कल देर रात एक बजे जब मैं सुनहरे सपने देखने में तल्लीन था, अचानक मेरी नींद खुल गई. मुझे लगा कि कोई दरवाजे की घंटी बजाए जा रहा है. शुरू में ...
कल देर रात एक बजे जब मैं सुनहरे सपने देखने में तल्लीन था, अचानक मेरी नींद खुल गई. मुझे लगा कि कोई दरवाजे की घंटी बजाए जा रहा है. शुरू में तो लगा कि शायद यह भी सपने का ही हिस्सा है. मैं सपने के इस हिस्से का आनंद लेने लगा क्योंकि आजकल तो घरों में काम वाली बाई और दूध-अख़बार वाले के अलावा कोई आता जाता नहीं है. किसी के पास न तो समय है न इच्छा. वैसे भी फ़ेसबुक के जमाने में जब दुनिया अपने सोफे में बैठ कर कंप्यूटरों और अपने मोबाइल डिवाइसों के सहारे सोशल हो रही है तो भौतिक रूप से मिलने जुलने में क्या धरा है!
पर जब डोरबेल लगातार बजता रहा और साथ ही दरवाजा पीटने की आवाज आने लगी तो लगा कि मामला कुछ गड़बड़ है. सचमुच ही कोई आया है. अहोभाग्य हमारे. चलो कोई तो इस घर में आया, भले ही वह रात के एक बजे आ रहा हो.
प्रसन्नता पूर्वक, उत्साह से लबरेज दरवाजे पर पहुँचा अतिथि का स्वागत करने. आखिर रात के एक बजे यदि कोई आया है तो वह जाना पहचाना, रिश्तेदार या मित्र ही होगा. या शायद इस रात्रिकालीन आपात समय में शायद किसी को कोई आपात सहायता की जरूरत हो.
पर जब मैंने दरवाजा खोला तो दिल धक से हो गया. सामने एक हवलदार खड़ा था. वो अपनी वर्दी के पूरे रौब में था. क्षण मात्र में ही मेरे दिमाग में विचारों का तूफान सा बह गया. न जाने क्यों यह हवलदार यहाँ चला आया है. कैसी आपात स्थिति आ गई है जो यह इस समय घर पर आ गया है. विचारों की तंद्रा जल्द ही टूट गई, जब उसने अपनी लाठी हड़काई और बोला –
“क्यों बे, नक्सली *ले माद*** बहन** यहाँ छुपा बैठा है, चल थाने और अपनी बीवी को भी उठा और साथ ले चल!”
“देखिए, आपको कोई गलतफहमी हो गई है, हमारा नक्सलियों से कोई लेना देना नहीं, हम एक इज्जतदार शहरी हैं...”
“तेरी इज्जत की तो... ऑर्ट आफ लिविंग के बारे में कुछ पता भी है? इज्जत की बात करता है. भोस* के ज्यादा पचपच मत कर, चुपचाप चल नहीं तो यह लाठी पूरी घुसेड़ दूंगा...”
भारतीय ट्रैफ़िक और भारतीय पुलिस से तो भगवान बचाए. मरते क्या न करते, चुपचाप उस पुलिस वाले के साथ हो लिए. सोचा शायद इन्हें गलतफहमी हो गई है, जल्दी ही मामला साफ हो जाएगा और उन्हें अपनी गलती का अहसास हो जाएगा. ये बात जुदा है कि भारतीय पुलिस कभी गलती करती ही नहीं, और यदि करती भी है तो स्वीकारती नहीं.
जब हम हवलदार के साथ थाने पहुँचे तो पाए कि वहाँ भयंकर भीड़भाड़ थी. मेला सा लगा हुआ था. तमाम जनता – बड़े-बूढ़े, बच्चे जवान सभी को हांक कर लाया गया था. सब लाइन में खड़े थे और सभी के विरुद्ध एफआईआर दर्ज किया जा रहा था.
हमारी तरह उन सबके विरुद्ध नक्सलाइट होने के आरोप थे. बाद में आसपास पूछताछ से पता चला कि सरकार को आज ही इलहाम हुआ है कि सरकारी स्कूलों से पढ़कर निकलने वाले तमाम छात्र नक्सलाइट बनते हैं इसीलिए एहतियातन उन सभी लोगों को जो कभी सरकारी स्कूलों में पढ़े हों या पढ़ रहे हों जेल में बंद किया जा रहा है और उनके विरुद्ध नक्सलाइट होने का, देशद्रोही होने का मुकदमा चलाया जाएगा. सरकार को भी यह बात अभी अभी पता चली है. किसी पहुँचे हुए बाबा ने इस गुप्त बात का खुलासा किया है.
मेरे बाजू में एक फटे पुराने कपड़े पहने हुए दीन हीन सा एक बच्चा खड़ा था. वह खड़ा खड़ा ही झपकियाँ मार रहा था. जाहिर है, उसे भी सोते से जगाकर लाया गया था. उसे उसकी मां सम्हालने व जगाए रखने की कोशिश कर रही थी. मैंने उसकी मां से पूछा –
“तुम अपने साथ इस बच्चे को क्यों ले आई हो?”
“मैं नी लाई. पुलिस वाले इस बच्चे को ले आए. पूछे कि ये कौन से स्कूल में पढ़ता है. मैंने बताया कि सरकारी स्कूल में पहली क्लास में पढ़ता है तो उठा कर ले आए. क्या करती में भी साथ आई.”
“तो पुलिस तुम्हें नहीं लाई? तुम क्या सरकारी स्कूल में नहीं पढ़ी हो? क्या कॉन्वेंट में पढ़ी हो?”
“कॉन्वेंट? उ तो हमरे बस का नईं है बाबू. हम तो झुग्गी में रहते हैं बाबू, और हम तो कुछ पढ़े ही नहीं. इ बबुआ को कुछ पढ़ा लिखा दें सोच रहे थे इस लाने इसे सरकारी स्कूल में भरती करा दिए थे. का पता था कि ये नक्सली बन जाएगा.”
और वह औरत जार जार रोने लगी.
मेरी स्थिति भी कोई अच्छी नहीं थी. भीतर से तो मैं भी रो रहा था. काश! मेरे मातापिता मुझे सरकारी स्कूल के बजाए कॉन्वेंट में, निजी स्कूलों में पढ़ाए होते तो यह दिन देखना नहीं पड़ता!
इतने में पीछे से एक डंडा मुझपर पड़ा और आवाज सुनाई दी – “चल आगे बढ़ बे... क्या देखता है अपना नाम पता लिखवा...”
और इस तरह सरकारी रेकॉर्ड में एक और नक्सली का नाम दर्ज हो चुका था.
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गहरा कटाक्ष है!
जवाब देंहटाएंरविशंकर जैसे बाबाओं से यूँ ही मुझे सख्त चिढ़ थी लेकिन इस तरह की टिप्पणी से वहीं *** चीजें बोलने की इच्छा हो रही है :-)...
जवाब देंहटाएंकाफी अच्छा लिखा है पहले की तरह...
तीखा व्यंग्य ......... वैसे सरकारी स्कूल की उपज हम भी हैं । ये दीगर बात की अब यह बात बताने में घबराने लगें हैं ।
जवाब देंहटाएंआज तो संशय यह है कि कुछ भी बन पाते हैं।
जवाब देंहटाएंजीवन जीने की अपनी कला.
जवाब देंहटाएंbahut karara vyang.Pata nahin shri shri ne aisa kyon kaha.
जवाब देंहटाएंPrabhudayal Shrivastava
लाजवाब। असंख्य लोगों की भावनाऍं प्रकट की हैं आपने।
जवाब देंहटाएंआपकी यह पोस्ट मैं ने फेस बुक पर साझा की है।
हम तो डबल फंसे जी, खुद भी सरकारी स्कूल में पढ़े हैं और अब सरकारी में ही पढ़ा भी रहे हैं। खुद भी नक्सली हैं और अब नक्सली तैयार कर रहे हैं। राम बचाये!
जवाब देंहटाएंजय हो विजय हो! इति श्री व्रत कथायाम शिक्षा अध्याय समाप्त:। बोलो डबल श्री गुरुजी की जय।
जवाब देंहटाएंसरकारी स्कूलों की साँसें रोकने का पूरा इंतजाम कर रहे हैं ये धर्मवादी संगठन, फ़िर भले ही वे कोई से भी धर्म के हों।
जवाब देंहटाएंबहुत सुन्दर प्रस्तुति| नवसंवत्सर २०६९ की हार्दिक शुभकामनाएँ|
जवाब देंहटाएंक्यों न देश को नक्सलाइटों, गरीबों तथा राष्ट्रभाषियों के हवाले न कर दिया जाय. ये देश के अशिक्षित, गरीब, मूर्ख जो 80-90% अपना जुवाड़ तो कर ही लेगें अभी तक जैसे करते आए हैं. देश को उन 10% लोगो को भगाने की जरुरत है जिंहें राष्ट्रभाषा, देशी लोगों, देशी जीवन शैली , देश की गरीबी पर शर्म आती है. क्या ये ही देश के भक्षक, राक्षस और गद्दार नहीं है. सच माने तो इन्हीं देश भक्तों से देश को मुक्ति मिलने की जरूरत है ???? न ????
जवाब देंहटाएंक्यों न देश को नक्सलाइटों, गरीबों तथा राष्ट्रभाषियों के हवाले न कर दिया जाय. ये देश के अशिक्षित, गरीब, मूर्ख जो 80-90% अपना जुवाड़ तो कर ही लेगें अभी तक जैसे करते आए हैं. देश को उन 10% लोगो को भगाने की जरुरत है जिंहें राष्ट्रभाषा, देशी लोगों, देशी जीवन शैली , देश की गरीबी पर शर्म आती है. क्या ये ही देश के भक्षक, राक्षस और गद्दार नहीं है. सच माने तो इन्हीं देश भक्तों से देश को मुक्ति मिलने की जरूरत है ???? न ????
जवाब देंहटाएंमतलब साफ है सरकार ही सरकार नक्सली तैयार कर रही है इसलिए सरकारी स्कूलों की बागडोर श्री जी को सौंप दी जाय।
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