tag:blogger.com,1999:blog-7370482.post922568241825405108..comments2024-02-27T01:29:00.603+05:30Comments on छींटे और बौछारें: अगर मर जाऊँ तो रोने मत आना...रवि रतलामीhttp://www.blogger.com/profile/07878583588296216848noreply@blogger.comBlogger12125tag:blogger.com,1999:blog-7370482.post-12775016967265541412007-12-02T07:23:00.000+05:302007-12-02T07:23:00.000+05:30अपने ब्लॉग को किसके पास फेकोगे ? मैं भी और हिन्दी ...अपने ब्लॉग को किसके पास फेकोगे ? मैं भी और हिन्दी ब्लागरों के साथ कैच करने के लिए नीचे लेन में लग जाऊShailendrahttps://www.blogger.com/profile/08957657175076478012noreply@blogger.comtag:blogger.com,1999:blog-7370482.post-33027452756783023252007-11-28T12:58:00.000+05:302007-11-28T12:58:00.000+05:30वाह रतलामी जी बहुत ही रोचक वसीयत है।वाह रतलामी जी बहुत ही रोचक वसीयत है।नीरज शर्माhttps://www.blogger.com/profile/02856956576255042363noreply@blogger.comtag:blogger.com,1999:blog-7370482.post-17193135779842604432007-11-27T14:01:00.000+05:302007-11-27T14:01:00.000+05:30जबरदस्त ...जबरदस्त वसीयत की है आपने. किंतु कठिनाइयों से भरपूर. आप तो चले जायेंगे. पीछे वसीयत पुरी करने वालों को पापड़ बेलना पड़ जायेगा. सब अगड़म-बगड़म है.बालकिशनhttps://www.blogger.com/profile/18245891263227015744noreply@blogger.comtag:blogger.com,1999:blog-7370482.post-60009464595050057182007-11-27T09:49:00.000+05:302007-11-27T09:49:00.000+05:30टिप्पणी में लिखना ठीक नहीं, कई लोग ऐसे है जिन्होने...टिप्पणी में लिखना ठीक नहीं, कई लोग ऐसे है जिन्होने कुछ कुछ ऐसा ही किया है.<BR/><BR/>देह दान अनुकरणीय है.Anonymousnoreply@blogger.comtag:blogger.com,1999:blog-7370482.post-32444680068755644212007-11-27T07:00:00.000+05:302007-11-27T07:00:00.000+05:30रवी जी, मैंने अपनी आखें बहुत साल पहले ही दान कर दी...रवी जी, <BR/>मैंने अपनी आखें बहुत साल पहले ही दान कर दी थी फिर कई साल पहले अपनी वसीयत लिखी है। जिसमें बहुत कुछ ऐसा ही है। <BR/>शरीर मेडिकल कॉलेज को और जो पैसे खर्चा होते हैं वे अन्धों के स्कूल को दे दिये जांय। यह भी है कि न कोई शोक सभा न की जाय न कहीं काम की जगह बन्द की जाय। <BR/>यदि मैं कॉमा में चला जाऊं या ऐसी दशा हो जाय कि अपनी बात न बता पाऊं तब मुझे हमेशा के लिये सुला दिया जाय। मैं ऐसे जिन्दगी नहीं जीना चाहता जिसमें दूसरों पर निर्भर रहूं।उन्मुक्तhttps://www.blogger.com/profile/13491328318886369401noreply@blogger.comtag:blogger.com,1999:blog-7370482.post-80812361422200951312007-11-27T06:49:00.000+05:302007-11-27T06:49:00.000+05:30कपया फ़जीहत से बचने के लिये वसीहत पूरी करे और बताये...कपया फ़जीहत से बचने के लिये वसीहत पूरी करे और बताये चल अचल संपत्ती का क्या किया...? हम तो इसी उम्मीद से यहा आये थे की चलो कुछ तो हमारे नाम भी कर छोड कर जा रहे होगे ..अगर आप उसमे से कुछ नही देने वाले तो हम तो वैसे ही नही आने वाले थे जी....:)<BR/>सच मे शानदार वसीहत है जी इसी को मेरी भी मान लिया जायेArun Arorahttps://www.blogger.com/profile/14008981410776905608noreply@blogger.comtag:blogger.com,1999:blog-7370482.post-31407929411134816902007-11-27T06:37:00.000+05:302007-11-27T06:37:00.000+05:30कानपुर मालरोड पर करंट बुक डिपो के संचालक श्री खेता...कानपुर मालरोड पर करंट बुक डिपो के संचालक श्री खेतान ने वर्षों पहले ऐसी ही वसीयत की थी। मेरी जानकारी में वह पहली थी और आदर्श भी। अनेक लोगों ने उसका अनुसरण भी किया था। मैं उसे तलाश करने का प्रयत्न करता हूँ। इस की अनूप शुक्ल अधिक जानकारी दे सकते हैं।दिनेशराय द्विवेदीhttps://www.blogger.com/profile/00350808140545937113noreply@blogger.comtag:blogger.com,1999:blog-7370482.post-77661053088703254792007-11-27T06:29:00.000+05:302007-11-27T06:29:00.000+05:30बढ़िया है.. बस मातमपुर्सी वाले बिन्दु पर पुनर्विचार...बढ़िया है.. <BR/>बस मातमपुर्सी वाले बिन्दु पर पुनर्विचार कीजिये.. मृत्यु के समय परिवार को एक सामाजिकता की ज़रूरत होती है.. कोई बैठक न होने पर वे आप के अभाव को और अधिक तीव्रता से महसूस करेंगे.. उनका दुख बढ़ेगा..अभय तिवारीhttps://www.blogger.com/profile/05954884020242766837noreply@blogger.comtag:blogger.com,1999:blog-7370482.post-23654998789659170882007-11-26T23:50:00.000+05:302007-11-26T23:50:00.000+05:30वसीयत अच्छी है । मेरी भी बनी पड़ी है किन्तु इतनी ना...वसीयत अच्छी है । मेरी भी बनी पड़ी है किन्तु इतनी नाटकीय नहीं । कारण यह है कि घर में कोई भी पूजा पाठ, ब्राह्मण भोग , यहाँ तक कि यदि बिजली का क्रिमेटोरिअम हो तो लकड़ी से जलाने में विश्वास नहीं करता । कुछ वर्ष पूर्व माँ के घर में एक मृत्यु हुई थी , तभी बिटिया ने पूछ लिया था कि क्या हमारे घर में भी ऐसा सब होगा। मैंने कहा था नहीं और हम सब ने यही निर्णय लिया था कि शरीर के अधिक से अधिक भाग किसी और के उपयोग में आ सकें तो अवश्य दिये जाएँ । यह सब और मेरी थोड़ी बहुत जो सम्पत्ति है उसके विषय में भी मैंने बता रखा है ।<BR/>एक बात और , मैं भी रोने आदि में विश्वास नहीं करती थी । किन्तु जब अकाल मृत्यु आती है तो ये संस्कार आदि करने में मनुष्य इतना व्यस्त हो जाता है कि यंत्र की तरह दौड़ भाग करता रहता है । यदि यह सब ना हो तो शायद मनुष्य इस सदमे से उबर ही न पाए । पहले १३ दिन किस तरह दौड़ते भागते निकल गये पता ही नहीं चला ।<BR/>घुघूती बासूतीghughutibasutihttps://www.blogger.com/profile/06098260346298529829noreply@blogger.comtag:blogger.com,1999:blog-7370482.post-41780047056124669852007-11-26T22:50:00.000+05:302007-11-26T22:50:00.000+05:30लोहिया जी की वसीयत तो अनुकरणीय ही है वाकई!!और आपने...लोहिया जी की वसीयत तो अनुकरणीय ही है वाकई!!<BR/>और आपने तो अद्भुत वसीयत लिख डाली है!!Sanjeet Tripathihttps://www.blogger.com/profile/18362995980060168287noreply@blogger.comtag:blogger.com,1999:blog-7370482.post-68027839581058114122007-11-26T22:02:00.000+05:302007-11-26T22:02:00.000+05:30रवि जी अब अनुभव हो रहा है कि मेरा बेटा अलग नहीं है...रवि जी <BR/>अब अनुभव हो रहा है कि मेरा बेटा अलग नहीं है... <BR/>रवि जी और दिव्यभ जी , समय निकाल कर मेरी यह पोस्ट ज़रूर पढिएगा. <BR/><BR/>http://meenakshi-meenu.blogspot.com/2007/11/blog-post_05.htmlमीनाक्षीhttps://www.blogger.com/profile/06278779055250811255noreply@blogger.comtag:blogger.com,1999:blog-7370482.post-3962482381926188302007-11-26T20:17:00.000+05:302007-11-26T20:17:00.000+05:30बिल्कुल अनोखी वसीयत…।ज्याद दर्शन है इसमें जिसे लोग...बिल्कुल अनोखी वसीयत…।<BR/>ज्याद दर्शन है इसमें जिसे लोग समझते कहां हैं…।<BR/>कुछ तो गहरी वास्तविकता है…जिससे हम लगातार भागते रहे हैं…।Divine Indiahttps://www.blogger.com/profile/14469712797997282405noreply@blogger.com