हास्य व्यंग्य की जुगलबंदी - बदलता मौसम

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इस सप्ताह व्यंग्य की जुगलबंदी का विषय था - बदलता मौसम मालवा क्षेत्र में मौसम के बदलाव का पूर्वानुमान या फिर यूं कहिए कि बदलते मौसम की भवि...

इस सप्ताह व्यंग्य की जुगलबंदी का विषय था -
बदलता मौसम

मालवा क्षेत्र में मौसम के बदलाव का पूर्वानुमान या फिर यूं कहिए कि बदलते मौसम की भविष्यवाणी हवा का रूख देख कर किया जाता रहा है। कुरावन नाम की हवा की दशा-दिशा और गति को भांप कर बुजुर्ग आज भी सटीक भविष्यवाणियां करते हैं कि पानी कब, कितना गिरेगा और ठंडी गर्मी कितनी पडे़गी। मगर आज के जमाने का आदमी अपनी इंद्रियों की अपेक्षा वेदर डॉट कॉम पर ज्यादा भरोसा करने लगा है। वो घर से निकलने से पहले लोटा भर पानी पी कर, हाथ में छतरी लेकर या रैनकोट डाटकर निकलने के बजाए गूगल नाओ पर मौसम चेक कर निकलता है। क्योंकि वैसे भी उसे अब कहीं पानी की किल्लत कहीं नहीं होती। धन्य हो बोतलबंद पानी बनाने वाली कंपनियों का। बीस रुपल्ली निकालो और एक बोतल पानी हाजिर। कभी भी कहीं भी। हां, अगर कहीं बिन बुलाए बरसात हो गई, आंधी-तूफान आ गया और पास में छतरी या रेनकोट न हो तो उसका प्रोग्राम बरबाद हो सकता है। इसलिए बदलते मौसम के पूर्वानुमान पर अपडेट, एक अदद पानी के लोटे से ज्यादा जरूरी है।


साथ ही, अचानक कहीं चटख धूप के बीच पानी की बौछारें होने लगे तो एक अदद छतरी का जुगाड़ होना मुश्किल है। पर यह भी सत्य है कि ऐसी चटख धूप में भी कोई बंदा यदि छतरी लिए या रेनकोट पहने दिख जाए तो यह समझें कि उसने पक्के तौर पर मौसम ऐप्प पर मौसम का मिजाज चेक कर लिया है और उसे अपने मौसम भविष्यवाणी करने वाले ऐप्प पर अपने आप से ज्यादा भरोसा है कुछ इस तरह कि हिंदी का कवि इस पक्के भरोसे में रहता है कि 250 प्रतियों के प्रिंट आर्डर में, सहयोग राशि के सहयोग से प्रकाशित उसके इकलौते कविता संग्रह के लाखों पाठक हैं और वो दुनिया में सबसे ज्यादा प्रसिद्ध कवियों की कतार में खड़ा है ।


भारत में यूं तो प्रकट रूप में तीन मुख्य मौसम हैं - ठंडी, गर्मी और बरसात। परंतु इधर कुछ सालों में भारत के मौसम में बहुत बड़ा बदलाव आया है। एक नया, सुहावना, सबके फायदे का मौसम  पैदा हो गया है - चुनाव का मौसम।


चुनाव का मौसम बहुत से परिवर्तन लाता है। चुनाव के मौसम में कहीं पैसों की बारिश होती है, कहीं टीवी, रेडियो, स्मार्टफ़ोन और लैपटॉप की। भारत की जनता के लिए यही मौसम सबसे बेहतर होता है। इसी मौसम में कई नई योजनाएं अवतरित-स्वीकृत होती हैं। पुरानी रूकी फंसी पड़ी योजनाएं द्रुतगति पाती हैं। कभी-कभी दस-बारह वर्षों से रूके फंसे पुलों के काम तो इतनी द्रुतगति पाते हैं कि भरभराकर ढह भी जाते हैं।


सोशल मीडिया के आभासी संसार के वास्तविक मौसम के तो क्या कहने! यहाँ का मौसम प्रकाश की रफ्तार से भी अधिक गति से बदलता है, बनता-बिगड़ता है। यहां का मौसम परिवर्तन ब्रह्मांड के किसी नियम कानून को नहीं मानता। दरअसल यहां पर हर नियम फट जाता है। ऊपर से बड़े अजीब अजीब, अब तक के अनदेखे अनसुने मौसम आते-जाते हैं। कभी कन्हैया मौसम तो कभी वेमुला मौसम तो कभी पुरस्कार लौटाऊ मौसम। कुछ समय पहले तोता-तोती कविताई का ऐसा बिगड़ा मौसम आया कि कोई बच न पाया। किसी सर्जिकल स्ट्राइक के रूप में, वर्तमान में अचानक ही, बेमौसम बरसात की तरह, आलुओं का, बल्कि सड़े गले आलुओं का मौसम यहां छाया हुआ है।


ओह, मौसम की बात करते-करते यहां का अच्छा भला मौसम भी मोनोटोनस हो गया। तो क्यों न, यह लेख व्यंग्य है कि हास्य, कि महज बकवास, इस बात पर, आइए, गर्मागर्म बहस करें और यहां के मौसम के मिजाज को थोड़ा बदलें।
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अगले सप्ताह की जुगलबंदी जमाने आप सभी सादर आमंत्रित हैं। विषय है - आस्तिक कि नास्तिक?

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छींटे और बौछारें: हास्य व्यंग्य की जुगलबंदी - बदलता मौसम
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