आपका ईमेल पता?

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व्यंग्य पते की बात आपका पता आपके लिए जितना महत्वपूर्ण है उससे कहीं ज्यादा औरों के लिए है, ख़ासकर तब जब आपके पते में 10 जनपथ, 7 रेसकोर्स ...

व्यंग्य
पते की बात
आपका पता आपके लिए जितना महत्वपूर्ण है उससे कहीं ज्यादा औरों के लिए है, ख़ासकर तब जब आपके पते में 10 जनपथ, 7 रेसकोर्स रोड या ए.बी. रोड जैसे मार्ग या फिर नरीमन पाइंट, एक्सप्रेस टावर, प्रेस कॉम्प्लेक्स या चेतक सेंटर जैसे पहचान चिह्न हों. आपका पता महज एक पता हो सकता है या फिर आपका संपूर्ण अता-पता बताने वाला साधन भी हो सकता है. आपका पता आपके रहन-सहन, स्टेटस-सिंबल और दुनिया भर के, ढेर सारे अन्य कई ढंके छिपे चीजों के बारे में विस्तार से प्रकाश डालने वाला साधन भी हो सकता है. मसलन, कनाट प्लेस का चपरासी और नरीमन पाइंट का गार्ड भी हो सकता है कि अपनी ड्यूटी करने को मर्सिडीज़ बैंज में आएँ और उधर साइबेरिया का लैंडलॉर्ड भी जरा-जरा सी सुविधाओं को तरसे.

किसी का पता बहुत छोटा होता है तो किसी का बहुत लंबा. छोटे पते तो तत्काल याद हो जाते हैं परंतु बड़े-बड़े पते याद रखना मुश्किल होता है. परंतु आदमी अगर बड़ा है तो उसका मीलों लंबा पता भी लोग जाने कैसे याद रख लेते हैं. एक गाँव का गरीब रमई अपने पते में अपने नाम के आगे गांव, ब्लॉक, तहसील, जिला, प्रांत इत्यादि सभी कुछ लिख डालने के बाद भी अपनी चिट्ठी के मिल पाने की उम्मीद जरा कम ही रखता है. कारण, ऐसे पते को कोई याद ही नहीं रखना चाहता. वैसे उस रमई के पास हर पाँचवे साल में कुछ भिखारियों की फ़ौज जरूर पहुँच जाती है जो उससे हाथ जोड़कर, गिड़गिड़ा कर और कुछ लोग अपने जाति धर्म का वास्ता देकर वोट माँगने चले आते हैं.

वैसे कुछ ख़ास किस्म के पते को लोग खुशी-खुशी याद रखने की कोशिश करते हैं, जैसे कि ख़ूबसूरत लैलाओं के कई-कई पते आज के आधुनिक मजनूँ जुबानी याद रखते हैं, और जिस मजनूं के पते की ऐसी सूची ज्यादा लंबी होती है वह उतना ही ज्यादा सफल माना जाता है. इसके विपरीत कुछ पतों को लोग याद ही नहीं रखना चाहते, वरन् यह भी चाहते हैं कि दुनिया से ऐसे पतों का नामोनिशान मिटा दिया जाना चाहिए. उदाहरण के लिए टैक्स ऑफ़िसों का पता कोई भी किसी सूरत याद नहीं रखना चाहेगा और सपने में भी उसे भूलने की कोशिश करेगा. कुछ पते लोगों को मज़बूरी में, जबरन, जबर्दस्ती याद रखने पड़ते हैं, जैसे कि लेखकों को कई-कई संपादकों के पते हमेशा याद रखने होते हैं, ताकि उनकी स्वीकृत-अस्वीकृत, प्रकाशित-अप्रकाशित रचनाओं को उचित-अनुचित स्थान मिल सके.

जहाँ एक ओर चंद लोगों के कई-कई पते हो सकते हैं, वहीं बहुसंख्य अन्यों के साथ ये हो सकता है कि वे ता-उम्र एक अदद पता पाने की तलाश में जिंदगी गुज़ार दें. पते की बात यह भी है कि जहाँ एक ओर चुनावी चक्कर में, दिल्ली में रहने वाले नेतागण सुदूर आसाम या कन्याकुमारी का पता लिखवा रखते हैं, तो बड़े-बड़े माफिया डॉन के पते उनके द्वारा खुले आम अपहरण, मारकाट करवाने के बावजूद पुलिस रेकॉर्ड में उपलब्ध नहीं रहते. ऐसे माफिया-डान-और-नेता अपने पते में मीटिंगें-पार्टियाँ करते रहने के बाद भी पुलिस रेकॉर्ड में पते से फरार बताए जाते हैं. चुनावों के समय नेता मतदाताओं के पते तलाशते फिरते हैं तो चुनावों के बाद इसके उलट मतदाता अपने नेता का पता तलाशता फिरता है. इसी प्रकार, जिंदगी भर हसीनाओं के पतों के पीछे भागने वाला सदाबहार आशिक अपने अंतिम समय में मुक्ति और शांति की तलाश में मंदिरों, मस्जिदों, गिरजाघरों और गुरुद्वारों के पते तलाशते फिरते हैं.

आज के युग में लोगों के पते में भी परिवर्तन हो रहा है. अब अगर आपके पास आए किसी के पत्र में उसके पूरे पते की जगह ऐसा लिखा मिले: रवि@याहू.कॉम तो अचरज से अपनी उँगली मत दबाइए. यह उस व्यक्ति का आज के आधुनिक ब्रह्मांड का एकमात्र सच्चा और सही पता, ईमेल पता है, जिसके द्वारा आप भले ही उसके पास नहीं पहुँच पाएँ, आपकी भेजी लानतों के उस तक पहुँचने की पूरी गारंटी है, और इस बात की भी पूरी गारंटी है कि उस पते पर आपका भेजा हुआ संदेश डाक में कहीं भी खो नहीं सकता. हाँ, यह हो सकता है कि पाने वाले ने आपकी चिट्ठियों को खोलने से पहले ही रद्दी की टोकरी में डालने की पूर्व व्यवस्था कर रखी हो. ईमेल पर भेजी गई आपकी चिट्ठियाँ तत्काल और तत्क्षण सामने वाले को मिल जाती हैं. इधर आपने चिट्ठी भेजी नहीं उधर चिट्ठी मिली नहीं और इधर जवाब आया नहीं. यह नहीं कि एक बार चिट्ठी भेज दिया तो फिर इंतजार करते रहिए हफ़्ते-दस दिन अपने जवाब का. इसीलिए ईमेल उपयोक्ता बंधु अब डाक-घरों की चिट्ठियों को स्नेल-मेल कहने लगे हैं. यानी रेंगने वाले कीड़े की गति से चलने वाली डाक.

अमूनन व्यक्ति को अपनी चीज़ें प्यारी लगती हैं, परंतु पते के मामले में प्राय: उलटा होता है. यहाँ उसे दूसरों की पत्नियों की तरह दूसरों के पते प्यारे लगते हैं. उदाहरण के लिए लैलाओं को मजनुओं के पते, व्यापारियों को ग्राहकों के पते, नेताओं को अपने मतदाताओं के पते प्यारे लगते हैं. औरतों को अपने मायके का पता प्यारा लगता है तो विवाहित पुरुषों को अपनी सालियों के पते. रतलाम के रहने वाले रवि को इंदौर का पता ललचाता है तो इंदौर वाला मुंबई की ओर दौड़ लगाता है. मुंबई वाला शंघाई, न्यूयॉर्क और सिडनी की ओर दौड़ लगाने की फ़िराक़ में रहते हैं.

इससे पूर्व कि बेपते की बेतुकी, इन फ़िजूल बातों को पढ़ते-पढ़ते आपके सब्र का अता पता भी गायब हो और आप मेरे पते तलाशते फिरें, इन पतों को अभी अधूरा ही छोड़ता हूँ.
(नवभारत, 25 जुलाई 1999 में पूर्व-प्रकाशित)

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