tag:blogger.com,1999:blog-7370482.post3338024219284839728..comments2024-02-27T01:29:00.603+05:30Comments on छींटे और बौछारें: हिन्दी पखवाड़ा : हिन्दी पुस्तकालय वि. अंग्रेज़ी लाइब्रेरीरवि रतलामीhttp://www.blogger.com/profile/07878583588296216848noreply@blogger.comBlogger8125tag:blogger.com,1999:blog-7370482.post-73569564309885816842008-09-22T16:48:00.000+05:302008-09-22T16:48:00.000+05:30मुझे आश्चर्य इस बात का है कि मप्र सरकार के अधीन पु...मुझे आश्चर्य इस बात का है कि मप्र सरकार के अधीन पुस्तकालय में हिन्दी में पुस्तकें नहीं हैं।Anonymousnoreply@blogger.comtag:blogger.com,1999:blog-7370482.post-2284225509690291232008-09-22T12:51:00.000+05:302008-09-22T12:51:00.000+05:30ये मुझे पता था की ब्रिटिश लायब्रेरी में सिर्फ इंग्...ये मुझे पता था की ब्रिटिश लायब्रेरी में सिर्फ इंग्लिश किताबें ही मिलती हैं...इसलिए मैंने भी मासिक बजट में से किताबों का बजट अलग कर रखा है...खरीद कर पढ़ती हूँ जिससे खुद की ही लायब्रेरी तैयार हो जाती है!pallavi trivedihttps://www.blogger.com/profile/13303235514780334791noreply@blogger.comtag:blogger.com,1999:blog-7370482.post-11382652030170094422008-09-22T11:12:00.000+05:302008-09-22T11:12:00.000+05:30यहाँ बेंगळूरु में भी सरकारी पुस्तकालयों का यही हाल...यहाँ बेंगळूरु में भी सरकारी पुस्तकालयों का यही हाल है और ब्रिटिश कौन्सिल लाइब्ररी तो बहुत आकर्षक है और उपयोगी भी।<BR/>कुछ साल पहले मैं वहाँ सदस्य था लेकिन सदस्यता renew नहीं किया।<BR/>इंटरनेट पर इतना समय चला जाता है कि किताब पढ़ने के लिए समय मिलता नहीं था।<BR/><BR/>सोच रहा हूँ एक e book reader खरीद लूँ।<BR/>मन चाहे किताबों को download करके पढ़ सकेंगे।<BR/>आज नहीं तो कल हिन्दी की किताबें भी pdf format में शायद उपलब्ध होंगे। पैसे खर्च करने के लिए भी तैयार हूँ।<BR/>जानता हूँ कि laptop पर भी पढ़ा जा सकता है।<BR/>लेकिन e book reader अधिक सुविधाजनक रहेगा।<BR/><BR/>इस विषय में औरों के विचार जानने के लिए उत्सुक हूँ।<BR/>सुझावों का भी स्वागत है।<BR/>शुभकामनाएं<BR/>विश्वनाथG Vishwanathhttps://www.blogger.com/profile/13678760877531272232noreply@blogger.comtag:blogger.com,1999:blog-7370482.post-5191118968713195092008-09-21T23:40:00.000+05:302008-09-21T23:40:00.000+05:30आपने बहुत सही मुद्दे पे बात छेड़ी है,रायपुर में पात...आपने बहुत सही मुद्दे पे बात छेड़ी है,<BR/>रायपुर में पाता हूं कि लाइब्रेरी नाम की चीज न के बराबर है।<BR/>एक है विवेकानंद आश्रम की लाइब्रेरी हिसके बारे में अपने ब्लॉग में लिख चुका हूं, दूसरा है सरकारी अर्थात आजकल शहीद स्मारक भवन मे स्थानांतरित लाइब्रेरी जहां किताबें इस हाल में रखी है कि पूछिए ही मत।<BR/>तीसरा है देशबन्धु अखबार की लाइब्रेरी जहां मुफ़्त में किताबें आती है पर देखभाल का अभाव साफ झलकता है।<BR/>इसके अलावा जिला पुस्तकालय भी है जहां अभी तक मैं पहुंचा नही हूं।<BR/>किसी दिन दिमाग सरकने पर वहां की भी सदस्यता लेने पहुंच जाऊंगा।<BR/><BR/>पर सवाल यह है कि लाइब्रेरी के नाम पे खानापूर्ति ही क्यों हर जगह?Sanjeet Tripathihttps://www.blogger.com/profile/18362995980060168287noreply@blogger.comtag:blogger.com,1999:blog-7370482.post-30405108825254893212008-09-21T20:19:00.000+05:302008-09-21T20:19:00.000+05:30यह एक कारण है कि मैंने किसी पुस्तकालय की सदस्यता न...यह एक कारण है कि मैंने किसी पुस्तकालय की सदस्यता नहीं ले रखी क्योंकि किसी एक पुस्तकालय में मन माफ़िक सभी चीज़े नहीं मिलेंगी। ज्ञान जी की खरीदने की बात से सहमति है, साल भर में मेरा किताबें खरीदने पर तकरीबन 3000-3500 का खर्च होता है(कम ज़्यादा होता रहता है, जैसे इस वर्ष काफ़ी कम हुआ है) पर इत्मीनान रहता है कि पुस्तक मेरे पास है और कभी भी पढ़ी जा सकती है। ऑफिस की मौसमी व्यस्तता के चलते कोई निश्चित समय सीमा नहीं होती कि एक उपन्यास आदि १ माह में पढ़ा जाएगा या २-३ माह में, इसलिए पुस्तकालय की सदस्यता अपने लिए वैसे ही नहीं है! परन्तु पुस्तकें खरीदने का लफ़ड़ा यह है कि घरवालों की गालियाँ सुननी पड़ती हैं कि आखिर इतनी पुस्तकें रखी कहाँ जाएँगी!! :(<BR/><BR/>वैसे यदि मैं होता तो अंग्रेज़ी वाले पुस्तकालय की सदस्यता ले लेता क्योंकि हिन्दी में मैं सिर्फ़ उपन्यास ही पढ़ता हूँ जो कि नुक्कड़ वाले बुक स्टॉल से किराए पर लाकर पढ़ लेता हूँ। ;)Anonymousnoreply@blogger.comtag:blogger.com,1999:blog-7370482.post-49580015874167560952008-09-21T18:04:00.000+05:302008-09-21T18:04:00.000+05:30सेन्ट्रल लाइब्रेरी का ब्यौरा देकर आपने बचपन की य...सेन्ट्रल लाइब्रेरी का ब्यौरा देकर आपने बचपन की याद दिला दी । तब हफ्ते में एक बार साइकिल से अपने इलाक़े से सेन्ट्रल लाइब्रेरी जाया करते थे । वो इस लाइब्रेरी के अच्छे दिन होते थे । तब धर्मयुग से लेकर सारिका और साप्ताहिक हिंदुस्तान से लेकर कादंबिनी तक सारी पत्रिकाएं और दैनिक भास्कर से लेकर हिंदू तक के सारे अखबार वहां मौजूद होते थे । और खासी भीड़ भी रहा करती थी । तब की हमारी ट्रिक ये होती थी कि अपनी पसंदीदा किताब पढ़ रहे व्यक्ति के सामने कोई चकाचक फिल्मी पत्रिका लेकर बैठ जाते थे । वो बहक जाता था । थोड़ी देर बाद फिल्मी पत्रिका वो पढ़ रहा होता था और हम वो पढ़ रहे होते थे जो हमें पढ़ना होता था । <BR/>अब मुद्दे की बात । जो दशा सेन्ट्रल लाइब्रेरी की आज है । उससे कुछ बेहतर यहां मुंबई की ऐशियाटिक लाइब्रेरी की है । इससे ये अहसास होता है कि अब राज्य सरकारों के तहत चल रही लाइब्रेरियां गर्त में जा रही हैं । मुंबई की ब्रिटिश काउंसिल लाइब्रेरी और विराट और चकाचक है । इसकी ओर से ईवेन्ट्स भी होते हैं । दरअसल सरकारी महकमे लाइब्रेरियों के महत्त्व को समझते नहीं हैं । हो सकता है कि उन्हें ये बेकार की बातें लगती हों । हम जैसे लाइब्रेरीजीवियों के लिए ये वाकई अफसोस की बात है ।यूनुसhttps://www.blogger.com/profile/05987039597915161921noreply@blogger.comtag:blogger.com,1999:blog-7370482.post-35046034091061053572008-09-21T16:33:00.000+05:302008-09-21T16:33:00.000+05:30रुपये 2300.- वार्षिक में थोड़ा और मिला कर मैं हिन्द...रुपये 2300.- वार्षिक में थोड़ा और मिला कर मैं हिन्दी की वांच्छित पुस्तकें खरीद लिया करूंगा और इत्मीनान से पढ़ा करूंगा। <BR/>यह अवश्य है कि वित्त-मंत्रालय (पत्नीजी) की सहमति लेनी होगी! :-)Gyan Dutt Pandeyhttps://www.blogger.com/profile/05293412290435900116noreply@blogger.comtag:blogger.com,1999:blog-7370482.post-31329868184684838212008-09-21T14:22:00.000+05:302008-09-21T14:22:00.000+05:30'ब्रिटिश काउन्सिल लाइब्रेरी' से नाम बदलकर 'स्वामी ...'ब्रिटिश काउन्सिल लाइब्रेरी' से नाम बदलकर 'स्वामी विवेकानन्द पुस्तकालय' करने से क्या लाभ? सोच तो वही औपनिवेषिक रह गयी। क्या अन्तर पड़ता है यदि भारत को गोरे अंग्रेज शासन करें या भ्रष्ट भूरे देसी अंग्रेज?अनुनाद सिंहhttps://www.blogger.com/profile/05634421007709892634noreply@blogger.com