मेरा तकनीकी लॉकडाउन

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(कादम्बिनी, जून 2020 में पूर्व प्रकाशित) ठीक है, लॉकडाउन ने सभी को तंग किया. कुछ को अधिक तो कुछ को कम. मगर, जरा गंभीरता से सोचें, कि यदि इस ...


(कादम्बिनी, जून 2020 में पूर्व प्रकाशित)


ठीक है, लॉकडाउन ने सभी को तंग किया. कुछ को अधिक तो कुछ को कम. मगर, जरा गंभीरता से सोचें, कि यदि इस लॉकडाउन को हमने दस-बीस साल पहले भुगता होता तो वो कैसा होता? तब न ऑनलाइन सुविधाएँ थी, न होम डिलीवरी सिस्टम और न ही कनेक्टिविटी और वीडियो कॉलिंग आदि की आसान सुविधाएँ. यकीनन वो हम सब के लिए बहुत-बहुत ही बुरा, बहुत भारी होता. अभी की उपलब्ध तकनीकों ने तो हम सभी के लिए जिंदगी बेहद आसान कर दी है – लॉकडाउन जैसे कठिन समय में भी. मेरे जैसे तकनीक के प्रथम प्रयोगकर्ताओं के लिए तो समझिए कि यह लॉकडाउन केक-वाक की तरह था. आइए, मैं आपके साथ अपना अनुभव साझा करता हूँ कि कैसे इस लॉकडाउन से, तकनीक की सहायता से मुझपर न्यूनतम फर्क पड़ा. बहुत बार तो मुझे यह भान ही नहीं हुआ कि मैं अभी लॉकडाउन में हूँ! और शायद निकट भविष्य में कभी इससे भी गंभीर, इससे भी वृहद लॉकडाउन का विकट समय आए तो हम अपने अनुभवों से कुछ सीख तो लें कि उपलब्ध तकनीक की सहायता से हम इसके गंभीर प्रभाव को अधिकाधिक कैसे कम कर सकते हैं.

जब लॉकडाउन घोषित हुआ, तो इसकी संभावना हर कनेक्टेड व्यक्ति को थी, मुझे भी थी. आज नहीं तो कल ये होना ही था. लंबे समय से कयास लग रहे थे. लोगों ने अपने होमवर्क करने प्रारंभ कर दिए थे. अंतिम समय में पैनिक होने के बजाए, पहले से ही तैयारी चल रही थी. वैश्विक समाचारों के अनुरूप संकेत मिल रहे थे कि कम से कम महीने भर घर में बंद रहने की तैयारी है. तैयारी मैंने भी की थी. ये थी मेरी तैयारी -

मैंने अपने फ़ाइबर-ब्रॉडबैंड का प्लान चेक किया. घर में अधिक रहना था तो काम के लिए तथा मनोरंजन के लिए अधिक बैंडविड्थ की जरूरत तो होगी ही. डेटा के बगैर आज के मनुष्य का जीवन भी कोई जीवन है? मैंने अपना प्लान अपग्रेड कर दोगुना कर लिया. कुछ अतिरिक्त टॉप-अप भी ले लिए, कि अचानक जब प्लान खत्म हो जाए, तो इंटरनेट अटके नहीं, अबाध चलता रहे. एक बड़ा काम तो हो गया. मेरे सारे कंप्यूटिंग, वाई-फाई सक्षम मनोरंजन के और संचार उपकरण अब कनेक्टेड रहेंगे, मैं भी दुनिया से अबाध कनेक्ट रहूंगा, अपडेट रहूंगा. मेरी यह तैयारी बाद में सचमुच बड़ी काम आई. लॉकडाउन के दौरान कनेक्टिविटी में कोई बाधा नहीं आई.

मैंने अपने फ़ोन में, शहर में उपलब्ध ऑनलाइन किराना-सब्जी-दैनिक उपभोग वस्तुओं के होम डिलीवरी के अधिकांश ऐप्प डाउनलोड कर इंस्टाल कर लिए, और उन्हें एक-एक बार आजमा भी लिया. लॉकडाउन में यही सहारा बनना था, और किसी एक ऐप्प या सेवा के अनुपलब्ध होने पर या डिलीवरी स्लॉट उपलब्ध नहीं होने दूसरी या तीसरी सेवा को आजमाया जा सकता था. मुझे कभी निराशा नहीं हुई. मैंने रोटेशन में सभी सेवाओं की सहायता ली और मैं निष्ठा पूर्वक यह कहूंगा कि लॉकडाउन में ऑनलाइन डिलीवरी सेवाओं ने वाकई शानदार प्रदर्शन किया है और हमें उन्हें भी कोरोना वारियर्स की तरह तालियाँ बजाकर सम्मान देना चाहिए – (तालियाँ).

मैंने फ़ोन में ऑनलाइन दवाई डिलीवरी के ऐप्प भी डाउनलोड कर लिए थे, और जब लॉकडाउन बढ़ाया गया और दवाइयां खत्म हो गईं तो एकाध दिन की देरी से ही सही, सभी आवश्यक दवाइयों की डिलीवरी हो गई. कलकत्ता और लखनऊ के भण्डार गृहों से, लॉकडाउन में भी, दवाइयां मेरे पास करीब करीब तय समय में ही पहुँचीं (फिर से तालियाँ).

बहुत अधिक समय नहीं बीता है, सिस्टम को और लोगों को ऑनलाइन भुगतान और बिल-पेमेंट सुविधाओं को अपनाने में. जैसा कि मैंने पहले ही आपको बताया है कि मैं तकनीक का प्रथम-प्रयोगकर्ताओं – अर्ली एडॉप्टर - में से हूँ, तो मेरी इस आदत ने मुझे हर संभव जगह सहायता की है. लॉकडाउन में भी और उससे पहले भी. हम सभी बिजली और टेलिफ़ोन जैसी मूलभूत सुविधा के बिल भुगतान हेतु काउंटरों की लंबी लाइन में पानी बरसात और ठंड धूप में घंटों खड़े होने का अनुभव लिए ही होंगे. परंतु हाल ही के कुछ वर्षों में यूपीआई जैसी भुगतान सेवाओं में मिली सुविधाओं ने हमारी जिंदगी इतनी आसान बनाई है कि पूछिए मत. मैंने अपने यूपीआई को बिजली टेलिफ़ोन बिल के स्वचालित भुगतान से जोड़ा है, तो इधर बिल जारी हुआ नहीं, उधर भुगतान हुआ नहीं. लॉकडाउन में बिजली का बिल कैसे जनरेट होगा, जब मीटर रीडर ही नहीं आएगा मेरे कंटेनमेंट जोन में? बिजली विभाग भी चाक चौबन्द है तकनीकी सुविधाओं से. उनके वाट्सएप्प नंबर के कृत्रिम-बुद्धि सक्षम चैटबॉक्स में अपने मीटर के वर्तमान रीडिंग की फ़ोटो भेज दें, बिल तत्काल जारी. और क्या चाहिए? वैसे भी, लॉकडाउन में, सभी के लिए, कई मामलों में भोजन-पानी से भी पहले, प्रथम आवश्यकताओं में शामिल है – अबाधित बिजली आपूर्ति.

मेरा स्मार्टवाच मुझे यह बताता रहता है कि आज आपने कितनी कैलोरी खर्च की और कितना शारीरिक श्रम किया. वो हर घंटे मुझे एक छोटा सा ब्रेक लेकर हाथ पांव हिलाने की सलाह देता है और सेट नंबर पर गहरी सांस लेने को बोलता है. वो रीयल टाइम में मेरी धड़कनों को नापता है और हृदय का एजीसी भी पढ़ता है और किसी गड़बड़ी को तुरंत सूचित करता है.

मेरे मोबाइल फ़ोन में इंस्टाल आरोग्य सेतु ऐप्प मुझे अपनी स्थिति बताता है कि मैं भले ही घर के भीतर हूँ, परंतु वहाँ भी कितना सुरक्षित हूँ – आसपड़ोस में मुझे संक्रमित करने वाले कितने लोग हैं आदि आदि. तकनीक व्यक्ति को लंबे समय तक स्वस्थ बनाने में उत्तरोत्तर प्रगति की राह पर है.

कयास तो यह भी है कि विज्ञान और तकनीक के सहारे व्यक्ति अमरत्व को प्राप्त कर सकता है. पर, फिर, नई समस्याएँ पैदा होंगी. उनका भी हल तकनीक ही निकालेगा!

नेटफ्लिक्स, प्राइम वीडियो, जी5, सोनी लिव, उल्लू आदि-आदि प्लेटफ़ॉर्मों पर तमाम तरह की इतनी मनोरंजक सामग्री है कि आपकी पूरी जिंदगी बीत जाए केवल और केवल इन्हें देखने में तब भी स्टाक खत्म न हो. परंतु केवल सिटकॉम मनोरंजन से काम नहीं बनता. चार दीवारी में चार घंटे बैठने के बाद ऊब हो ही जाती है और लगता है कि चलो, कहीं बाहर निकल चलें घूमने. पर, बाहर तो लॉक डाउन है, घूमने के नाम से निरुद्देश्य निकले तो पुलिसिया डंडे तो पड़ेंगे ही, स्वास्थ्य और समाज पर खतरा भी है. ऐसे में क्या किया जाए? भाई लोगों ने इसके लिए भी बढ़िया इंतजाम किया हुआ है, जिसका फायदा मैंने उठाया. कैसे? ऐसे –

मनुष्य एक सामाजिक प्राणी है. भीड़-भाड़ उसे पसंद है. अकेलेपन से वो न केवल घबराता है, बल्कि ऊब भी जाता है. जाहिर है, जब भी मुझे ऐसा लगा कि बाहरी दुनिया में मुझे थोड़ा घूमना चाहिए, थोड़ी भीड़-भाड़ की मुझे जरूरत है, तो उपलब्ध तकनीक की मैंने भरपूर सहायता ली. इस कदर, कि लगा कि इस तरह का सिस्टम तो लॉकडाउन की संभावना के चलते ही बनाया गया है. जब भी मैं अकेलेपन से उकताया, और लगा कि थोड़ा घूमना फिरना चाहिए, लोगों के बीच जाना चाहिए, मैंने अपने 4K – 60FPS वाले 120 इंची लेजर प्रोजैक्टर स्क्रीन पर (आप अपने सामान्य टीवी सेट पर भी यह कर सकते हैं, परंतु और बेहतर अनुभव के लिए वीआर हेडगीयर ज्यादा अच्छा होगा) जो 7.1 होम थिएटर साउंड सिस्टम से कनेक्टेड है, यूट्यूब में वाकिंग टूर के वीडियो लगा लिए और अपने इलेक्ट्रिक वाकिंग एक्सरसाइजर को वाकिंग टूर के स्पीड के मुताबिक सेट कर लिया. फिर मेरी बाहरी आभासी दुनिया की वास्तविक पैदल यात्रा प्रारंभ और साथ ही व्यायाम का व्यायाम भी! ये आभासी दुनिया वास्तविकता के बेहद करीब होती है और आपका अकेलापन छूमंतर हो जाता है. और, यकीन कीजिए, यू-ट्यूब पर वाकिंग वीडियो (रोमन अंग्रेज़ी में सर्च करें) सर्च करने की देर भर है, दुनिया जहान के प्रसिद्ध और जाने-अनजाने जगहों – जिनमें डिज्नी लैंड से लेकर ताजमहल और यलोस्टोन नेशनल पार्क तक सब शामिल हैं, के सैकड़ों वाकिंग टूर उपलब्ध हैं. वो भी कोई छोटे नहीं, बल्कि भरपूर डेढ़-दो घंटे वाले. मैंने इस तकनीकी सुविधा से, इस लॉकडाउन में दुनियाभर के दर्जनों देखे-अनदेखे जगहों की खाक छान ली. इससे अच्छा, स्वास्थ्यवर्धक, मनोरंजक घूमना फिरना वह भी ऐन लॉकडाउन के बीच में और कहीं संभव है भला? आपको बताता चलूं कि अपने वाकिंग टूर को और भी असली-सा बनाने के लिए, उसमें तड़का लगाने के लिए, मैं अपने घर के कुकर में ही, गैस चूल्हे पर, गंजी भर कर पॉपकॉर्न फोड़ लेता था जिसमें बढ़िया स्वाद डालने की तकनीक है – स्वादानुसार मक्खन, हल्दी और चाट-मसाला मक्के में पहले ही मिला लो!

इस लॉकडाउन ने लोगों के भीतर छुपे टैलेंट को बाहर निकाला है. लॉकडाउन में डॉमिनोज, पित्ज़ाहट या दिल्ली दरबार की सुविधाएं तो मिलनी नहीं थीं, तो मैंने अपने भीतर के रसोईये को, अनगिनत यू-ट्यूब फूड चैनलों की सहायता से पुनर्जीवित कर लिया. अपने एयर-फ्रायर और माइक्रोवेव ओटीजी तथा ऑनलाइन फूड चैनलों के सहयोग से नित्य नए प्रयोग किए. जो सामान घर में उपलब्ध थे उससे ही. इटैलियन पास्ता भी बनाए और इंडियन पोल-रोटी भी.

और, यकीन मानिए, मेरे बनाए घरेलू जंक-फूड ने मेरे रक्तचाप और शुगर लेवल को कम ही किया. यहाँ आपको बताना क्या जरूरी है कि मैंने अपने डिश-वाशर की सर्विसिंग लॉकडाउन से ठीक पहले करवा ली थी और धर में झाड़ू-पोंछा लगाने वाली स्वचालित मशीन आई-रोबोट-रूम्बा का नया मॉडल ले लिया था जिससे बर्तन धोने और झाड़ू पोंछा लगाने का मेरे हिस्से का काम बड़ा आसान हो गया था!

अब आप पूछेंगे कि इस लॉकडाउन में कुछ काम धाम किया कि बस खाते-पीते और मनोरंजन ही करते रहे और खटिया तोड़ते रहे. तो यह बात जरूर है, और मैं इस सच्चाई को स्वीकार करूंगा, कि मेरा कार्य ब्लूकॉलर-जॉब की तरह नहीं है, जिसे लॉकडाउन से सचमुच बड़ी समस्याओं से जूझना पड़ा है, और मैं यहाँ सौभाग्यशाली रहा कि मेरा कार्य आईटी सेवा से संबंधित है, जहाँ यदि हाथ में मात्र एक अदद कनेक्टेड कंप्यूटर सिस्टम हो तो आदमी घनघोर जंगल के बीच भी अपना काम पूरी कुशलता से निपटा ले. बल्कि, घनघोर जंगल में तो कार्यकुशलता इसलिए भी बढ़ जाती है कि आपको रोकने-टोकने, व्यवधान डालने वाला वहाँ कोई नहीं होता. तारीफ़ की बात यह कि घनघोर जंगल में भी ज़ूम जैसे प्रोग्रामों के जरिए आप 100-50 लोगों से रीयल टाइम में जुड़ कर समस्याओं पर चर्चा कर सकते हैं, मीटिंगें कर सकते हैं और समाधान ढूंढ सकते हैं. लॉकडाउन में पूरे आईटी सैक्टर में घर से काम करने की नई कार्य संस्कृति पैदा हो गई है, और आने वाले समय में इसे अधिकाधिक स्वीकृति मिलेगी. कुछ कंपनियों ने तो यह माना भी है कि घर से काम करने की संस्कृति से उनकी उत्पादकता में वृद्धि तो हुई ही है, तमाम लॉजिस्टिक और ऑफिस प्रबंधन संबंधी समस्याएँ व उससे संबंधित खर्चे भी इस दौरान बहुत कम रहे. मैंने भी इस दौरान बहुत से लंबे लंबित कार्य निपटाए, जिसके लिए समय ही नहीं निकल रहा था. और, यह बात भी तय है कि यदि इस तरह की विपदाएँ आती रहीं तो मनुष्य के परिष्कृत मस्तिष्क के सहारे, निकट भविष्य में अधिकांश ब्लूकॉलर-जॉब में भी रोबोटिक्स-रिमोट-कंट्रोल-तंत्र और कृत्रिम-बुद्धिमत्ता के जरिए वर्क फ़्रॉम होम की सुविधा मिलने लगेगी.

मानवीय जिजीविषा और उसका परिष्कृत मस्तिष्क प्रकृति के कठोर प्रहारों को सहते हुए अपना अस्तित्व बनाए रखने में सक्षम है. यह दौर भी गुजरने वाला है, और मनुष्य का अस्तित्व, सूरज के लाल दैत्य होकर पृथ्वी के निगलने तक तो रहेगा ही, कौन जाने, वो तब तक अपने लिए ब्रह्मांड में एक नया बसेरा भी ढूंढ ले – एक ऐसा बसेरा, जिसकी कल्पना हम सभी स्वर्ग के रूप में करते आ रहे हैं.

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