संता-बंतावाद : सरदार जी पर चुटकुलों पर एक दर्शन

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जैसे पश्चिम में ब्लॉड चुटकुले प्रसिद्ध हैं, ठीक उसी तरह भारतीयों में संता-बंता के चुटकुले प्रसिद्ध हैं. चुटकुले संता-बंता से शुरू होते हैं ...

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जैसे पश्चिम में ब्लॉड चुटकुले प्रसिद्ध हैं, ठीक उसी तरह भारतीयों में संता-बंता के चुटकुले प्रसिद्ध हैं. चुटकुले संता-बंता से शुरू होते हैं तो खत्म भी वहीं होते हैं. सरदारजी पर और या संता-बंता पर किसी ने चुटकुला सुनाना शुरू किया नहीं और इधर ठहाके लगे नहीं. आप कोई चुटकुला सुनाने की शुरूआत करते हैं एक बार एक सरदार जी.. या फिर एक बार संता... और आप देखेंगे कि आपके श्रोताओं का पूरा ध्यान आप की ओर लग गया है. उनके फनी बोन में गुदगुदी की शुरूआत हो गई है. और अगर आपका पंचलाइन खराब निकला, चुटकुले सुनाने की शैली भी धारदार नहीं है, तब भी संता-बंता और सरदार जी के चुटकुलों से यह सुनिश्चित हो जाता है कि श्रोता-पाठक ठहाके तो लगाएंगे ही.

भारत के सबसे बड़े कॉलम लेखक खुशवंत सिंह, जो स्वयं सरदार जी हैं, अपने लेखों के अंत में जे पी सिंह काका जैसे लोगों द्वारा भेजे संता-बंता और सरदारजी के चुटकुले शामिल करते रहे हैं और उनके स्थापित होने और लोकप्रिय होने में इन चुटकुलों का बड़ा हाथ रहा है. उन्होंने इन चुटकुलों के कई संग्रह प्रकाशित करवाए जो बेस्ट सेलर रहे हैं, और बकौल खुशवंत सिंह, भारत में चुटकुले गर्म पकौड़ों की तरह बिकते हैं. और यदि वे संता-बंता और सरदार जी चुटकुले हों तो उनमें चटनी मुफ़्त में मिलती है.

चुटकुलों का भी अपना दर्शन होता है. दरअसल जब कोई चुटकुला सुनाया जाता है तो भले ही हम उसके प्रकट और प्रत्यक्ष पंच लाइन पर ठहाके लगा लें, मगर जब उस चुटकुले के दर्शन पर थोड़ा गंभीर चिंतन मनन करें तो पाएंगे उनमें आमतौर पर बड़ी गंभीर बातें कही गई होती हैं. और जितनी धीर गंभीर बात उसमें होगी, चुटकुले का पंचलाइन उतना ही गहरा होगा.

दिल्ली में पले-पढ़े निरंजन रामकृष्ण आजकल अमरीका में रहते हैं. वे राजनीति और समसामयिक विषयों पर लिखते हैं. उनके लेख अमरीका और भारत के प्रमुख प्रकाशनों में प्रकाशित होते रहे हैं. साथ ही उन्होंने बैंक में भी कार्य किया है और दो सॉफ़्टवेयर कंपनियाँ भी चलाते हैं. निरंजन ने संता-बंता और सरदार जी चुटकुलों के दर्शन पर एक शानदार किताब लिखी है – बन्ताइज्म – द फ़िलॉसफी ऑफ सरदार जोक्स.

निरंजन ने संता-बंता चुटकुलों के दर्शन पर बात कही है. उन्होंने अपनी किताब में कुछ चुनिंदा संता-बंता और सरदारजी चुटकुलों को नए सिरे से सुनाया है और अंत में उन्होंने उस चुटकुले पर अपनी कमेंटरी मारी है. दूसरे शब्दों में उन्होंने उस चुटकुले के दर्शन पर अपनी मीमांसा, अपनी टीका दी है.

एक उदाहरण-

चुटकुला : समानता

“राम, कृष्ण, यीशुमसीह, मुहम्मद, नानक, बुद्ध, महावीर और महात्मा गांधी में क्या समानता है?” शिक्षक ने पूछा.

“ये सभी महानुभाव छुट्टी के दिन पैदा हुए थे!” बंता सिंग ने जवाब दिया.

टीका

आपको भले ही यह लगे कि बंता को सिर्फ और सिर्फ छुट्टियाँ ही दिखाई देती हैं या फिर बंता इन महापुरुषों/दैवपुरुषों को पढ़ाई-लिखाई में छुट्टी की वजह से याद करता या संदर्भित कर पाता है, मगर यह भी सत्य झलकता है कि ये सभी महापुरुष और दैवपुरुष काल के गाल में समा चुके हैं. नश्वर संसार में अमरता कुछ नहीं है, और जो बचता है वह सिर्फ नाम और काम. ग्रे का मर्सिया भी यही कहता है –

पद प्रतिष्ठा और धनबल,

सुंदरता और यौवन

सभी छिन जाते हैं एक दिन

रास्ते सभी जाते हैं समाधि की ओर.

बंता सिंग इन्हीं बातों को सीधे सादे, मासूम शब्दों में बता रहे हैं.

तो आपने देखा कि दो पंक्ति के सीधे-सादे चुटकुले में कितनी धीर गंभीर बातें कही गई हैं. निरंजन ने हजारों ऐसे सरदारजी चुटकुलों में खोज बीन कर छांट कर चुटकुलों का अच्छा खासा संग्रह एकत्र किया है और उन्हें अपनी टीका समेत पेश किया है. कुछ चुटकुले सुने सुनाए हैं तो बहुत से आपको नए भी मिलेंगे. चुटकुलों पर नया दर्शन जानने के लिए इस किताब को तो पढ़ना ही चाहिए, यदि आपको सिर्फ और सिर्फ सरदारजी चुटकुले पढ़ने में ही रुचि है तब भी कुछ अच्छे संता-बंता और सरदारजी चुटकुलों की खातिर इस किताब को आप पढ़ सकते हैं.

कहीं कहीं टीका जटिल और लंबी प्रतीत होती है, मगर जीवन भी यदा कदा लंबा, उबाऊ और जटिल प्रतीत होता है, जबकि वस्तुतः होता नहीं है. जीवन तो जीवन ही होता है – हर पल. समस्या उसे जीने में होती है.

चुटकुला प्रेमी जनता के लिए बुरी तरह से अनुशंसित. रीड इट. बाइ-बोरो-ऑर स्टील.

किताब फ्लिपकार्ट/इन्फ़ीबीम में उपलब्ध है. 140 रुपए की किताब इन्फ़ीबीम में 94 रुपए में 33% डिस्काउंट में उपलब्ध है. जो कि बेहद वाजिब कीमत प्रतीत होती है. पॉकेट बुक आकार में किताब का गेटअप, लेआउट, छपाई और कागज शानदार है. हाँ, किताब अंग्रेज़ी भाषा में है. निरंजन से अनुरोध है कि वे इसका हिंदी रूपांतर भी जल्द निकालें.

 

शीर्षक:
बन्ताइज्म
प्रकाशक:
रूपा पब्लिकेशन्स इंडिया प्रा.लि., 7/16 अंसारी रोड, दरियागंज, नई दिल्ली - 110002
लेखक:
निरंजन रामकृष्णन
पेपरबैक संस्करण
ISBN: (आईऍसबीऍन:)
8129118890
EAN:
9788129118899
पृष्ठों की संख्या: 168

कीमत – रु 140

COMMENTS

BLOGGER: 5
  1. सच कहा आपने, इसमें दर्शन के दर्शन हो जाते हैं।

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  2. यह किताब यदि हिन्‍दी में आए तो सूचित करने का उपकार कीजिएगा। मैं खरीदना चाहूँगा।

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  3. सुन्दर किताब है। जानकारी देने का शुक्रिया। :)

    जवाब देंहटाएं
  4. बेनामी11:13 am

    बहुत-बहुत धन्यवाद इस हास्य किताब के बारे में जानकारी देने के लिए.

    जवाब देंहटाएं
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छींटे और बौछारें: संता-बंतावाद : सरदार जी पर चुटकुलों पर एक दर्शन
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