भारत में एक शानदार रेल यात्रा *-*-*-* सिर्फ एक ? शायद नहीं. बल्कि भारत में आपको ऐसी कई शानदार यात्राएँ करने के लिए रोज बरोज मिले...
भारत में एक शानदार रेल यात्रा
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सिर्फ एक ? शायद नहीं. बल्कि भारत में आपको ऐसी कई शानदार यात्राएँ करने के लिए रोज बरोज मिलेंगी. वृत्तांत यूँ है: इनडिफरेंट, चलताऊ रवैये के कारण भारत की एक प्रमुख रेलगाड़ी ‘सम्पूर्ण क्रांति’ जो दिल्ली से पटना (जो सौभाग्य से रेल मंत्री लालू यादव का शहर भी है) के बीच चलती है, पिछले दिनों बिना राशन पानी के पूरे बीस घंटे लगातार चलती रही और यात्री जिसमें नन्हे मुन्ने बच्चे भी थे, भूखे प्यासे परेशान होते रहे.
सम्पूर्ण क्रांति रेलगाड़ी में सभी श्रेणियों में यात्रियों के खाने पीने की व्यवस्था रेलगाड़ी के भीतर ही रसोई भंडार यान में भंडारित सामग्रियों से की जाती है, चूंकि दिल्ली से पटना की 20 घंटे की यात्रा में रेलगाड़ी बीच में सिर्फ दो स्थानों पर कुछ समय के लिए ही रूकती है. खाने पीने की व्यवस्था के लिए रेलवे द्वारा टिकट के साथ ही अलग से पैसा वसूल लिया जाता है.
कोहरे (?) के कारण पटना से दिल्ली आने वाली सम्पूर्ण क्रांति रेलगाड़ी बहुत अधिक देरी से दिल्ली पहुँची. जब यह दिल्ली पहुँची तो इसके वापस पटना लौटने का समय हो गया था. चूंकि यही रैक वापस पटना जाती है, अत: ताबड़तोड़ इसी रैक को बिना उचित मेंटेनेंस या साफ सफाई के वापस पटना लौटा दिया गया. यहां तक तो ठीक था, परंतु यात्रियों के खाने पीने का सामान उचित मात्रा में रसोई भंडार यान में लोड नहीं किया गया. समय का जो अकाल था.
जो थोड़ा मोड़ा राशन रसोई भंडार में था, उसे प्रथम श्रेणी और वातानुकूलित यात्रियों को दे दिया गया. स्लीपर क्लास के यात्रियों को भोजन-पानी नहीं दिया गया. वे निचले दर्जे में यात्रा जो कर रहे थे, लिहाजा, निचले स्तर के ट्रीटमेंट के ही काबिल थे. भले ही उनमें भूख से बिलबिलाते नन्हें मुन्ने बच्चे भी रहे हों. रेल्वे का विभाग चाहता तो बीच के दो स्टेशनों कानपुर तथा मुगलसराय जहाँ सम्पूर्ण क्रांति कुछ समय के लिए रूकती है, वहां पहले से संदेश भेज कर खानपान की सामग्रियाँ तैयार रखवा कर रेलगाड़ी के पहुँचते ही लोड करवा सकती थी, परंतु नहीं. किसे फ़िकर है? भारतीय रेलवे में सबकी नौकरी पक्की है भाई. और जब तक ट्रेनें आपस में भिड़ न जाएँ, जवाबदारी की किसे चिंता.
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ग़ज़ल
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बताते हो मुझे मेरी जवाबदारियाँ
याद नहीं है अपनी कारगुजारियाँ
फ़ायदे का हिसाब लगाने से पहले
देखनी तो होंगी अपनी देनदारियाँ
देश प्रदेश शहर धर्म और जाति
पर्याप्त नहीं है इतनी जानकारियाँ
काल का दौर ऐसा कैसा है आया
असर भी खो चुकी हैं किलकारियाँ
बैठा रह तू भले ही ग़मज़दा रवि
सबको तो पता है तेरी कलाकारियाँ
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