हास्य व्यंग्य नई शब्दावली नए शब्द -*-*-*- इंटरनेट और इन्फ़ॉर्मेशन तकनॉलाजी ने नित्य नए नए शब्दों और वाक्याँशों को जन्म दिया है. उदाहरण के लि...
हास्य व्यंग्य
नई शब्दावली नए शब्द
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इंटरनेट और इन्फ़ॉर्मेशन तकनॉलाजी ने नित्य नए नए शब्दों और वाक्याँशों को जन्म दिया है. उदाहरण के लिए ब्लॉग, जिसे हम हिन्दी में चिट्ठा कहते हैं. परंतु इससे इतर हमारे भारत में कुछ समय से नए नए शब्दों का गठन सप्रयास-अनायास हुआ है, और आपकी सामाजिक शब्दावली के भंडार में ऐसे नए-नए शब्दों का समावेश हुआ होगा. आइए, आपकी पुनश्चर्या के लिए एक बार फिर से इन नए शब्दों और उनके अर्थों पर चर्चा करते हैं. कुछ खास नए शब्द ये हैं, जिन्हें जानना समझना हर भारतीय के लिए आवश्यक है. क़यास लगाए जा रहे हैं कि इन शब्दों को प्रत्येक भारतीय जनता को समझने-समाझने के लिए सरकार कोई अध्यादेश लाने की भी तैयारी कर रही है!
• गरीब रैला: इस नए शब्द का जन्म स्थान पटना है. इसका अर्थ गरीबों के लिए पटना तक की मुफ़्त यात्रा, बस-ट्रक मालिकों तथा रेलवे के लिए जबरिया मुफ़्त-बिना टिकट यात्रा तथा राजनीतिज्ञों के लिए एक-दूसरे को अपना बाहुबल दिखाना है. महा रैला इसका अपभ्रंश है.
• हल्ला बोल : परिवर्तन इसी का नाम है. लखनऊ कहाँ एक समय तहजीब को लखनवी अंदाज से पहचाना जाता था और अब नेताओं की कृपा से हल्ला बोल के जनक के रूप में पहचाना जाने लगा है. यह त्रि-अर्थी शब्द है. इस शब्द का अर्थ राजपक्ष के दृष्टिकोण से क़ानून व्यवस्था में विपक्ष द्वारा विध्न है तो विपक्ष की नज़र से साम-दाम... वाली कहावत में से दंड का प्रयोग सिर्फ कुर्सी हथियाने के लिए है. मज़ेदार बात यह है कि आम जनता के लिए इसका अर्थ है मज़ेदार नज़ारे.
• महाबंद: कल भी, आज भी, कल भी और संभवत: परसों भी. जी हाँ, बंद, बंद, और सिर्फ बंद. किसी को विरोध करना हो, किसी की मर्जी का कुछ नहीं हुआ, कहीं कोई गड्ढे में गिरकर मरा – कारण कोई सा भी हो – भारत के गाँव मुहल्ले से लेकर शहर, प्रांत और देश में हर तरफ बंद और सिर्फ बंद. कई दिनों तक बंद. यह है महा बंद और कुछ बचा है क्या बंद के सिवा भारत में? इसकी उत्पत्ति असम में हुई, बिहार में फैली और इतनी फैली कि अब तो भारत का विपक्ष तो क्या सत्तापक्ष भी महाबंद का आयोजन करने में आनंद लेने लगा है.
• न्यायिक सक्रियता : मीडिया ने इस शब्द को जन्म दिया, परंतु फिर भी इसकी उत्पत्ति के जिम्मेदार नेता ही रहे हैं. इसका अर्थ हो सकता है – भ्रष्ट नेताओं-अफसरों के सिरों पर लटकती तलवार. भारत में यूँ तो न्याय अपना काम अपने हिसाब से तो करता ही है (लॉ विल टेक इट्स ओन कोर्स) जहाँ एक-एक मुकदमा बीस-बीस साल तक चलता है, परंतु कुछ खास नेताओं, अफसरों पर न्याय ने पीआईएल के जरिए अपने काम में सक्रियता दिखाई तो भीषण अक्रियता के बीच में लोगों को न्यायिक सक्रियता नज़र आने लगी.
• सामाजिक न्याय : इस शब्द का अर्थ सही मायने में कन्फ़्यूजिंग है. पिछड़ों पर सदियों से जो सामाजिक अन्याय हो रहा था उसकी भरपाई के लिए सामाजिक न्याय का नारा (जी हाँ, सिर्फ नारा) नेताओं द्वारा दिया गया. यह नारा कइयों को सामाजिक अन्याय सा लगता है. वैसे, कुल मिलाकर इसका अर्थ चुनिंदा नेताओं तथा चुनिंदा राजनीतिक पार्टियों के लिए कुर्सी प्राप्त करने का महामंत्र है जिसे वे हमेशा जपते रहते हैं.
• कल्याण निकाय : इसका शाब्दिक अर्थ आपको भ्रमित करेगा. इसकी उत्पत्ति भी बिहार में कुछ समय पूर्व हुई थी. बिहार में कुछ भ्रष्ट अफसरों को गिरफ़्तार किया गया था तो इन अफसरों की आर्थिक जरूरतों को संबल देने के लिए तथा इनके तथाकथित कल्याण के लिए अन्य साथी अफसरों से चंदा लेकर बनाया जाने वाला निकाय है यह. अब यह दीगर बात है कि जिनके लिए कल्याण निकाय बनाया जा रहा है वे कई लोगों का कल्याण करने की कूवत तो पहले ही रखते हैं, कईयों का कल्याण वे पहले ही कर चुके होंगे.
• तबादला उद्योग : भारत देश का यह सबसे बड़ा सरकारी उद्योग है. इस उद्योग में रॉ-मटीरियल, पूंजी, इनपुट कुछ नहीं लगता मगर प्रॉफ़िट बहुत है. इसमें किसी भी उद्योग से ज्यादा पैसा, ज्यादा प्रॉफ़िट होने की संभावना रहती है. न हींग लगे न फ़िटकरी... जैसी कहावतों के लिए यह अप्रतिम उदाहरण है. परंतु प्रॉफ़िट किसे होता है यह शोध का विषय है.
यह शब्द सूची अधूरी है, चूंकि इस मामले में मेरा ज्ञान अधूरा है. आपसे विनती है कि इस शब्द सूची को पूर्ण करने में मेरी मदद करें. वैसे, क्या आपको यह नहीं लगता कि इस तरह के नए नए शब्द आते रहेंगे और इस तरह यह सूची कभी भी पूरी नहीं की जा सकेगी?
(टीप: संपादित अंश दैनिक भास्कर, 2 जुलाई 1997 में पूर्व-प्रकाशित)
नई शब्दावली नए शब्द
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इंटरनेट और इन्फ़ॉर्मेशन तकनॉलाजी ने नित्य नए नए शब्दों और वाक्याँशों को जन्म दिया है. उदाहरण के लिए ब्लॉग, जिसे हम हिन्दी में चिट्ठा कहते हैं. परंतु इससे इतर हमारे भारत में कुछ समय से नए नए शब्दों का गठन सप्रयास-अनायास हुआ है, और आपकी सामाजिक शब्दावली के भंडार में ऐसे नए-नए शब्दों का समावेश हुआ होगा. आइए, आपकी पुनश्चर्या के लिए एक बार फिर से इन नए शब्दों और उनके अर्थों पर चर्चा करते हैं. कुछ खास नए शब्द ये हैं, जिन्हें जानना समझना हर भारतीय के लिए आवश्यक है. क़यास लगाए जा रहे हैं कि इन शब्दों को प्रत्येक भारतीय जनता को समझने-समाझने के लिए सरकार कोई अध्यादेश लाने की भी तैयारी कर रही है!
• गरीब रैला: इस नए शब्द का जन्म स्थान पटना है. इसका अर्थ गरीबों के लिए पटना तक की मुफ़्त यात्रा, बस-ट्रक मालिकों तथा रेलवे के लिए जबरिया मुफ़्त-बिना टिकट यात्रा तथा राजनीतिज्ञों के लिए एक-दूसरे को अपना बाहुबल दिखाना है. महा रैला इसका अपभ्रंश है.
• हल्ला बोल : परिवर्तन इसी का नाम है. लखनऊ कहाँ एक समय तहजीब को लखनवी अंदाज से पहचाना जाता था और अब नेताओं की कृपा से हल्ला बोल के जनक के रूप में पहचाना जाने लगा है. यह त्रि-अर्थी शब्द है. इस शब्द का अर्थ राजपक्ष के दृष्टिकोण से क़ानून व्यवस्था में विपक्ष द्वारा विध्न है तो विपक्ष की नज़र से साम-दाम... वाली कहावत में से दंड का प्रयोग सिर्फ कुर्सी हथियाने के लिए है. मज़ेदार बात यह है कि आम जनता के लिए इसका अर्थ है मज़ेदार नज़ारे.
• महाबंद: कल भी, आज भी, कल भी और संभवत: परसों भी. जी हाँ, बंद, बंद, और सिर्फ बंद. किसी को विरोध करना हो, किसी की मर्जी का कुछ नहीं हुआ, कहीं कोई गड्ढे में गिरकर मरा – कारण कोई सा भी हो – भारत के गाँव मुहल्ले से लेकर शहर, प्रांत और देश में हर तरफ बंद और सिर्फ बंद. कई दिनों तक बंद. यह है महा बंद और कुछ बचा है क्या बंद के सिवा भारत में? इसकी उत्पत्ति असम में हुई, बिहार में फैली और इतनी फैली कि अब तो भारत का विपक्ष तो क्या सत्तापक्ष भी महाबंद का आयोजन करने में आनंद लेने लगा है.
• न्यायिक सक्रियता : मीडिया ने इस शब्द को जन्म दिया, परंतु फिर भी इसकी उत्पत्ति के जिम्मेदार नेता ही रहे हैं. इसका अर्थ हो सकता है – भ्रष्ट नेताओं-अफसरों के सिरों पर लटकती तलवार. भारत में यूँ तो न्याय अपना काम अपने हिसाब से तो करता ही है (लॉ विल टेक इट्स ओन कोर्स) जहाँ एक-एक मुकदमा बीस-बीस साल तक चलता है, परंतु कुछ खास नेताओं, अफसरों पर न्याय ने पीआईएल के जरिए अपने काम में सक्रियता दिखाई तो भीषण अक्रियता के बीच में लोगों को न्यायिक सक्रियता नज़र आने लगी.
• सामाजिक न्याय : इस शब्द का अर्थ सही मायने में कन्फ़्यूजिंग है. पिछड़ों पर सदियों से जो सामाजिक अन्याय हो रहा था उसकी भरपाई के लिए सामाजिक न्याय का नारा (जी हाँ, सिर्फ नारा) नेताओं द्वारा दिया गया. यह नारा कइयों को सामाजिक अन्याय सा लगता है. वैसे, कुल मिलाकर इसका अर्थ चुनिंदा नेताओं तथा चुनिंदा राजनीतिक पार्टियों के लिए कुर्सी प्राप्त करने का महामंत्र है जिसे वे हमेशा जपते रहते हैं.
• कल्याण निकाय : इसका शाब्दिक अर्थ आपको भ्रमित करेगा. इसकी उत्पत्ति भी बिहार में कुछ समय पूर्व हुई थी. बिहार में कुछ भ्रष्ट अफसरों को गिरफ़्तार किया गया था तो इन अफसरों की आर्थिक जरूरतों को संबल देने के लिए तथा इनके तथाकथित कल्याण के लिए अन्य साथी अफसरों से चंदा लेकर बनाया जाने वाला निकाय है यह. अब यह दीगर बात है कि जिनके लिए कल्याण निकाय बनाया जा रहा है वे कई लोगों का कल्याण करने की कूवत तो पहले ही रखते हैं, कईयों का कल्याण वे पहले ही कर चुके होंगे.
• तबादला उद्योग : भारत देश का यह सबसे बड़ा सरकारी उद्योग है. इस उद्योग में रॉ-मटीरियल, पूंजी, इनपुट कुछ नहीं लगता मगर प्रॉफ़िट बहुत है. इसमें किसी भी उद्योग से ज्यादा पैसा, ज्यादा प्रॉफ़िट होने की संभावना रहती है. न हींग लगे न फ़िटकरी... जैसी कहावतों के लिए यह अप्रतिम उदाहरण है. परंतु प्रॉफ़िट किसे होता है यह शोध का विषय है.
यह शब्द सूची अधूरी है, चूंकि इस मामले में मेरा ज्ञान अधूरा है. आपसे विनती है कि इस शब्द सूची को पूर्ण करने में मेरी मदद करें. वैसे, क्या आपको यह नहीं लगता कि इस तरह के नए नए शब्द आते रहेंगे और इस तरह यह सूची कभी भी पूरी नहीं की जा सकेगी?
(टीप: संपादित अंश दैनिक भास्कर, 2 जुलाई 1997 में पूर्व-प्रकाशित)
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