आसपास की बिखरी हुई शानदार कहानियाँ संकलन – सुनील हांडा अनुवाद – परितोष मालवीय व रवि-रतलामी 355 किसका मनोरंजन - तुम्हारा या ...
आसपास की बिखरी हुई शानदार कहानियाँ
संकलन – सुनील हांडा
अनुवाद – परितोष मालवीय व रवि-रतलामी
355
किसका मनोरंजन - तुम्हारा या उसका
जब नसरुद्दीन चार साल के हुए तो आसपड़ोस की महिलाओं ने उनके जन्मदिन के अवसर पर एक पार्टी आयोजित की जिसमें विभिन्न खेलकूद प्रतियोंगिताओं का आयोजन हुआ।
जब काफी देर तक महिलाओं का खेलकूद जारी रहा तो नसरुद्दीन बोले - "आखिर ये सब कब खत्म होगा और मेरा नंबर कब आएगा।"
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तीन छन्नी परीक्षण
प्राचीन यूनान में सुकरात नामक एक विख्यात दार्शनिक एवं ज्ञानी व्यक्ति रहा करते थे। एक दिन उनका एक परिचित उनसे मिलने आया और बोला - "क्या तुम जानते हो कि मैंने तुम्हारे मित्र के बारे में क्या सुना है?"
सुकरात ने उसे टोकते हुए कहा - "एक मिनट रुको। इसके पहले कि तुम मुझे मेरे मित्र के बारे में कुछ बताओ, उसके पहले मैं तीन छन्नी परीक्षण करना चाहता हूं।"
"तीन छन्नी परीक्षण?"
सुकरात ने कहा - "जी हां मैं इसे तीन छन्नी परीक्षण इसलिए कहता हूं क्योंकि जो भी बात आप मुझसे कहेंगे, उसे तीन छन्नी से गुजारने के बाद ही कहें।"
"पहली छन्नी है "सत्य "। क्या आप यह विश्वासपूर्वक कह सकते हैं कि जो बात आप मुझसे कहने जा रहे हैं, वह पूर्ण सत्य है?"
"व्यक्ति ने उत्तर दिया - "जी नहीं, दरअसल वह बात मैंने अभी-अभी सुनी है और...."
सुकरात बोले - "तो तुम्हें इस बारे में ठीक से कुछ नहीं पता है। "
"आओ अब दूसरी छन्नी लगाकर देखते हैं। दूसरी छन्नी है "भलाई "। क्या तुम मुझसे मेरे मित्र के बारे में कोई अच्छी बात कहने जा रहे हो?"
"जी नहीं, बल्कि मैं तो...... "
"तो तुम मुझे कोई बुरी बात बताने जा रहे थे लेकिन तुम्हें यह भी नहीं मालूम है कि यह बात सत्य है या नहीं।"- सुकरात बोले।
"तुम एक और परीक्षण से गुजर सकते हो। तीसरी छन्नी है "उपयोगिता "। क्या वह बात जो तुम मुझे बताने जा रहे हो, मेरे लिए उपयोगी है?"
"शायद नहीं..."
यह सुनकर सुकरात ने कहा - "जो बात तुम मुझे बताने जा रहे हो, न तो वह सत्य है, न अच्छी और न ही उपयोगी। तो फिर ऐसी बात कहने का क्या फायदा?"
"तो जब भी आप अपने परिचित, मित्र, सगे संबंधी के बारे में कुछ गलत बात सुने,
ये तीन छन्नी परीक्षण अवश्य करें। "
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कोई मेरे सारे पाप धो दो!
गंगा नदी के घाट पर स्नानार्थियों की भीड़ थी. शुभ मुहूर्त पर सब अपने पाप गंगा नदी में धोने दूर-दराज से मुंह अंधेरे चले आए थे.
सब अपने अपने समय से स्नान ध्यान कर जा रहे थे. वहीं पर आगे एक गड्ढे में एक स्त्री गिरी हुई पड़ी थी. वह मदद के लिए हाथ उठाकर चिल्ला रही थी कि कोई उसे उस गड्ढे से बाहर निकलने में मदद करे!
लोग मदद के लिए हाथ बढ़ाते, मगर वह स्त्री हाथ पकड़ने से पहले उनसे पूछती – “यदि आप पूरी तरह निष्पाप हों. तभी आप मुझे बाहर निकालें. नहीं तो जो श्राप मुझपर है, वह आप पर स्थानांतरित हो जाएगा. और मैं यह भार अपने ऊपर लेना नहीं चाहती.”
लोग सहम जाते, कुछ क्षण विचार कर फिर आगे बढ़ जाते. बहुत देर हो गई. यही सिलसिला चलता रहा.
आखिर में एक युवक आया. वह गंगा में अभी हाल ही में स्नान कर आया था. उसके शरीर से नदी का पानी ढंग से सूखा भी नहीं था. उस स्त्री के क्रंदन सुनकर वह उसके पास पहुँचा. उस स्त्री ने उससे फिर वही बात दोहराई.
उस युवक ने पूरी बात सुनकर मुस्कुराते हुए कहा – “बिलकुल. मैं पूरी तरह निष्पाप व्यक्ति हूँ. देख नहीं रही कि मैं अभी गंगा से स्नान कर निकला हूँ. मेरे सारे पूर्व पाप पवित्र गंगा की नदी की धारा में धुल चुके हैं. और अभी तक मुझसे कोई नया पाप नहीं हुआ है. यदि मैं तुम्हें नहीं बचाऊं तो एक नया पाप जरूर हो जाएगा. अब जल्द अपना हाथ मुझे दो...”
हम सभी अपने कर्मकांड विश्वास-रहित तरीके से करते हैं. जिस दिन हममें विश्वास पैदा हो जाएगा, उस दिन चमत्कार भी हो जाएगा.
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113
पत्थरों का थैला
एक युवक को मुंह अंधेरे किसी दूसरे नगर जाना था. समय का भ्रम होने से वह घर से थोड़ा पहले निकल गया. रास्ते में नदी पड़ती थी. तय समय से यदि वह घर से निकलता तो सूर्योदय पर नदी तक पहुँच जाता जिससे उसे नदी पार करने में सहूलियत होती. मगर चूंकि वह जल्दी निकल गया था, अतः अभी भी घनघोर अँधेरा था. युवक ने सूर्योदय तक का समय नदी के किनारे काटने का निश्चय किया. वह बैठने के लिए समुचित चट्टान तलाशने लगा. इतने में उसके पैर से कोई चीज टकराई. उसने टटोला तो पाया कि वह एक थैला था. थैले के अंदर उसे लगा कि किसी ने पत्थरों के छोटे छोटे टुकड़े जमा कर रखे हैं. उसने बेध्यानी में थैला हाथ में ले लिया.
उसे नदी के किनारे पर ही बैठने लायक एक चट्टान मिल गया. नदी की कल कल धारा बह रही थी और वातावरण में सुमधुर संगीत की रचना कर रही थी.
युवक ने थैले से एक पत्थर निकाला और नदी की धारा में उछाल दिया. छप् की आवाज हुई और वो देर तर गूंजती रही. युवक ने दूसरा पत्थर थैले से निकाला और नदी की धारा में उछाल दिया. फिर से छप्प की आवाज हुई और एक नया संगीत बज उठा. युवक ने थैले के पत्थरों से देर तक संगीत की रचना की.
इतने में यकायक क्षितिज में सूर्य की किरणें चमकने लगीं. युवक के हाथ में थैले का आखिरी पत्थर था. वह उसे नदी की ओर उछालने ही वाला था कि एक चमकीली रौशनी उसके आँखों में पड़ी. वह रौशनी उसके हाथ में रखे पत्थर से परिवर्तित हो कर आ रही थी. उसके हाथ में हीरा था जो सूर्य प्रकाश से दमकने लगा था.
युवक ने अपना माथा पकड़ लिया. तो, वह अब तक थैले में भरी सामग्री को पत्थरों के टुकड़े समझ कर फेंक रहा था!
हम सभी क्षणिक आनंद की खातिर अपना बहुत सारा जीवन इसी प्रकार पत्थर की तरह फेंकते रहते हैं, और तभी उसके महत्व को समझ पाते हैं जब जीवन का क्षीणांश बचता है.
(सुनील हांडा की किताब स्टोरीज़ फ्रॉम हियर एंड देयर से साभार अनुवादित. कहानियाँ किसे पसंद नहीं हैं? कहानियाँ आपके जीवन में सकारात्मक परिवर्तन ला सकती हैं. नित्य प्रकाशित इन कहानियों को लिंक व क्रेडिट समेत आप ई-मेल से भेज सकते हैं, समूहों, मित्रों, फ़ेसबुक इत्यादि पर पोस्ट-रीपोस्ट कर सकते हैं, या अन्यत्र कहीं भी प्रकाशित कर सकते हैं.अगले अंकों में क्रमशः जारी...)
तीन छन्नी परीक्षण वाह क्या बात बतलाई है। एक सूत्र रूप में हमेशा याद रखूंगा। सभउ - सत्य, भलाई, उपयोगिता। धन्यवाद।
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जवाब देंहटाएंछन्नियां लिये जा रहा हूं।
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