tag:blogger.com,1999:blog-7370482.post116126011793987081..comments2024-02-27T01:29:00.603+05:30Comments on छींटे और बौछारें: देसीपंडित का क्रियाकर्म...रवि रतलामीhttp://www.blogger.com/profile/07878583588296216848noreply@blogger.comBlogger8125tag:blogger.com,1999:blog-7370482.post-3134473405518190772012-01-25T18:49:59.180+05:302012-01-25T18:49:59.180+05:30इस पोस्ट से ब्लॉग के कई पुरातन रूप पता चले..इस पोस्ट से ब्लॉग के कई पुरातन रूप पता चले..दीपक बाबाhttps://www.blogger.com/profile/14225710037311600528noreply@blogger.comtag:blogger.com,1999:blog-7370482.post-1161361538033560132006-10-20T21:55:00.000+05:302006-10-20T21:55:00.000+05:30वैसे तो मैं अपनी टिप्पणी यहीं पर दे रहा था परन्तु ...वैसे तो मैं अपनी टिप्पणी यहीं पर दे रहा था परन्तु लिखते लिखते इतनी बड़ी हो गई कि सोचा अपने ब्लॉग पर ही लिख डालूँ(वैसे भी वहाँ बहुत दिनों से कुछ लिखा नहीं था)। इस selfishness के लिए रवि जी क्षमा करना, मेरे विचार <A HREF="http://www.amitgupta.in/2006/10/20/why-surprised/" REL="nofollow">यहाँ</A> पढ़ें। :)Anonymousnoreply@blogger.comtag:blogger.com,1999:blog-7370482.post-1161328780946029512006-10-20T12:49:00.000+05:302006-10-20T12:49:00.000+05:30अकेला व्यक्ति लंबे समय तक संस्था का विकल्प नहीं रह...अकेला व्यक्ति लंबे समय तक संस्था का विकल्प नहीं रह सकता। स्वैच्छिक भाव से प्रतिफल की कामना से रहित होकर एकल प्रयास के रूप में आरंभ किए गए सामूहिक प्रकृति के कार्यों का स्वरूप जब विशाल होने लगता है तब समय नियोजन और लागत प्रबंधन का प्रश्न अत्यंत महत्वपूर्ण हो जाता है। कोई एक व्यक्ति लंबे समय तक उनके लिए समय निकालने और लागत का वहन करने में समर्थ नहीं हो सकता। ऐसे कार्यों के लिए समय और लागत की साझेदारी होना अति आवश्यक है। <BR/><BR/>यह सुखद है कि हिन्दी चिट्ठाकारों में सामूहिक सहयोग की भावना बलवती है और मुझे आशा है कि चिट्ठा चर्चा, नारद और निरंतर जैसे हमारे संस्थागत प्रयासों का हश्र देशी पंडित की तरह नहीं होने दिया जाएगा।Srijan Shilpihttps://www.blogger.com/profile/09572653139404767167noreply@blogger.comtag:blogger.com,1999:blog-7370482.post-1161323702744453702006-10-20T11:25:00.000+05:302006-10-20T11:25:00.000+05:30रवि जी,अगर यह 'देसी पंडित' की अंतिम विदाई और उसके ...रवि जी,<BR/>अगर यह 'देसी पंडित' की अंतिम विदाई और उसके तीये की बैठक की सूचना से उपजा 'श्मशानी वैराग्य' है तो कोई चिंता की बात नहीं . पर अगर यह चिन्तन और चिंता बहुत दिनों से आपके मन में उमड़-घुमड़ रही है तो इस पर गंभीर बहस होनी चाहिए . व्यक्तियों का मरना भी तकलीफ़देह होता है पर संस्थाओं का मरना -- सामूहिक सपने का मरना -- तो बेहद चिंताजनक है. <BR/>मैं आप से पूरी तरह सहमत हूं कि अगर हम एक सपने को मूर्त रूप देने के बाद उसे जारी रख पाने में असमर्थ हों तो इसे नष्ट कर देने या मझधार में छोड़ देने से बेहतर है कि इसे अगली पीढी को सौंप दिया जाए .Anonymousnoreply@blogger.comtag:blogger.com,1999:blog-7370482.post-1161278295545067252006-10-19T22:48:00.000+05:302006-10-19T22:48:00.000+05:30कई विषय वस्तु ऐसी होती हैं कि उन पर असमय चिंता कर ...कई विषय वस्तु ऐसी होती हैं कि उन पर असमय चिंता कर वर्तमान को भी रौंदा जा सकता है.<BR/>मै नहीं समझता उतने दूरगामी स्थिती पर बहुत विचार कर कोई खास लाभ होगा. सही है आस पास होती घटनाओं के प्रति सजग रहना चाहिये और उनसे सीख लेना चाहिये मगर हम भी एक दिन उसी गति को प्राप्त होंगे, की चिंता सिर्फ़ चिता का कार्य करेगी और कुछ भी नहीं.<BR/><BR/>देशी पंडीत का यह हश्र होगा, यह कभी विचार में नहीं था. माना जा सकता है यह उनका व्यतिगत प्रयास था मगर जब कोई वस्तु सार्वजनिक उपयोगिता की हो जाये और वो भी सबके निःस्वार्थ सहयोग से, तब उसको इस तरह का अंजाम देने का हक तो उसे शुरु करने वाले का भी नहीं है, कम से कम नैतिकता के आधार पर तो.Udan Tashtarihttps://www.blogger.com/profile/06057252073193171933noreply@blogger.comtag:blogger.com,1999:blog-7370482.post-1161274454165207702006-10-19T21:44:00.000+05:302006-10-19T21:44:00.000+05:30आपकी चिंतायें जायज हैं.मैंने अभी-अभी चिट्ठा चर्चा ...आपकी चिंतायें जायज हैं.मैंने अभी-अभी चिट्ठा चर्चा के बारे में अपने सभी साथियों को मेल लिखी है.सुझाव मांगे हैं ताकि इसे इसकी निअय्मितता बनी रहे.अब चिट्ठाचर्चा के बंद होने की संभावना मुझे कम लगती है. और न ही रचनाकार के बंद होने के आसार नजर आते हैं. हां,रचनाकार के मामले में आपको और अपेक्षित सहयोग की दरकार है.आपकी यह बात सही लगती है कि इस तरह के प्रयास ब्लागस्पाट जैसी सुविधाऒं पर हों तो साधनों के लिहाज से उतनी तकलीफ <BR/>नहीं होती.अनूप शुक्लhttps://www.blogger.com/profile/07001026538357885879noreply@blogger.comtag:blogger.com,1999:blog-7370482.post-1161272078441747712006-10-19T21:04:00.000+05:302006-10-19T21:04:00.000+05:30मुझे भी भविष्य को लेकर डर लगने लगा है... कभी नारद ...मुझे भी भविष्य को लेकर डर लगने लगा है... कभी नारद या चिट्ठाचर्चा या भगवान ना करे तरकश बन्द करना पडा तो????<BR/><BR/>हे भगवान... बुरा सपना ....पंकज बेंगाणीhttps://www.blogger.com/profile/05608176901081263248noreply@blogger.comtag:blogger.com,1999:blog-7370482.post-1161268249108052602006-10-19T20:00:00.000+05:302006-10-19T20:00:00.000+05:30हर घटना इतिहास बनते बनते शिक्षा दे जाती हैं. देसी ...हर घटना इतिहास बनते बनते शिक्षा दे जाती हैं. देसी पंडीत का बन्द होना आघात जनक घटना हैं, जो भविष्य के प्रति सचेत करती हैं.संजय बेंगाणीhttps://www.blogger.com/profile/07302297507492945366noreply@blogger.com