्माजी खासे ईमानदार माने जाते थे. उनका मोटो था पैसे के पीछे भागो नहीं, और अगर आता है तो छोड़ो नहीं.
अर्थ यह कि ईमानदारी कहीं गुम हो चुकी है. अब तो हमें भ्रष्ट, कम भ्रष्ट, ज्यादा भ्रष्ट या सर्वाधिक भ्रष्ट बन के रहना होगा.
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अब तक आदमी या तो ईमानदार होता था या भ्रष्ट होता था. परंतु आज के दौर में भ्रष्टता की भी कैटेगरी भाई लोगों ने बना ली है. यूपी के पूर्व प्रमुख सचिव अखंड प्रताप सिंह, जो अपने ही साथी अफ़सर बंधुओं के द्वारा “उत्तर प्रदेश का सर्वाधिक भ्रष्ट अफसर” के शानदार खिताब से नवाज़े जा चुके थे, अंतत: सीबीआई की नज़रों में आ ही गए.
सवाल यह है कि सर्वाधिक भ्रष्ट का अर्थ क्या है? क्या इसके लिए कोई पोल - कोई वोटिंग हुई थी? सर्वाधिक भ्रष्ट के लिए कोई पैजेंट हुआ था? इस खिताब को पाने के क्या मापदंड थे? अगर यह अफसर सर्वाधिक भ्रष्ट था, तो उससे कम भ्रष्ट और न्यूनतम भ्रष्ट अफसर भी वहाँ होंगे. क्या सर्वाधिक भ्रष्ट उसे माना गया जो किसी काम के तय रेट से दस गुना या बीस गुना ज्यादा रिश्वत लेता था, या रिश्वत लेते समय वह अपने ख़ून के रिश्तों की भी परवाह नहीं करता था? या, किसी दिए गए वित्तीय कालखंड में उसने सबसे ज्यादा पैसे बनाए? अगर यह मापदंड जारी कर दिया जाता तो और दूसरे स्टेट के अफसरों का भी भला हो जाता.
जब मैं सरकारी सेवा में था, तो एक सीनियर इंजीनियर शर्माजी के बारे में लोग कहा करते थे कि बहुत भ्रष्ट है साला. कहा जाता था कि वे सीआर (गोपनीय चरित्रावली, सरकारी विभागों में ‘चरित्र’ गोपनीय ही होता है!) लिखने के भी पैसे लेते थे. उनके बारे में एक किस्सा प्रचलित था. एक बार उसका एक मातहत 3 अप्रैल को किसी अन्य विभाग में ट्रांसफर हो गया. उस मातहत ने सोचा कि 3 दिन का क्या सीआर और कैसे पैसे. परंतु शर्माजी ने पैसे के अभाव में 3 दिन के लिए एडवर्स रिमार्क लिख दिए. इसके विपरीत एक अन्य शर्माजी खासे ईमानदार माने जाते थे. उनका मोटो था पैसे के पीछे भागो नहीं, और अगर आता है तो छोड़ो नहीं.
अर्थ यह कि ईमानदारी कहीं गुम हो चुकी है. अब तो हमें भ्रष्ट, कम भ्रष्ट, ज्यादा भ्रष्ट या सर्वाधिक भ्रष्ट बन के रहना होगा.
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