जीवे जीवे पाकिस्तान...

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  यूँ तो हर देशभक्त भारतीय पाकिस्तान के हर कदम का ठीक वैसा ही विरोध करेगा जैसे भारतीय संसद में सरकारी पक्ष के किसी भी प्रस्ताव का विपक्षी ...

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यूँ तो हर देशभक्त भारतीय पाकिस्तान के हर कदम का ठीक वैसा ही विरोध करेगा जैसे भारतीय संसद में सरकारी पक्ष के किसी भी प्रस्ताव का विपक्षी दल बाई डिफ़ॉल्ट विरोध करता है. अलबत्ता इसमें अरुंधती राय जैसे धारा के विपरीत बहने वाले शामिल नहीं होंगे, मगर फिर ऐसे लोगों की चिंता तो बूकर पुरस्कार बांटने वाले ही करें, हमें क्या!

 

हाँ, तो बात पाकिस्तान के हर कदम के विरोध का चल रहा था. परंतु इस बार पाकिस्तान ने एक ऐसा दांव खेला है कि उसकी वजह से दुनिया का हर पुरुष - इसमें भारतीय पुरुष भी शामिल हैं, उसके इस कदम का स्वागत करेगा. वह भी कदमबोसी कर! जैसे भारतीय संसद में सरकारी-विपक्षी दल जब अपने वेतन भत्ते के बिल को पास करने की बारी आती है तो सुर से सुर मिलाकर एक हो जाते हैं उसी तरह पाकिस्तान के इस मामले में पाकिस्तानी-हिंदुस्तानी सब सुर मिला रहे हैं.

 

ठीक है, बहुत हो गया. आखिर पाकिस्तान ने ऐसा क्या कर दिया जो दुनिया का हर पुरुष, जिसमें हर भारतीय पुरुष भी शामिल है, उसका प्रशंसक हो गया. पाकिस्तान ने वो काम किया है जिसे दुनिया के हर देश को करना चाहिए. पुरुषों के मोजे पहनने पर प्रतिबंध! पाकिस्तान अब तक एक फेल्ड स्टेट माना जाता था. मगर उसने मोज़ों पर प्रतिबंध लगाकर यह सिद्ध कर दिया है कि वो दुनिया के तमाम देशों से कहीं आगे है - एकदम सफल!

 

वैसे भी मोज़े, मर्द जात के लिए शुरू से ही कष्टकारी रहे हैं. जब मर्द शिशु होता है तो माता बड़े ऐहतियात और प्रेम से,  चाहे वो ठंडी बयार हो या गर्मी की लू, उससे बचाने के लिए मां अपने बच्चे के इंच भर पैर में सवा पांच इंच का मोज़ा पहनाना शुरु करती है, तो फिर मोज़ा मर्द की ज़िंदगी में ऐसे जुड़ जाता है जैसा उसका कोई दूसरी त्वचा हो, और फिर इस दुनिया से निर्वाण मिलने तक वो मोज़ा उसके पैर से चिपका रहता है.  एक अदद मोज़ा, मर्द को... पता नहीं क्या से क्या बना देता है.

 

अपनी युवावस्था में पुरुष अपने मोज़े से प्रत्यक्ष अप्रत्यक्ष रूप से भयाक्रांत रहता है. अपनी संभावित गर्लफ्रेंड को इम्प्रेस करने के चककर में वो अपने शानदार जूते का सत्यानाश अक्सर अपने फटे मोज़े या फिर मिस-मैच रंग के मोज़े से करता फिरता है. और कभी इम्प्रेशन भूले भटके जम भी गया तो वो कहीं पर यह भूल कर बैठता है - वो अपने जूते के फीते ढीले कर जूता उतार देता है और अपने मोज़ों के जरिए अपनी गर्लफ्रेंड के आसपास की दुनिया में अपना खास पर्सनल डियोडोरेंट फैला देता है, और उसकी गर्लफ्रेंड को वास्तविकता का अहसास हो जाता है कि भली प्रतीत हो रही यह दुनिया, उतनी भी अच्छी नहीं है.

 

शादीशुदा पुरुषों का तो नंबर  1 दुश्मन है मोज़ा. आपको ऑफिस के लिए देर हो रही है, और आपको आपका निगोड़ा मोज़ा ढूंढे नहीं मिल रहा. मिला भी तो जोड़े का एक या दो हैं तो भिन्न जोड़े के. किसी हाथ आए मोज़े का इलास्टिक ढीला है तो किसी का तंग. कोई धुला नहीं है तो कोई धुला तो है, मगर धुलने से उसका कलर फैल गया है. जैसे तैसे एक अदद मोज़ा जुगाड़ कर पहनने की कोशिश करते हैं तो आपकी उत्तमार्ध का दनदनाता स्वर गूंज उठता है - ये क्या पहन रहे हो जी, जरा भी कलर सेंस नहीं है तुममें. नाईकी के ग्रे जूते में गुलाबी मोज़े पहन रहे हो? हद है! और ये गुलाबी मोज़ा तुम्हारा नहीं मेरा है. ये ल्लो, अब अगर मोज़ा है, और खालिस मर्द के लिए है तो उसे गुलाबी तो होना ही नहीं चाहिए, और उसे नाईकी के ग्रे रंग के जूते पर तो पहना ही नहीं जाना चाहिए. शादीशुदा मर्दों, जरा कलर सेंस तो ले आओ, जहाँ कहीं से भी मिलता हो. और याद से गुलाबी, पीले या हरे, छींटदार मोज़े पर निगाह मत डालो. वो तुम्हारा हो ही नहीं सकता. मोज़ों ने दुनिया का बहुत सारा समय, रिसोर्स, मेनपॉवर बर्बाद किया है. और, मुझे तो लगता है कि दुनिया में बढ़ते तलाक का कारण मोज़े ही हैं.

 

और, जब आप ऑफ़िस में होते हैं तो और आफ़त. आपका आफ़िस-लंगोटिया मित्र लंच के समय आपके केबिन में अनौपचारिक चला आता है और गर्मी के बहाने अपनी नई जुराबें नुमाया करवाने लगता है. पर इस कोशिश में वो ये भूल जाता है कि उसकी जुराबों यानी वही मोज़ों से निकलने वाली गंध ही आपके लिए दुनिया में सर्वाधिक अप्रिय है.

 

शाम को घर वापस लौटते हैं तो फिर से वही मोज़ा पुराण. थक हार कर घर में घुसे, जूते उतारे और यदि आपने कहीं भूले भटके मोज़ों को सही स्थान पर उतार कर सही जगह पर तह कर नहीं रखा या धोने में नहीं डाला तो फिर हो गई आपकी शाम की चाय का सत्यानाश! इन्हीं समस्याओं के चलते मैंने मोज़े जूते का सार्वजनिक परित्याग अरसे से कर रखा है और चप्पलों पर आ गया हूँ. बहुत से जूताधारी मर्द मुझसे रश्क रखते हैं. परंतु वे जूतों से उतर कर चप्पलों पर आने की हिम्मत नहीं जुटा पाते. उनकी उत्तमार्धें जो उनके जूते-मोज़ों के परित्याग के राह में रोड़ा जो बनी हुई हैं.

 

ऐसे में पाकिस्तान ने मोज़े पर प्रतिबंध लगाया है, तो पुरुषों के लिए बहुप्रतीक्षित, बहुत भला काम किया है. हिंदुस्तान में भी यह मानवीय क़ानून यथाशीघ्र लागू हो जाना चाहिए.

जीवे जीवे पाकिस्तान! पाकिस्तान जिंदाबाद!!

COMMENTS

BLOGGER: 7
  1. हमारा भी जूता मौजा धारण उतम्मार्ध ने हमारे पश्चिमार्ध पर लठ लठ मार मार कर शुरूआत मे ही छूडवा दिया था तबसे आपकी तरह से चप्पल धारण करते हैं.:)

    आपके सुर में सुर मिलाते हुये "जीवे जीवे पाकिस्तान! पाकिस्तान जिंदाबाद!!"

    रामराम.

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  2. वाह, हम भी प्रशंसक हो गये। गर्मी में तो बिल्कुल नहीं पहनने चाहिये।

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  3. ये तो आगाज़ है, ....... आज मौजा उतारे हैं, कल कमीज का नम्बर आएगा.

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  4. मोज़े के बिना मौजां ही मौज़ा...

    जय हिंद...

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  5. मोज़े के बिना यानि मौजां ही मौज़ा...

    जय हिंद...

    जवाब देंहटाएं
  6. बात मोज़ों की है -
    एक बार मेरी मित्र को कमरे में बड़ी दुर्गंध लगी जैसे जाने कब से कोई चूहा मरा पड़ा हो जिसकी बदबू फैली है. उसने अपने पति को बताया.
    सामान हटा कर जब झाड़-बुहार की गई और श्रीमान जी के जूते बाहर निकाले गये तो बदबू का ज़ोर का भभका उठा .उन्हें जब बाहर ले जा कर रख दिया तो धीरे-धीरे महक कम होती गई .
    हुआ क्या था? चमड़े के जूतों में कई-कई दिन पसीने भरे मोज़ों का पड़े रहना .और वे महोदय नितान्त उदासीन !

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  7. pakistan bada achha kam kiya hai mojjo par prati bandh lagakar isse pata chala pak kitna mahan hai

    जवाब देंहटाएं
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