देश में राजनीतिक-सामाजिक सहिष्णुता-असहिष्णुता पर गर्मागर्म बहस चल रही है, राजनीति हो रही है. समाजनीति हो रही है. मगर इधर टेक्नोंलॉज़ी की अस...
देश में राजनीतिक-सामाजिक सहिष्णुता-असहिष्णुता पर गर्मागर्म बहस चल रही है, राजनीति हो रही है. समाजनीति हो रही है. मगर इधर टेक्नोंलॉज़ी की असहिष्णुता पर किसी का ध्यान ही नहीं है. भाइयों, समय रहते चेत जाओ नहीं तो आपको भी लेने के देने न पड़ जाएं.
क्या कहा? टेक्नोलॉज़ी ने तो आपके जीवन को सहज, सरल, आसान और बढ़िया बनाया है! बनाया होगा, मगर अब ये आपके प्रति उतना ही असहिष्णु भी होता जा रहा है. कृपया नोटिस लें, और, जरा बच के रहें, नहीं तो टेक्नोलॉज़ी की असहिष्णुता से आपको बड़ी समस्याएं हो सकती हैं – राजनीतिक और सामाजिक असहिष्णुता तो केवल लफ़्फ़ाजी है और अपने-अपने वोट बैंक की खातिर है, पर टेक्नोलॉज़ी असहिष्णुता असली है और मारक है.
आप कहेंगे कि मैं क्या अनाप-शनाप लिख रहा हूँ. जरा ठंड रखिए. जमाना बिग डेटा का है. डेटा-माइनिंग से आपकी ऐसी ऐसी जानकारियाँ जुटाई जा रही हैं, और न केवल जुटाई जा रही हैं, बल्कि वे कानून के रखवालों, टेक्स वसूलने वालों आदि आदि सरकारी महकमों के पास भी एक कमांड में उपलब्ध होती जा रही हैं जिसके जरिए आपकी वाजिब गैर वाजिब वित्तीय गतिविधियों से लेकर सड़क पर दाएं बाएं, धीमे तेज चलने, लाल बत्ती क्रास करने से लेकर सार्वजनिक जगह पर थूकने जैसी गतिविधियों को भी रेकार्ड किया जा रहा है और आपके विरूद्ध एवीडेंस के रूप में प्रयोग किया जाने लगा है. हो गई न टेक्नोलॉज़ी असहिष्णुता?
चलिए, दो उदाहरण देकर आपको और तरीके से समझाता हूँ.
पिछले दिनों मेरे एक मित्र के पास आयकर विभाग से एक नोटिस आया. नोटिस का मजमून कुछ ये था कि उन्होंने दस हजार का एक एफडी करवाया था उसका ब्याज उन्होंने अपने पिछले रिटर्न में दर्शाया नहीं था, लिहाजा इसे वे ठीक करें और बकाया टैक्स मय दंड के भरें. आज से चार छः साल पहले जब टेक्नोलॉज़ी इतनी परिष्कृत नहीं थी, तो ऐसे छोटे मोटे क्या बड़े भारी मोटे मोटे इनवेस्टमेंट भी आयकर विभाग की नजरों में नहीं आ पाते थे, क्योंकि मैनुअल स्क्रीनिंग की सुविधा की एक सीमा है. अब सारा डेटा सार्वजनिक है, बैंक और आयकर विभाग के कंप्यूटर में उपलब्ध है, और महज कुछ ही कमांड पर उपलब्ध है. इसी का फल है कि मित्र को उनके दस हजार के एफ डी पर आयकर विभाग का नोटिस मिल गया. है न घोर टेक्नोलॉज़ी असहिष्णुता? इसमें आप सरकारी एंगल कृपया न देखें.
एक और उदाहरण. मेरे एक अन्य मित्र को पुलिस थाना से एक लिफ़ाफ़ा मिला. उसमें एक नोटिस था कि उन्होंने कोई दो माह पहले किसी चौराहे को पार करते समय ट्रैफ़िक नियमों का उल्लंघन किया था, जिसके एवज में उन्हें फ़ाइन भरना होगा, अन्यथा उनके विरुद्ध कानूनी कार्यवाही की जाएगी. उस पत्र में बाकायदा उनके वाहन समेत स्क्रीन शॉट संलग्न थे. आजकल हर चौराहों पर ट्रैफ़िक सिग्नल के साथ साथ हाई-रेजोल्यूशन कैमरे लगाए जा रहे हैं और उनकी रेकॉर्डिंग संबंधित यातायात थाने में उपलब्ध होती है. वहाँ चंद बंदों को बिठा कर ट्रैफ़िक नियमों का उल्लंघन करने वालों के वीडियो क्लिप निकाले जाते हैं और उनके वाहन क्रमांक को ट्रैस कर उन्हें समन भेजे जा रहे हैं. यह टेक्नोलॉज़ी का नया कमाल है. अमरीकी और पश्चिमी देशों में इस असहिष्णु टेक्नोलॉज़ी का उपयोग भले ही दशकों पूर्व प्रारंभ हो गया हो, मगर भारत की पावन धरती पर यह नया नया आया है. कोढ़ में खाज यह कि चूंकि सारा मजमा डिजिटल है (यदि डिजिटल इंडिया का ख्वाब ऐसा ही है, तो भगवान बचाए!) इसलिए पुलिसिए को 50 रुपल्ली टिका कर या चेकिंग पाइंट पर यू-टर्न मार कर इस तरह के आफत से बचने का कोई उपाय भी नहीं! और, अभी तो आगाज़ है, अंजाम तो और बुरा हो सकता है. वो तो भला हो कुछ स्वप्नदर्शियों को जिनकी कृपा से आधार कार्ड नंबर और अपना बैंक खाता नंबर अनिवार्य रूप से जुड़ा नहीं है, नहीं तो टेक्नोलॉज़ी पूरी तरह से असहिष्णु हो जाती. यानी, इधर आपने कोई कानून तोड़ा नहीं, उधर आपके ऊपर जुर्माना हुआ नहीं, और आपके खाते से पैसा कटा नहीं! हा!
अब आप बताएँ, टेक्नोलॉज़ी की इस असहिष्णुता से आप कैसे, कब तक बचेंगे?
अब तो जंगल में रहना ही सही रहेगा, लेकिन वहां जाने पर भी NGT रोक लगा देगी.
जवाब देंहटाएंसही कहा :)
हटाएंएनजीटी वाले भी जंगलों में कैमरे लगा रहे हैं. एक पत्ती तोड़ो तो हजार रुपए जुर्माना :)
इस टेक्नलोलॉज़ी असहिष्णुता से कोई नहीं बच सकता :(
वाकई तकनीक एक बवाल है !
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