इलेक्ट्रॉनिक माध्यमों में हिंदी – यह किशोरी हिंदी अल्हड़ है और चुलबुली भी

SHARE:

दैनिक भास्कर ने 14 सितंबर 2010 हिंदी दिवस पर 24 पृष्ठों का एक राष्ट्रीय विशेषांक निकाला था. यह एक अलग किस्म की, संग्रहणीय पहल रही. उक्त ...

दैनिक भास्कर हिंदी विशेषांक 14 सितम्बर 2010 dainik bhaskar hindi special

दैनिक भास्कर हिंदी विशेषांक 14 सितम्बर 2010 dainik bhaskar hindi special

दैनिक भास्कर ने 14 सितंबर 2010 हिंदी दिवस पर 24 पृष्ठों का एक राष्ट्रीय विशेषांक निकाला था. यह एक अलग किस्म की, संग्रहणीय पहल रही. उक्त विशेषांक में हिंदी के तमाम दिग्गजों के बीच एक अदने से हिंदी ब्लॉगर (मेरा) का भी एक आलेख छपा है. पढ़िए वह आलेख:

दैनिक भास्कर हिंदी विशेषांक 14 सितम्बर 2010 dainik bhaskar hindi special

मनुष्य जब जन्म लेता है तो वो रो कर दुनिया को अपने वजूद का अहसास दिलाता है. दुनिया को अपने वजूद का अहसास दिलाने का उसका यह प्रयास उसके महाप्रयाण तक नित्य, निरंतर जारी रहता है. हर माकूल जगह पर वो अपने विचारों को परोसने के लिए सदैव तत्पर रहता है. धन्य है आज की टेक्नोलॉज़ी दुनिया – इस काम के लिए उसके पास आज मोबाइल है, इंटरनेट है.

मोबाइल और कंप्यूटिंग टेक्नोलॉज़ी ने भाषाई दीवारों को ढहाने में ग़ज़ब का काम किया है. आप किसी का भी – जी हाँ, किसी भी हिंदी भाषी व्यक्ति का मोबाइल उठाकर उसके संदेश बक्से में झांक लें. आपको अधिकतर ऐसे एसएमएस मिलेंगे जो रोमन हिंदी में लिखे होंगे. यूँ रोमन हिंदी को पढ़ने में कठिनाई होती है और कभी कभार अर्थ का अनर्थ भी हो जाता है, मगर मोबाइलों में हिंदी लिखने की अंतर्निर्मित सुविधा न होने पर भी लोग धड़ल्ले से रोमन लिपि में हिंदी में संदेशों का बखूबी आदान प्रदान कर रहे हैं. बहुत से मोबाइलों में हिंदी (देवनागरी लिपि) में लिखने की सुविधा तो मिलती है, परंतु अकसर गंतव्य तक पहुँचते पहुँचते संदेशों का कचरा हो जाता है. स्थिति ये है कि एचटीसी, आईफ़ोन जैसे उच्चस्तरीय स्मार्ट मोबाइल फोनों में भी लोगबाग देवनागरी में हिंदी पढ़ने-लिखने का जुगाड़ ढूंढते मिल जाते हैं. मोबाइल प्लेटफ़ॉर्म में जब तक यूनिकोड मानक को पूरी तरह अपना नहीं लिया जाएगा, समस्या बनी रहेगी और लोग ‘मैं जा रहा हूं’ जैसे सरल वाक्य को लिखने के लिए रोमन लिपि में ‘me jaa rahaa hun’ लिखकर काम चलाते रहेंगे.

इंटरनेट पर यूनिकोड हिंदी आने के पहले एक तरह से रोमन हिंदी का ही साम्राज्य चलता था. स्थिति तेजी से बदली है और अब तो कम्प्यूटर पर हिंदी (यूनिकोड देवनागरी) टाइप करने के तमाम किस्म के अनगिनत आसान औजारों से इंटरनेट पर हिंदी प्रयोक्ताओं का एक तरह से महाविस्फोट हो गया है. कयास लगाए जा रहे हैं कि इंटरनेट पर हिंदी पृष्ठों की संख्या अंग्रेज़ी व चीनी के बाद तीसरे नंबर पर जल्द ही पहुँच जाएगी. इंटरनेट पर हिंदी पृष्ठों में खासा इज़ाफ़ा ब्लॉगों, फ़ेसबुक, ओरकुट जैसे सोशल नेटवर्किंग साइटों के हिंदी प्रयोक्ताओं के कारण हो रहा है. इन साइटों के प्रयोक्ता दिन दूनी रात चौगुनी के दर से बढ़ रहे हैं और सामग्री दिन चौगुनी रात नौगुनी की दर से. इंटरनेट से जुड़ा हर व्यक्ति अपनी बात, अपने विचार, अपना सृजन सबके के सामने रखना चाह रहा है. प्रश्न उठता है कि उसकी हिंदी कैसी है? हिंदी इन नए माध्‍यमों के आने से क्या कुछ बदल रही है और इन माध्‍यमों का हिंदी भाषा, शैली आदि पर क्‍या कोई प्रभाव पड़ रहा है?

इंटरनेट पर अपने तरह के अनगिनत ‘हंस के अभिनव ओझा’ अवतरित हो गए हैं जो गाहे-बगाहे, ठहरते-विचरते लोगों की भाषा, व्याकरण और वर्तनी की ग़लतियों की ओर इंगित करते रहते हैं. यहाँ फर्क यह है कि मामला एकतरफा नहीं होता. हाल ही में तकनीकी हिंदी फोरम में शब्दकोश के ‘कोश’ या ‘कोष?’ को लेकर लंबी बहस छिड़ी जो हफ़्तों जारी रही और जब इस सिलसिले में हिंदी भाषा के इतिहास के पन्ने खुले तो तथाकथित बड़े साहित्यकारों समेत ऐसे ओझाओं के तथाकथित ज्ञान की परतें भी खुल गईं. इंटरनेट में एक ओर भाषा में परिशुद्धता के पैरोकारों की कमी नहीं है तो वहीं दूसरी ओर मस्त-मौला चाल में अपनी भाषा, अपनी वर्तनी और अपने स्टाइल में लिखने वालों की भी कमी नहीं है. आपकी परिशुद्ध भाषा जाए भाड़ में हमारी तो अपनी शैली, अपनी भाषा के तर्ज पर. वैसे भी, जब आप ट्रांसलिट्रेशन जैसे औजारों की सहायता से लिख रहे हों तो ‘कि’ और ‘की’ में फर्क को पाठकों पर ही क्यों न छोड़ दें! बात यहीं तक थी तब तक भी ठीक-ठाक था. प्रयोगवादी तो लिपि का भी अंतर्राष्ट्रीयकरण कर रहे हैं – यानी तुक भिड़ानी हो तो धड़ल्ले से रोमन लिपि का प्रयोग. आपको ये बात भले ही ऊटपटांग लगे, मगर ऐसे ही एक प्रयोगवादी कवि राहुल उपाध्याय की ‘इंटरनेशनल हिंदी’ में ये ग़ज़ल देखिए जो उन्होंने अपने ब्लॉग पर छापी है –

21 वीं सदी

डूबते को तिनका नहीं 'lifeguard' चाहिये

'graduate' को नौकरी ही नहीं 'green card' चाहिये

खुशियाँ मिलती थी कभी शाबाशी से

हर किसी को अब 'monetary reward' चाहिये

जो करते हैं दावा हमारी हिफ़ाज़त का

उन्हें अपनी ही हिफ़ाज़त के लिये 'bodyguard' चाहिये

घर बसाना इतना आसान नहीं इन दिनों

कलेजा पत्थर का और हाथ में 'credit card' चाहिये

'blog, email' और 'groups' के ज़माने में

भुला दिये गये हैं वो जिन्हें सिर्फ़ 'postcard' चाहिये

तो एक तरफ इंटरनेट पर हिंदी भाषा के प्रयोग में अखबारी किस्म का घालमेल बहुतायत में नजर आता है, वहीं दूसरी तरफ छिटपुट तौर पर भाषा प्रयोग के नए अनगढ़ शिल्प भी देखने को मिलते हैं. प्रमोद सिंह पठन-पाठन में थकने की बात कुछ इस नए, नायाब अंदाज में कह रहे हैं –

“...लल्‍ली बरसात का पानी में लेसराया साड़ी समेट रही थी, मने असमंजस था कि कड़ाही में चूड़ा भूज लें कि पाव भर पकौड़ी छान लें, उखड़े मन छनछनाई बोलीं, तुमलोक को सरम नहीं लगता कि इसके और उसके पीछे साहित्तिक अलता सजाते चलते हो? सोहर गाते हो तो अइसा जेमें दू आना के जलेबी जेतना भी मिठास नहीं है, और हमरे छिनके मन को अपने बभनई में उलझाते हो? हमरे बिस्‍वास को? हमरे मन के अंतरंग के अनुराग को?...”

ये एक ऐसी कौमार्य हिंदी है जिसमें आंचलिकता की छाप है, देसी मिट्टी की सुगंध है, नए शब्दों का छौंक है. जाहिर है इन सोशल नेटवर्किंग साइटों में एक ओर हिंदी का घोर इंटरनेशलाइजेशन हो रहा है तो दूसरी ओर हिंदी की आंचलिक भाषाओं को अपने पवित्र रूप में फलने फूलने और जमे रहने का सस्ता सुंदर और टिकाऊ वातावरण भी मिला है जहाँ अवधी भी है, मालवी भी है, बुंदेलखंडी, छत्तीसगढ़ी, भोजपुरी, हरियाणवी इत्यादि सभी हैं. और, यदि आप में क्रिएटिविटी हो तो इनमें घालमेल कर कोई नई सरसराती भाषा शैली भी ईजाद कर लें, और यकीन मानिए, आपके फालोअरों की कोई कमी भी नहीं होगी.

इंटरनेट है ही ऐसा. सबके लिए स्पेस. वृहत्. अनंत. असीमित.

COMMENTS

BLOGGER: 6
  1. मै अखबार नहीं पढ़ पाता हूँ लेकिन आपका यह लेख अब पढ़ लिया है | इस अच्छी खबर हेतु आपको बहुत बहुत बधाई |

    जवाब देंहटाएं
  2. डिजिटल हिन्दी का पठनीय इतिहास।

    जवाब देंहटाएं
  3. हम हिन्दी के एक और महत्वपूर्ण दौर से गुजर रहे हैं

    जवाब देंहटाएं
  4. बहुत अच्छी व्याख्या अपनी ‘जाली’ हिंदी की। जाली नोट वाली जाली नहीं बल्कि अंतर्जाली वाली जाली।

    जवाब देंहटाएं
  5. सार्थक और सटीक खबर ली गयी है . हालात सुधरेंगे .थोडा तकनीकी और आगे बढे और मानक तय हो जाएँ एकरूप .

    जवाब देंहटाएं
  6. शुघ्‍दता का आग्रह तो नहीं किन्‍तु व्‍याकरण को बचाने के बारे में सोचिएगा। 'की' और 'कि' में अन्‍तर है। आज छूट के नाम पर व्‍याकरण नष्‍ट कर दिया गया तो यकीन मानिए, अनर्थ ही होना है।

    आंचलिकता अलग बात है और व्‍याकरण अलग।

    प्रसंगवश उल्‍लेख है कि आपका यह लेख, पन्‍द्रह सितम्‍बर को ही पढ लिया था।

    जवाब देंहटाएं
आपकी अमूल्य टिप्पणियों के लिए आपका हार्दिक धन्यवाद.
कृपया ध्यान दें - स्पैम (वायरस, ट्रोजन व रद्दी साइटों इत्यादि की कड़ियों युक्त)टिप्पणियों की समस्या के कारण टिप्पणियों का मॉडरेशन लागू है. अतः आपकी टिप्पणियों को यहां पर प्रकट होने में कुछ समय लग सकता है.

नाम

तकनीकी ,1,अनूप शुक्ल,1,आलेख,6,आसपास की कहानियाँ,127,एलो,1,ऐलो,1,कहानी,1,गूगल,1,गूगल एल्लो,1,चोरी,4,छींटे और बौछारें,148,छींटें और बौछारें,341,जियो सिम,1,जुगलबंदी,49,तकनीक,56,तकनीकी,709,फ़िशिंग,1,मंजीत ठाकुर,1,मोबाइल,1,रिलायंस जियो,3,रेंसमवेयर,1,विंडोज रेस्क्यू,1,विविध,384,व्यंग्य,515,संस्मरण,1,साइबर अपराध,1,साइबर क्राइम,1,स्पैम,10,स्प्लॉग,2,हास्य,2,हिंदी,5,हिन्दी,509,hindi,1,
ltr
item
छींटे और बौछारें: इलेक्ट्रॉनिक माध्यमों में हिंदी – यह किशोरी हिंदी अल्हड़ है और चुलबुली भी
इलेक्ट्रॉनिक माध्यमों में हिंदी – यह किशोरी हिंदी अल्हड़ है और चुलबुली भी
http://lh6.ggpht.com/_t-eJZb6SGWU/TJGnxVfTZ1I/AAAAAAAAJEg/ebFj5i-lbNk/Image007%5B3%5D.jpg?imgmax=800
http://lh6.ggpht.com/_t-eJZb6SGWU/TJGnxVfTZ1I/AAAAAAAAJEg/ebFj5i-lbNk/s72-c/Image007%5B3%5D.jpg?imgmax=800
छींटे और बौछारें
https://raviratlami.blogspot.com/2010/09/blog-post_16.html
https://raviratlami.blogspot.com/
https://raviratlami.blogspot.com/
https://raviratlami.blogspot.com/2010/09/blog-post_16.html
true
7370482
UTF-8
Loaded All Posts Not found any posts VIEW ALL Readmore Reply Cancel reply Delete By Home PAGES POSTS View All RECOMMENDED FOR YOU LABEL ARCHIVE SEARCH ALL POSTS Not found any post match with your request Back Home Sunday Monday Tuesday Wednesday Thursday Friday Saturday Sun Mon Tue Wed Thu Fri Sat January February March April May June July August September October November December Jan Feb Mar Apr May Jun Jul Aug Sep Oct Nov Dec just now 1 minute ago $$1$$ minutes ago 1 hour ago $$1$$ hours ago Yesterday $$1$$ days ago $$1$$ weeks ago more than 5 weeks ago Followers Follow THIS PREMIUM CONTENT IS LOCKED STEP 1: Share to a social network STEP 2: Click the link on your social network Copy All Code Select All Code All codes were copied to your clipboard Can not copy the codes / texts, please press [CTRL]+[C] (or CMD+C with Mac) to copy Table of Content