लघुकथा --- “दुल्हन दिखने में कैसी थी?” अजीज मित्र, प्रतीक के विवाह पार्टी से देर रात मेरे लौटने पर पत्नी ने मुझसे पूछा. वह अस्वस्थता की...
लघुकथा
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“दुल्हन दिखने में कैसी थी?” अजीज मित्र, प्रतीक के विवाह पार्टी से देर रात मेरे लौटने पर पत्नी ने मुझसे पूछा. वह अस्वस्थता की वजह से साथ नहीं जा पाई थी और पार्टी के बारे में जानने को उत्सुक प्रतीत हो रही थी.
“सुन्दर ही रही होगी” मैंने उबासी लेते हुए कहा.
“रही होगी – मतलब?”
“यार हम लोग अपने नए प्रोजेक्ट की चर्चा कर रहे थे, सो ध्यान नहीं दिया”
“तुम भी कमाल करते हो. शादी की पार्टी में जाकर दूल्हा दुल्हन को देखने के बजाए प्रोजेक्ट डिस्कस कर आते हो.” उसने मेरा कोट हाथ में लेते हुए थोड़ी नाराजगी से कहा.
“वो तो हरीश मिल गया था, उसे हर हाल में प्रोजेक्ट परसों तक डिलीवर करना है. परेशान हो रहा था बेचारा”
“अरे तुमने तो गिफ़्ट का ये लिफ़ाफ़ा भेंट किया ही नहीं” उसने कोट की जेब में से शुभकामना वाला लिफ़ाफ़ा निकाला जिसमें शगुन के रुपए रखे थे.
“नहीं तो, मैंने तो बाकायदा शादी की बधाई के साथ लिफ़ाफ़ा दूल्हे के हाथ में थमाया था” मैं सोच में पड़ गया कि मैंने लिफ़ाफ़ा थमाया भी था या नहीं.
“तो फिर वह कोई और लिफ़ाफ़ा होगा. याद करो अपने दोस्त को तुम क्या भेंट कर आए”
“ओह माई गॉड, लगता है मैंने डैडी की चिट्ठी वाला लिफ़ाफ़ा थमा दिया जो आज सुबह ही आया था” मेरे डैडी जो कम्प्यूटर और कीबोर्ड को अविश्वसनीय नज़रों से दूर से ही देखते हैं, अभी भी नियमित रूप से अपने लंबे पत्र लिफ़ाफ़ों में भेजते हैं, जिनमें जीवन के फ़लसफ़े लिखे होते हैं.
“तुम भी यार हद करते हो. जरा देख तो लेते कि क्या दे रहे हो.”
“चलो, अब क्या करें. सुबह जाकर माफ़ी मांग कर ये लिफ़ाफ़ा दे आऊँगा.”
अगले दिन प्रतीक के पास गया, उससे माफ़ी मांगी और सही लिफ़ाफ़ा उसके नजर किया. उसने लिफ़ाफ़ा लेने से इनकार कर दिया, और साथ ही मेरी चिट्ठी लौटाने से भी.
उसने कहा- “जानते हो, मेरी शादी का सबसे क़ीमती तोहफ़ा क्या है? तुम्हारे डैडी की यह चिट्ठी.”
*/*/*
*एक सत्य घटना पर आधारित. जाहिर है, नाम व पात्र बदल दिए गए हैं.
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“दुल्हन दिखने में कैसी थी?” अजीज मित्र, प्रतीक के विवाह पार्टी से देर रात मेरे लौटने पर पत्नी ने मुझसे पूछा. वह अस्वस्थता की वजह से साथ नहीं जा पाई थी और पार्टी के बारे में जानने को उत्सुक प्रतीत हो रही थी.
“सुन्दर ही रही होगी” मैंने उबासी लेते हुए कहा.
“रही होगी – मतलब?”
“यार हम लोग अपने नए प्रोजेक्ट की चर्चा कर रहे थे, सो ध्यान नहीं दिया”
“तुम भी कमाल करते हो. शादी की पार्टी में जाकर दूल्हा दुल्हन को देखने के बजाए प्रोजेक्ट डिस्कस कर आते हो.” उसने मेरा कोट हाथ में लेते हुए थोड़ी नाराजगी से कहा.
“वो तो हरीश मिल गया था, उसे हर हाल में प्रोजेक्ट परसों तक डिलीवर करना है. परेशान हो रहा था बेचारा”
“अरे तुमने तो गिफ़्ट का ये लिफ़ाफ़ा भेंट किया ही नहीं” उसने कोट की जेब में से शुभकामना वाला लिफ़ाफ़ा निकाला जिसमें शगुन के रुपए रखे थे.
“नहीं तो, मैंने तो बाकायदा शादी की बधाई के साथ लिफ़ाफ़ा दूल्हे के हाथ में थमाया था” मैं सोच में पड़ गया कि मैंने लिफ़ाफ़ा थमाया भी था या नहीं.
“तो फिर वह कोई और लिफ़ाफ़ा होगा. याद करो अपने दोस्त को तुम क्या भेंट कर आए”
“ओह माई गॉड, लगता है मैंने डैडी की चिट्ठी वाला लिफ़ाफ़ा थमा दिया जो आज सुबह ही आया था” मेरे डैडी जो कम्प्यूटर और कीबोर्ड को अविश्वसनीय नज़रों से दूर से ही देखते हैं, अभी भी नियमित रूप से अपने लंबे पत्र लिफ़ाफ़ों में भेजते हैं, जिनमें जीवन के फ़लसफ़े लिखे होते हैं.
“तुम भी यार हद करते हो. जरा देख तो लेते कि क्या दे रहे हो.”
“चलो, अब क्या करें. सुबह जाकर माफ़ी मांग कर ये लिफ़ाफ़ा दे आऊँगा.”
अगले दिन प्रतीक के पास गया, उससे माफ़ी मांगी और सही लिफ़ाफ़ा उसके नजर किया. उसने लिफ़ाफ़ा लेने से इनकार कर दिया, और साथ ही मेरी चिट्ठी लौटाने से भी.
उसने कहा- “जानते हो, मेरी शादी का सबसे क़ीमती तोहफ़ा क्या है? तुम्हारे डैडी की यह चिट्ठी.”
*/*/*
*एक सत्य घटना पर आधारित. जाहिर है, नाम व पात्र बदल दिए गए हैं.
मालिक पर चिठ्ठी का ज्ञान हमें भी तो बाँच दो।
जवाब देंहटाएंपंकज
हाँ भई, चिट्ठी पढने का हमारा भी दिल कर रहा है.
जवाब देंहटाएंतो रवि भाई, देर ना की जाये, और जल्द से जल्द चिट्ठी पढवायी जाये.
हाँ लगता है मित्रों की मांग पर चिट्ठी वापस मांग कर स्कैन कर पोस्ट करना पड़ेगा. या फिर जो ज्ञान चिट्ठी में था उसे प्रवचन रूप में सुना दूँ तो चलेगा?
जवाब देंहटाएं-रवि
नहीं भाई, हम तो मूल ही पढ़ेगे। आप की कही तो बहुत झेलते हैं :D :D
जवाब देंहटाएंहमको तो सब चलेगा...
जवाब देंहटाएंमूल रूप का स्कैन किया हुआ और आपका प्रवचन भी.....
मिर्ची भाई का मेरे को नही पता