tag:blogger.com,1999:blog-7370482.post8145442896773774796..comments2024-02-27T01:29:00.603+05:30Comments on छींटे और बौछारें: चंद दीवाने हैं मेरे शहर के मोहल्ले में भीरवि रतलामीhttp://www.blogger.com/profile/07878583588296216848noreply@blogger.comBlogger6125tag:blogger.com,1999:blog-7370482.post-1040945086380517892007-04-14T19:06:00.000+05:302007-04-14T19:06:00.000+05:30रवि जी, ऐसे मौके आते हैं किंतु समाज विशेष के बीच ब...रवि जी, ऐसे मौके आते हैं किंतु समाज विशेष के बीच बंधन लोगों को रास नहीं आता। मेरे मन से भी यही आवाज़ निकली थी। और उसे मैंने अपने चिट्ठे पर तत्काल चस्पा दिया। [url=http://www.gammat.blogspot.com]यहाँ[/url] देखिएAnonymousnoreply@blogger.comtag:blogger.com,1999:blog-7370482.post-42168933330149304362007-04-14T17:38:00.000+05:302007-04-14T17:38:00.000+05:30पूरा भोपाल पगला गया है क्या?पूरा भोपाल पगला गया है क्या?Anonymousnoreply@blogger.comtag:blogger.com,1999:blog-7370482.post-58878996131827835302007-04-14T17:29:00.000+05:302007-04-14T17:29:00.000+05:30दुख इस बात का होता है की भुगतना महिलाओं को पड़ता है...दुख इस बात का होता है की भुगतना महिलाओं को पड़ता है, कोई नहीं कहेगा लड़का बाहर नहीं जाएगा, या मोबाइल नहीं रखेगा. सारी बंदीशे लडंअकियों पर लादी जाएगी. :( जैसे तैसे थोड़ी आजादी मिली है....Anonymousnoreply@blogger.comtag:blogger.com,1999:blog-7370482.post-13482009007892813712007-04-14T17:21:00.000+05:302007-04-14T17:21:00.000+05:30इन मुर्खाधीराजों का विरोध करने का सबसे अच्छा तरीका...इन मुर्खाधीराजों का विरोध करने का सबसे अच्छा तरीका यह है कि उनकी बातों पर ध्यान ना देकर अपनी सामान्य जिन्दगी जीते रहो. तब तक जब तक पानी सिर के उपर से ना गुजर जाए.. <BR/><BR/>अगर कोई तालीबान स्टाइल में हाथ पैर भी चलाने लगे तब तो अदालत का दरवाजा खटखटाना ही हितकर है. वही आखिरी उम्मीद बची है.<BR/><BR/><BR/>वैसे भोपूँछाप टीवी समाचार चैनलों में भी शरण ले सकते हैं.. ;)दो चार तो मौहल्ले में होंगे.पंकज बेंगाणीhttps://www.blogger.com/profile/05608176901081263248noreply@blogger.comtag:blogger.com,1999:blog-7370482.post-33476089042928219032007-04-14T16:37:00.000+05:302007-04-14T16:37:00.000+05:30अगर इन्ही कूप मंडूपों से ही आज का समाज है तो बेहतर...अगर इन्ही कूप मंडूपों से ही आज का समाज है तो बेहतर है कि मनुष्य एक समाजिक प्राणी न रहे.Ramashankarhttps://www.blogger.com/profile/09873866884519903643noreply@blogger.comtag:blogger.com,1999:blog-7370482.post-36860613431520917962007-04-14T16:26:00.000+05:302007-04-14T16:26:00.000+05:30व्यंजल अच्छी है।व्यंजल अच्छी है।Anonymousnoreply@blogger.com