tag:blogger.com,1999:blog-7370482.post3541829090170717755..comments2024-02-27T01:29:00.603+05:30Comments on छींटे और बौछारें: टाइटन आई+ : नाम बड़े चश्मे छोटे!रवि रतलामीhttp://www.blogger.com/profile/07878583588296216848noreply@blogger.comBlogger11125tag:blogger.com,1999:blog-7370482.post-34137078908749562252010-12-15T09:12:39.541+05:302010-12-15T09:12:39.541+05:30सलामत रहें नजरें, आंख खोल देने वाली पोस्ट.सलामत रहें नजरें, आंख खोल देने वाली पोस्ट.Rahul Singhhttps://www.blogger.com/profile/16364670995288781667noreply@blogger.comtag:blogger.com,1999:blog-7370482.post-43596403638070892762010-12-05T22:03:02.394+05:302010-12-05T22:03:02.394+05:30अच्छा हुआ आपसे पता चल गया. मैंने तो तय कर लिया था ...अच्छा हुआ आपसे पता चल गया. मैंने तो तय कर लिया था कि भोपाल जाकर टाइटन से ही चश्मा बनवाउंगा.निशांत मिश्र - Nishant Mishrahttps://www.blogger.com/profile/08126146331802512127noreply@blogger.comtag:blogger.com,1999:blog-7370482.post-39369975810435658672010-12-03T20:34:55.446+05:302010-12-03T20:34:55.446+05:30मेरा एक चेला है जो खुद ही लेन्स बनाता है .साधारण म...मेरा एक चेला है जो खुद ही लेन्स बनाता है .साधारण मिलने वाले शीशो को घिस कर बनाये जाते है लेन्स ,मशीनो द्वारा .उसका छोटा सा कारखाना है और वह परफ़ेक्ट लेन्स बनाता हैdhiru singh { धीरेन्द्र वीर सिंह }https://www.blogger.com/profile/06395171177281547201noreply@blogger.comtag:blogger.com,1999:blog-7370482.post-73586324127010922082010-12-02T23:36:37.907+05:302010-12-02T23:36:37.907+05:30इस पर रोल्स रॊयस की कहानी याद आई। उसकी रेप्यूटेशन ...इस पर रोल्स रॊयस की कहानी याद आई। उसकी रेप्यूटेशन बहुत है आपकी आइ+ से ज़्यादा:) हुआ यूं कि गाडी खरीदी गई और दो माह बाद सताने लगी। कम्पनी में भेजा गया तो पता चला कि उसमें इंजन ही नहीं लगा था। सवाल हुआ कि इतने दिन चली कैसे.... अरे वो तो रेप्यूटेशन पर चल गई :) :)चंद्रमौलेश्वर प्रसादhttps://www.blogger.com/profile/08384457680652627343noreply@blogger.comtag:blogger.com,1999:blog-7370482.post-75838313267323938392010-12-02T22:57:04.024+05:302010-12-02T22:57:04.024+05:30हमरो इंहा खुल गेहे ये ह, बने बतायेस भईया, अब टराई ...हमरो इंहा खुल गेहे ये ह, बने बतायेस भईया, अब टराई नई करन भईया.36solutionshttps://www.blogger.com/profile/03839571548915324084noreply@blogger.comtag:blogger.com,1999:blog-7370482.post-50142353721138327732010-12-02T19:10:35.176+05:302010-12-02T19:10:35.176+05:30हमारा चश्मा तो पुरानी तकनीक का है - सस्ता भी! और क...हमारा चश्मा तो पुरानी तकनीक का है - सस्ता भी! और काम भी दे रहा है।Gyan Dutt Pandeyhttps://www.blogger.com/profile/05293412290435900116noreply@blogger.comtag:blogger.com,1999:blog-7370482.post-80796655977331749452010-12-02T18:11:07.440+05:302010-12-02T18:11:07.440+05:30यूनीक लोगो की प्रोबलेम भी यूनिक होती है | कही वो आ...यूनीक लोगो की प्रोबलेम भी यूनिक होती है | कही वो आपको मक्खन लगाने के लिये ही यूनिक बता रहा हो | खैर आपने अपनी बात सबके साथ शेयर की अब पाठक तो सावधान हो ही जायेंगे |naresh singhhttps://www.blogger.com/profile/16460492291809743569noreply@blogger.comtag:blogger.com,1999:blog-7370482.post-73362674831380430162010-12-02T17:50:34.939+05:302010-12-02T17:50:34.939+05:30ooo. Thanks for saving me! :)ooo. Thanks for saving me! :)Anonymousnoreply@blogger.comtag:blogger.com,1999:blog-7370482.post-45278653348151407152010-12-02T15:59:26.060+05:302010-12-02T15:59:26.060+05:30टाटा के नाम के चक्कर में बस वहीं जाने वाले थे, मगर...टाटा के नाम के चक्कर में बस वहीं जाने वाले थे, मगर युनिक समस्याग्रस्त बनना मंजूर नहीं. ठीक किया ब्लॉग डाल कर.संजय बेंगाणीhttps://www.blogger.com/profile/07302297507492945366noreply@blogger.comtag:blogger.com,1999:blog-7370482.post-82851511263415958772010-12-02T15:04:21.603+05:302010-12-02T15:04:21.603+05:30बहुत अच्छा किया कि बता दिया।बहुत अच्छा किया कि बता दिया।प्रवीण पाण्डेयhttps://www.blogger.com/profile/10471375466909386690noreply@blogger.comtag:blogger.com,1999:blog-7370482.post-15392558949911633092010-12-02T14:07:00.243+05:302010-12-02T14:07:00.243+05:30आपकी समस्या यूनीक नहीं है| हमारे पापा के साथ भी यह...आपकी समस्या यूनीक नहीं है| हमारे पापा के साथ भी यही हुआ| पापा बैंगलूर आये हुए थे और उन्हें नया चश्मा बनवाना था| हम उन्हें विज़न एक्सप्रेस लेकर गए, यूँ जाना वो भी टाइटन आई + थे, पर हमारे घर के पास कोई शो रूम नहीं था तो हमने विज़न एक्सप्रेस चुना, पर अनुभव उनका बिलकुल आपके जैसा ही था| ४००० का चश्मा २ हम्फ्ते में जब बन कर आया तो उन्हें उससे डबल विज़न दिख रहा था| कम्प्लेंट करने पर उन्होंने कहा की आपकी समस्या तो यूनीक है, आपका केस बहुत कॉम्प्लीकेटेड है, आप किसी आई डाक्टर से प्रिस्क्रिप्शन लेकर आइये| बाद में प्रिस्क्रिप्शन लाने पर भी लेंस ढीले ही बने| इसे कहते हैं ऊँची दूकान फीके पकवान|Sarika Saxenahttps://www.blogger.com/profile/07060610260898563919noreply@blogger.com