कॉमनवेल्थ खेलों का आयोजन सफलतापूर्वक हो गया. तमाम आरोपों प्रत्यारोपों के बीच आयोजन कई मामलों में अच्छा खासा सफल रहा. एक अकेले 40 करोड़ रुप...
कॉमनवेल्थ खेलों का आयोजन सफलतापूर्वक हो गया. तमाम आरोपों प्रत्यारोपों के बीच आयोजन कई मामलों में अच्छा खासा सफल रहा. एक अकेले 40 करोड़ रुपए के एयरोस्टेट नामक गुब्बारे ने सभी आलोचकों की हवा निकाल दी.
राष्ट्रमंडल खेलों ने कई स्वर्ण-रजत-कांस्य पदक विजेता खिलाड़ी दिए. पर, इससे कहीं ज्यादा संख्या में लखपति, करोड़पति और अरबपति दे दिए. और, धातु के पदकों से ये कहीं ज्यादा महत्वपूर्ण है. भारत में नव धनाढ्यों की संख्या में अच्छा खासा इजाफ़ा जो हो गया. वैसे भी, आज के जमाने में फोर्ब्स की सूची ज्यादा महत्वपूर्ण है.
अब तो पैटी कॉन्ट्रैक्टर से लेकर बड़े बड़े कमीशन बाज सभी बड़ी उम्मीदें लगा बैठे हैं कि दिल्ली में अगला एशियाड, अगला ओलंपिक और यहाँ तक कि अगला विंटर ओलंपिक भी होना ही चाहिए.
इसके लिए वे कलमाड़ी के नेतृत्व में अपनी तरह से हरचंद कोशिशें करने में लग गए हैं. अंदर की पुख्ता खबर ये है कि वे एशियाड/ओलंपिक कमेटी के सदस्यों को, राष्ट्रमंडल खेलों के सदस्य देशों के तर्ज पर हर किस्म की भेंट पेशकश करने की सोच रहे हैं ताकि ऐन-कैन-प्रकारेण आयोजन दिल्ली को मिल जाए. जाहिर है इन खेलों के दिल्ली में आयोजन हेतु कई सौ हजार करोड़ रुपए का बजट नए सिरे से स्वीकृत होंगे, नए काम आएंगे, नए टेंडर होंगे, नए वारे-न्यारे होंगे. अपनी लॉबीइंग की सफलता को लेकर वे पूरी तरह आश्वस्त हैं. यदि ऐसा हुआ तो जल्द ही दिल्ली को एशियाड, ओलंपिक और विंटर ओलंपिक के मेहमान नवाजी का श्रेय मिलेगा. विंटर ओलंपिक करवाने के बारे में राष्ट्रमंडल खेल के एक बड़े कांट्रेक्टर ने बातों बातों में बताया कि हम तो जून के महीने में भी दिल्ली को बर्फ से पाट देंगे. बस बजट हमारी मर्जी का और बढ़िया होना चाहिए.
इधर खेलों के धुर विरोधी मणिशंकर कहते हैं कि अस्सी हजार करोड़ रुपए से ग़रीबों की शिक्षा में क्रांति हो जाती. अब उन्हें कौन समझाए कि ग़रीबों को शिक्षित कर आखिर क्या हासिल होगा? ग़रीब तो ग़रीब बने रहने के लिए अभिशप्त हैं. ग़रीब अगर पांचवी कक्षा तक पढ़ भी लेगा तो आखिर करेगा क्या? वही, मजदूरी ना. तो वो तो राष्ट्रमंडल खेल जैसे आयोजन नियमित होते रहें तो उनकी मजदूरी भी नियमित बनी रहेगी. मणिशंकर को ये नहीं दिखा कि खेलों की तैयारी के दौरान मजदूरों की कितनी कमी हो गई थी. उन्हें ये भी नहीं दिखा कि अस्सी हजार करोड़ बजट में हुई जमकर कमीशनबाजी के खेल ने भारत में व भारत के बाहर कितने लखपति, करोड़पति और अरबपति तैयार कर दिए. इस हिसाब से भारत की अमीरी कुछ फीसदी ही सही, बढ़ी तो है.
तो आइए, दिल्ली में अगले एशियाड, ओलंपिक और विंटर ओलंपिक के आयोजन के लिए हम सभी मिलकर प्रार्थना करें, प्रयास करें.
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(चित्र – साभार : रेडिफ़.कॉम)
इस बार तो चुक गए थे. पता नहीं था यूँ भी लखपति करोड़पति बना जा सकता है. मगर अब पता चल गया है तो लोबिंग करेंगे. जुगाड़ करेंगे. और उससे पहले अन्य खेल जिसे लोग खिलवाड़ भी कहते है दिल्ली हो इसके लिए प्रार्थना करेंगे.
जवाब देंहटाएंविचारेत्तेजक आलेख। बहुत अच्छी प्रस्तुति। हार्दिक शुभकामनाएं और बधाई!
जवाब देंहटाएंउठ तोड़ पीड़ा के पहाड़!
jaldi karo sir.. is baar to main bhi 1-2 caror jaroor dakaroonga.. aap sab bhi haat ajmaye.
जवाब देंहटाएंतमाम तरह के खेलों के बीच आप "एफ्रो-एशिया" खेल भूल गए जो बन्दर बाँट के लिए खोजे गए और उनका आयोजन भी हुआ.
जवाब देंहटाएं‘कॉमनवेल्थ खेलों के बाद अब दिल्ली में एशियाड, ओलंपिक और विंटर ओलंपिक भी!
जवाब देंहटाएंइसमें कलमाडी कहां खडे हैं? :)
हम तो जून के महीने में भी दिल्ली को बर्फ से पाट देंगे. बस बजट हमारी मर्जी का और बढ़िया होना चाहिए..
जवाब देंहटाएंशुक्र है.. दिल्ली ही कहा.. वरना हमारे कांट्रेक्टर राजस्थान के रेगिस्तान में ये करने का दम रखते है. बस बजट हो मर्जी का..
बहुत कुछ बदल गया है | इस देश की स्थिति भी मेरे समाज जैसी ही है जहा झूठी इज्जत के लिये अपने घर और जमीन तक लोग बेच देते है |
जवाब देंहटाएंघर फूंक कर तमाशा दिखाने का और देश को लुटने का इससे बढ़िया क्या तरीका हो सकता है !!
जवाब देंहटाएंवैसे भ्रष्टाचार करने के मामले में कांग्रेसियों का कोई सानी नहीं !!
जी हाँ दिल्ली में अब विंटर ओलंपिक होने ही चाहिए.
जवाब देंहटाएंआप जो भी कराएँ, उसमें ब्लागरों के लिए कोई गुंजाइश जरूर रखिएगा। सबको भले ही कुछ न मिले, कुछ मिलने की शुरुआत आपसे होगी तो भी चलेगा। आप शुरुआत कराइएगा, हमारा नम्बर भी कभी न कभी तो लग ही जाएगा।
जवाब देंहटाएंअगली बार तो हम भी टेंडर भरने का इंतज़ार कर रहे हैं जी. बस आपकी दुवाएं कबूल हो जाएँ. :)
जवाब देंहटाएंदेश को इसी तरह के खेल प्रशासक मिलते रहें. आमीन.
जवाब देंहटाएंविन्टर ओलम्पिक ........... यह तो जरूर होना चाहिये
जवाब देंहटाएंबहुत आगे जाना है, 80,000 भी कोई अंक है भला?
जवाब देंहटाएंगेम्स तो नहीं इस बीच एक फिल्म हम भी देख डारे और डर भी गए..............खेल खेल में .!
जवाब देंहटाएंअब ये न पूच्ग्गना की नयी वाली या पुरानी वाली :) .
उत्कृष्ट पोस्ट। बहुत चाँदी काटी गई है, जिसकी कोई खास सुनवाई होगी नहीं। मामला ठंडा होते ही ये सब दोबारा शुरु होगा। कहीं फाके, कहीं पर नोट की बरसात यही है हमारे देस का रंग। ये सब भूल कर अपने संग्रह को बांट रहा हूँ ईहिंदीकहानियाँ पर। आएँ कभी।
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