भक्त एटीएम विरुद्ध आपिया एटीएम

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  भक्त एटीएम विरुद्ध आपिया एटीएम नोटबंदी के साइड-इफ़ेक्ट के चलते काम के अधिक बोझ की वजह से एटीएम खराब हो रहे हैं. सुधारने के लिए तकनीशिय...

 

भक्त एटीएम विरुद्ध आपिया एटीएम

नोटबंदी के साइड-इफ़ेक्ट के चलते काम के अधिक बोझ की वजह से एटीएम खराब हो रहे हैं. सुधारने के लिए तकनीशियन बुलाए जा रहे हैं. एक तकनीशियन के हाथ दो एटीएम का रिकवर्ड डेटा मिला. एक था भक्त एटीएम और दूसरा था आपिया एटीएम.

पहले भक्त एटीएम का रिकवर्ड डेटा मुलाहिजा फरमाएँ –

· आज नोटबंदी का पहला दिन है. वाह क्या सर्जिकल स्ट्राइक मारा है काले धन और भ्रष्टाचारियों पर. पूरी मुस्तैदी से लगा हूँ, लोगों की सेवा करने में. मजा आ रहा है. इतनी भीड़ देखकर ही मन प्रसन्न हो जा रहा है.

· आज नोटबंदी का दूसरा दिन है. चहुँओर से इस कदम की प्रशंसा हो रही है. आम जनता में गजब का उत्साह है. लोग घंटों लाइन में लगे हैं, मगर उनके माथे पर शिकन तक नहीं. बड़े नोटों की कमी की वजह से मेरा पेट जरा जल्दी ही खाली हो रहा है – इस बात का मलाल है, नहीं तो चौबीसों घंटे लोगों की सेवा करने की बात सोच के ही मन प्रफुल्लित हो रहा है.

· आज नोटबंदी का तीसरा दिन है. पहले दो दिन तो विरोधियों को सांप सूंघा रहा. वे सोच नहीं पाए कि क्या करें, क्या बोलें, क्या कहें. शायद दो दिन इस विचार में लगे कि उनके पास रखे काले धन को कहाँ ठिकाने लगाएँ. आज उनके श्री मुख से कुछ बोल फूटे हैं – सदा की तरह विरोध में. यह तो होना ही था. विरोधी विरोध न करें ऐसा कैसे हो सकता है. इधर हमारा मन सदा की तरह राष्ट्रवाद से ओतप्रोत है. जनता को थोड़ी असुविधा हो रही है, मगर, सुना है कि वह उन लोगों की वजह से ज्यादा हो रही है जो भाड़े के लोगों को बारंबार लाइनों में चार हजार रुपये बदलने के लिए किराए पर लाइनों में लगवा रहे हैं. बहुत जगह से समाचार भी आ रहे हैं कि डील पाँच सौ – हजार रुपए तक में हो रही है – चार हजार के पुराने नोटों को बदलवाने के एवज में. इधर हमारे पेट में सौ-सौ के नोट ही आ पा रहे हैं जिसका मलाल है कि हमारे पेट जल्द ही खाली हो जा रहे हैं और हम जनता की पूरी कैपेसिटी से सेवा नहीं कर पा रहे हैं. जल्द ही स्थिति सुधरेगी. लाइन में लगी जनता में अभी भी गज़ब का उत्साह है और वे अब अपने आप को अमीरों के बराबर की श्रेणी में मान रही है – अब आया अमीर भ्रष्टाचारी गरीब के नीचे!

· “........”

· नोटबंदी का दसवां दिन है. पेट में सर्जरी कर सुधार कर दिया है, जिससे मेरे तन और मन में नई ऊर्जा का संचार हुआ है. और अब मेरे पेट में आराम से दो हजार और पाँच सौ के नए नोट भी आने लगे हैं. जनता की नए नोटों से सेवा करने का जैसे ही अहोभाग्य प्राप्त उधर लाइन भी कम हो गई. लोगों की प्रतिक्रियाएँ सुनने में बड़ा मजा आता था. सुना है कि बैंकों में लाखों करोड़ रूपए जमा हुए हैं. वर्षों से मुर्दा पड़े खाते जी उठे हैं और गरीबी रेखा वाले जन धन खातों में रुपयों की बरसात हो गई है. बैंक ब्याजदर घटेंगे जिससे महंगाई कम होगी. कैशलेस ट्रांजैक्शन की तरफ भारत बढ़ रहा है. सब्जी भाजी वाले भी पीओएस लेने में दिलचस्पी दिखा रहे हैं. यानी सर्वत्र एक नंबर का मार्केट. भारत में कोई टैक्सचोर नहीं बचेगा. जल्द ही भारत की तस्वीर बदलेगी. नया भारत उभरेगा. शक्तिशाली. समृद्ध. भारत एक बार फिर सोने की चिड़िया बनेगा.

अब एक आपिए एटीएम का रिकवर्ड डेटा पढ़िए –

· आज नोटबंदी का पहला दिन है. अजीब तुगलकी निर्णय है. न इन्फ्रास्ट्रक्चर न तैयारी. जनता इस निर्णय की तो वाट लगा देगी. दंगा फसाद कर देगी. ये कोई बात हुई – रात से आपका 500 और 1000 का नोट नोट नहीं रहेगा कागज का टुकड़ा रहेगा. हर नोट पर गवर्नर का लिखा व हस्ताक्षरित प्रत्याभूत क्या मजाक है? लोगों की लाइन है कि खत्म ही नहीं हो रही. लाइन में खड़ा हर आदमी इस तुगलकी निर्णय को गरिया रहा है. भीड़ देखकर तो मुझे पसीना आ रहा है. रोते हुए और गुस्से में अपना काम कर रहा हूँ – जानता हूँ कि उनका अपना ही पैसा है, मगर चाहते हुए भी लोगों को उनके पूरे पैसे नहीं दे पा रहा हूँ. जिस काम के लिए बनाया गया हूँ, वही ढंग से नहीं कर पा रहा हूँ!

· आज नोटबंदी का दूसरा दिन है. चहुँओर इस कदम की लानत मलामत हो रही है. आम जनता बेहद परेशान हो रही है. लगता है जैसे पूरा देश फिर से लाइन में लगने को अभिशप्त हो गया हो. मेरा मशीनी पार्ट हर दो मिनट में चल-चल कर थक कर चूर हो गया है, घिस घिस कर खराब होने की कगार पर आ गया है, मगर भीड़ है कि कम नहीं हो रही. ऊपर से बड़े नोटों की कमी के कारण मेरा पेट जल्दी जल्दी खाली भी होता जा रहा है. बिना सोचे समझे, बिना तैयारी के ऐसा काम करने का प्रतिफल तो ऐसा ही होना था. ऊपर से कहा जा रहा है यह साहसिक कदम है – तो अंधे कुएं में कूदना भी साहसिक कदम होता है और फांसी लगाकर झूलना भी!

· आज नोटबंदी का तीसरा दिन है. स्थिति सुधरने के बजाए बिगड़ रही है, और भीड़ कम होने के बजाए बढ़ रही है. जनता के धैर्य का इम्तिहान हो रहा है. कमाल है! जनता इतनी भीड़ में इतनी लंबी लाइनों में घंटों खड़ी है, मगर वह उग्र विरोध का कोई काम क्यों नहीं कर रही. जनता को तो तोड़ फोड़ चालू कर देनी चाहिए. कुछ दंगा फसाद, आग जनी आदि कर देनी चाहिए ताकि कर्ता-धर्ताओं की नींद तो खुले. इस वाहियात निर्णय को वापस ले. नहीं तो साल भर इसी तरह की भीड़ भरी लाइन की सेवा करते करते तो अपना जल्दी ही इंतकाल हो जाएगा. मुर्दों का राष्ट्र है यह. क्रांति यहाँ हो नहीं सकती. अपने ही रुपयों को निकालने के लिए लंबी कतार और कभी वो भी संभव नहीं. यह तो अघोषित आपातकाल है. बल्कि आपातकाल से भी बड़ा!

· “......”

· आज नोटबंदी का दसवां दिन है. जबरन अच्छे खासे चल रहे कलपुर्जों को हटा कर नया पाँच सौ और दो हजार रुपयों का कैसेट लगाया गया और मेरा सॉफ़्टवेयर अपडेट किया गया. जनता तो कष्ट भोग ही रही है, हम मशीनों को भी जबरिया कष्ट में ढकेला गया. बंदर के हाथ में उस्तुरा देने से यही तो होता है. बड़े नोट आ जाने से ज्यादा लोगों की सेवा कर सकूंगा, परंतु जनता की भीड़ कम हो गई. जनता भी दस दिन लाइन में खड़ी रह कर त्रस्त और तंग हो गई लगती है, और उनके पैरों का दम निकल गया लगता है. सुना है कि नोटबंदी भारत के इतिहास का सबसे बड़ा घोटाला है. अपनों को फायदा पहुँचाया गया, उद्योगपतियों के ऋण आम जनता के पैसों से माफ किए गए और जनता को झांसे में रखा गया. भारत की स्थिति तो अब नाईजीरिया से भी भयावह होने वाली है. उद्योगधंधे चौपट पड़े हैं, व्यवसाय खत्म हो गया है, मंदी की मार में भारत गिरफ्त हो गया है. भारत का सबसे बुरा दिन आया है. एक समय की सोने की चिड़िया भारत को विदेशियों ने लूटा, और एक बार फिर भारत लुट रहा है, कोढ़ में खाज यह कि अब भारतीय ही इसे लूट रहे हैं.

(अभिषेक ओझा के लेख - http://www.aojha.in/quotes-etc/useyourbrainormaybe से प्रेरित.)

(चित्र - समीर लाल के ब्लॉग पोस्ट मशीन की व्यथा-कथा  http://udantashtari.blogspot.in/2016/11/blog-post_20.html से साभार)

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