इंडली – देसी डिग का अवतार – क्या ये ब्लॉगवाणी चिट्ठाजगत् का विकल्प हो सकता है?

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मैं बहुत अरसे से कहता आ रहा हूँ कि जब लाखों की संख्या में हिन्दी चिट्ठे होंगे, तो ब्लॉगवाणी व चिट्ठाजगत् का वर्तमान अवतार हमारे किसी काम ...

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मैं बहुत अरसे से कहता आ रहा हूँ कि जब लाखों की संख्या में हिन्दी चिट्ठे होंगे, तो ब्लॉगवाणी व चिट्ठाजगत् का वर्तमान अवतार हमारे किसी काम का नहीं रहेगा. ऐसे में डिग, स्टम्बलअपॉन जैसी साइटें ही कुछ काम-धाम की हो सकेंगी. इंडली हिन्दी का पदार्पण ठीक ऐसे समय में हुआ है, जब चहुँओर से हिन्दी चिट्ठों की बाढ़ आ रही है, और जनता ब्लॉगवाणी तथा चिट्ठाजगत् के वर्तमान स्वरूप से ऊब रही है. हिन्दी चिट्ठों की बाढ़ की यह गति अभी और बढ़ेगी, तथा आने वाले वर्षों में इसमें और त्वरण आएगा.

वैसे, देखा जाए तो कई मामलों में इंडली पूरी तरह से डिग की कार्बन कॉपी प्रतीत होती है. इसमें आप किसी ब्लॉग प्रविष्टि, समाचार, किसी साइट का कोई विशिष्ट पेज इत्यादि इत्यादि (यानी मामला सिर्फ ब्लॉगों तक सीमित नहीं है, परंतु यहाँ अधिकांशतः ब्लॉगों की दुनिया ही रमेगी) को जमा कर सकते हैं. किसी प्रविष्टि को कई – कई मर्तबा कई – कई प्रयोक्ताओं द्वारा जमा किया जा सकता है तथा उस पर बहस की जा सकती है. यदि कोई प्रविष्टि आपको लगता है कि इंडली पर आने व प्रदर्शित होने के काबिल नहीं है तो आप उसे गाड़ सकते हैं – यानी नापसंद कर सकते हैं. यह सुविधा बहुत कुछ ब्लॉगवाणी के पसंद-नापसंद जैसी है. मगर यहाँ किसी के ब्लॉग की सारी की सारी प्रविष्टि हर बार दिखे यह स्वचालित संभव नहीं है. आपको स्वयं या आपके पाठकों को यदि लगता है कि आपकी किसी पोस्ट (या हर पोस्ट? ) में दम है तो वो इंडली में जमा करेंगे तभी यह इंडली में दिखेगा. इंडली के प्रयोग के लिए आपको इसमें पंजीकृत होना होगा जो कि बेहद आसान है.

यहाँ पर भी चूंकि पसंद-नापसंद का मामला है, अतः कम यूजर बेस के चलते शुरूआत में ब्लॉगवाणी-पसंद-नापसंद की तरह मामला गड़बड़ा सकता है. किसी ब्लॉग प्रविष्टि के जमा होते ही खार खाए लोग उसे गाड़ने के लिए तत्पर बैठे रहेंगे, या फिर मित्र मंडली किसी प्रविष्टि को बारंबार जमा कर उसे लोकप्रिय पर कई दिनों तक लटकाए – बनाए रखेंगे.

मगर जब यूजर बेस बड़ा होगा, जेनुइन, सिंसियर प्रयोक्ता बढ़ेंगे, जैसा कि डिग – स्टम्बलअपॉन जैसी साइटों में हैं, तो कम संख्या के विघ्न संतोषी बाल बराबर भी हलचल नहीं मचा पाएँगे, यह तो तय है.

जो भी हो यह इंडली है बेहद मजेदार और बेहद काम का. हिन्दी के लिए एक बहु-प्रतीक्षित, अति-आवश्यक ऑनलाइन प्रकल्प.

परंतु एक चेतावनी – जो कि इंडली के पृष्ठों में भी दी गई है –

The success of Indli depends on the sincere participation of its users.

इंडली की सफलता इसके उपयोगकर्ताओं के निष्कपट सहभागिता पर निर्भर है.

भगवान के लिए, कृपया इंडली का प्रयोग निष्कपट रूप से करें. अपनी व अपने दोस्तों की हर टुच्ची सी पोस्ट इंडली पर न टिकाएँ!

 

यदि यह प्रविष्टि आपको पसंद आई  है तो कृपया इंडली पर इसे जमा करें. इसके लिए इस पोस्ट के ठीक नीचे दिए गए इंडली के सबमिट बटन पर क्लिक करें. यदि आपका खाता नहीं है तो आपको पंजीकृत होने के लिए कहा जा सकता है.

हैप्पी इंडली!

अगले पोस्ट में – इंडली का वोटिंग विजेट ब्लॉगर ब्लॉग में क्यों व कैसे डालें?

COMMENTS

BLOGGER: 8
  1. इंडली वाकई बढ़िया लग रहा है, पर ये कौन सी कंपनी ने शुरु किया है, इस पर भी प्रकाश डालिये।

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  2. जानकारी भरी बढ़िया पोस्ट

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  3. अच्छा है पर ब्लॉग फीड स्वचालित अवतरण नहीं होती यही कमी है |

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  4. बेहतर...
    ख़ुद समर्पित करने में थोड़ी तकलीफ़ तो होती है....

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  5. बेनामी11:01 am

    Ravi ji abhi (23june) mere exam samapt huye hain socha ab apke blog ki posten dekh loon ....mujhe ye dekh kar aacharya hua ki aapne apni blog template change kar li hai....ravi ji apki pichhali template is template se kahin jyada achhi thi.....ye to aisa hi hua jaise window xp ki jagah vista aa gayi ho .....(krapaya ise xp banayen ya windows 7 ....vista se kaam nahin chalega......)

    जवाब देंहटाएं
  6. सुनील जी, पुराना टैम्प्लेट पसंद करने के लिए आभार. दरअसल वो पुराना टैम्प्लेट भारी था और कई जगह पेज लोड होने में समस्या पैदा कर रहा था तो अब एकदम सादा टैम्प्लेट लगाया है. सादगी में सुंदरता है - कहावत भी है. उम्मीद है आप यहाँ सामग्री के लिए नियमित आते रहेंगे, टैम्प्लेट की सुंदरता देखने के लिए नहीं :)

    जवाब देंहटाएं
  7. रवि कुमार, रावतभाटा जी से सहमत

    जवाब देंहटाएं
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छींटे और बौछारें: इंडली – देसी डिग का अवतार – क्या ये ब्लॉगवाणी चिट्ठाजगत् का विकल्प हो सकता है?
इंडली – देसी डिग का अवतार – क्या ये ब्लॉगवाणी चिट्ठाजगत् का विकल्प हो सकता है?
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