आसपास की बिखरी हुई शानदार कहानियाँ संकलन – सुनील हांडा अनुवाद – परितोष मालवीय व रवि-रतलामी 453 भगवान को सिर्फ पत्थर की मूर्ति ...
आसपास की बिखरी हुई शानदार कहानियाँ
संकलन – सुनील हांडा
अनुवाद – परितोष मालवीय व रवि-रतलामी
453
भगवान को सिर्फ पत्थर की मूर्ति मत समझो
दक्षिणेश्वर, कलकत्ता में भगवान कृष्ण का एक भव्य मंदिर है जो आचार्य रामकृष्ण परमहंस के प्रसिद्ध काली माता मंदिर से कुछ ही दूर पर स्थित है।
एक दिन कृष्ण मंदिर के पुजारी ने देखा कि कृष्ण भगवान की मूर्ति का एक पैर टूटा हुआ है। उन्होंने तत्काल मंदिर के यजमान माथुर बाबू और रानी रस्मानी को इसकी जानकारी दी।
रानी रस्मानी ने इस मामले में कई पंडितों से परामर्श लिया। सभी लोग एक मत थे कि खंडित मूर्ति पूजा के योग्य नहीं होती, भले ही इसे ठीक कर दिया जाये। सभी ने यही परामर्श दिया कि खंडित मूर्ति की जगह एक नई मूर्ति लाकर लगायी जानी चाहिए।
रानी रस्मानी ने इस मामले में रामकृष्ण परमहंस से भी परामर्श करना उचित समझा। उन्होंने रामकृष्ण जी को पंडितों की राय से अवगत कराया। रामकृष्ण परमहंस ने धाराप्रवाह स्वर में उत्तर दिया -"हे माँ, कृपया इस बारे में पुनः विचार करें। यदि आपके दामाद किसी दुर्घटना में घायल हो जायें और उनका पैर टूट जाए तो आप क्या करेंगी? उन्हें अस्पताल ले जायेंगी या अपनी पुत्री के के लिए दूसरा वर तलाश करेंगी?"
रानी रस्मानी कोई उत्तर नहीं दे सकीं। वे रामकृष्ण परमहंस के विचार समझ गयीं और सहमत भी थीं। लेकिन टूटे हुए पैर को कैसे सही किया जाये? रामकृष्ण परमहंस ने तुरंत कहा - "आप जरा भी चिंता न करें। मैं मूर्ति का टूटा हुया पैर सही कर सकता हूं। बचपन से ही मुझे मूर्तिकला और चित्रकारी आती है।"
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दया
एक बार एक भैंस दुर्घटनावश कीचड़ से भरे तालाब में गिर गयी और लाख प्रयत्न करने पर भी बाहर नहीं आ पा रही थी। जैसे ही वह एक पैर बाहर निकालती, दूसरा पैर कीचड़ में और गहरे धंस जाता। भैंस बाहर आने के लिए जी-जान से जुटी हुयी थी।
वहां से गुजरने वाला कोई भी व्यक्ति उस भैंस को निकालने की हिम्मत नहीं जुटा पा रहा था क्योंकि सभी को उस दलदल में स्वयं फंस जाने का भय था। कुछ शरारती बच्चे उस भैंस का संघर्ष देखकर मजे ले रहे थे।
तभी वहां से गुजर रहे एक दुर्बल से संत भैंस को बचाने के लिए तत्काल कीचड़ में कूद गए। आसपास खड़े सभी लोग अचरज से भर यह बात करने लग गए कि ये दुबले-पतले संत किस तरह इतने बड़े जानवर को बाहर निकाल पायेंगे। संत ने उनकी बातों के ऊपर कोई ध्यान नहीं दिया। उन्होंने ईश्वर से शक्ति देने की प्रार्थना की और काफी मेहनत के बाद वे भैंस को बाहर निकालने में सफल हुए।
शरारती बच्चों ने उपहास उड़ाते हुए बोले - "वाह जी वाह! आपने भी क्या खूब काम किया है। यदि आप बीच में न कूद पड़े होते तो हम लोग थोड़ी देर और आनंद ले सकते थे।"
संत ने उत्तर दिया - "मैंने भैंस को बचाकर उसके ऊपर कोई एहसान नहीं किया है। मैंने अपने दर्द को कम करने के लिए ही उस जानवर की जान बचायी है। भैंस को जान बचाने के लिए छटपटाता देख मैं अपने आप को रोक नहीं पाया। अब मैं अपने दर्द से छुटकारा पा चुका हूं।" यह कहकर वह संत अपनी राह चल दिया।
किसी के दुःख को अपना दुःख समझना ही सच्ची मानता है। गांधी जी को यह भजन अत्यंत प्रिय था -
"वैष्णव जन तो तेने ही कहिए रे, पीर पराई जाने रे।"
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असली चेले तो गिनती के
प्रसिद्ध जेन गुरु लिन ची के मठ में जब राजा पधारे तो वहाँ शिष्यों की भीड़ देख कर चकित रह गए. उन्हें किसी ने बताया कि वहां दस हजार से ऊपर शिष्य रहते हैं.
राजा की जिज्ञासा बढ़ी तो उन्होंने स्वयं गुरु लिन ची से यह बात पूछी – “मठ में आपके कितने शिष्य हैं?”
“यही कोई तीन चार. और बहुत से बहुत पाँच” लिन ची ने जवाब दिया.
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207
मां को समर्पण
रामकृष्ण परमहंस को उनके जीवन के अंतिम समय में गले का कैंसर हो गया था. दवाइयों से कोई फर्क नहीं पड़ा और मर्ज बढ़ता गया. इसी बीच कलकत्ता के एक प्रसिद्ध विद्वान उनसे मिलने आए और बातों बातों में परमहंस से कहा – “डॉक्टरों ने हाथ खड़े कर दिए हैं. अब एक ही आसरा है – देवी मां से प्रार्थना करें कि वे आप पर दया करें और आपको दुःख से मुक्ति प्रदान करें.”
इस बात पर परमहंस ने कहा – “शशिधर! कैसी बात कहते हो. मैं मां से भला ऐसी बात कह सकता हूँ? मैंने देवी माँ से आज तक कुछ नहीं मांगा और न आगे कभी मांगूंगा.”
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नीति निर्माता
कनखजूरे ने उल्लू से अपनी समस्या बताई कि उसके पैरों में दर्द रहता है और उसका उपाय पूछा.
उल्लू ने उसे भरपूर देखा और बताया – तुम्हारे तो बहुत सारे पैर हैं. तुम चूहा क्यों नहीं बन जाते. फिर तुम्हारे सिर्फ चार ही पैर हो जाएंगे. इससे तुम्हें दर्द भी पच्चीसवें हिस्से जितना होगा.
इस बात पर कनखजूरा खुश हो गया. उसने उल्लू से पूछा – कि वो चूहा कैसे बन सकता है.
मेरा काम तो तुम्हें उपाय बताना था. उपाय पर अमल में कैसे लाना है यह तो तुम देखो - उल्लू ने स्पष्ट किया.
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(सुनील हांडा की किताब स्टोरीज़ फ्रॉम हियर एंड देयर से साभार अनुवादित. कहानियाँ किसे पसंद नहीं हैं? कहानियाँ आपके जीवन में सकारात्मक परिवर्तन ला सकती हैं. नित्य प्रकाशित इन कहानियों को लिंक व क्रेडिट समेत आप ई-मेल से भेज सकते हैं, समूहों, मित्रों, फ़ेसबुक इत्यादि पर पोस्ट-रीपोस्ट कर सकते हैं, या अन्यत्र कहीं भी प्रकाशित कर सकते हैं.अगले अंकों में क्रमशः जारी...)
बहुत खूब .......
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