सावधान! ऊर्जा बचत के लिए ‘अर्थ आवर’ बन सकता है ‘डिज़ॉस्टर आवर’

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  ऊर्जा बचत के लिए ‘अर्थ आवर’ जैसी विचारधारा काग़ज़ी तौर पर तो बड़ी उम्दा दिखाई देती है, मगर यह किसी बड़े डिज़ॉस्टर को निमंत्रण देती भी ...

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ऊर्जा बचत के लिए ‘अर्थ आवर’ जैसी विचारधारा काग़ज़ी तौर पर तो बड़ी उम्दा दिखाई देती है, मगर यह किसी बड़े डिज़ॉस्टर को निमंत्रण देती भी प्रतीत होती है. ‘अर्थ आवर’ में पूरी पृथ्वी पर हर तरफ (स्थानीय समयानुसार)  रात 8.30 बजे से 9.30 बजे तक एक साथ बिजली बत्ती बंद रखने की बात कही जा रही है. और अगर सचमुच हम सभी एक साथ बिजली बन्द कर दें, तो यह हमारे लिए बन सकता है ‘डिज़ॉस्टर आवर’. आइए, देखें कि कैसै.

 

वैसे तो आमतौर पर तमाम भारतीय क्षेत्रों में बिजली की खासी किल्लत बनी रहती है और शेड्यूल्ड, नॉन-शेड्यूल्ड तथा अंडर-फ्रिक्वेंसी बिजली कटौती के फलस्वरूप रोज ब रोज कई कई घंटे बिजली बन्द रहती है. ऐसे में ‘अर्थ आवर’ की अवधारणा भारतीय क्षेत्रों के लिए तो काम की ख़ैर नहीं ही है. मगर, कल्पना करें कि जहाँ चौबीसों घंटे बिजली मिलती रहती है, वहाँ पर आप अचानक, एक साथ तमाम बिजली (के तमाम उपकरणों को) बन्द कर दें तो क्या होगा? ये तो एक हादसे को निमंत्रण देने जैसा है.

आपको उदाहरण देकर स्पष्ट करते हैं. कल्पना करें कि कोई मालगाड़ी टनों वजन लेकर अपनी अधिकतम रफ़्तार से दौड़ रही है. अचानक ही कोई दैत्याकार राक्षस मालगाड़ी के तमाम वजन को अपने विशाल पंजों में एक झटके में उठा लेता है. मालगाड़ी का इंजन जो टनों वजन को अपनी पूरी शक्ति से खींच रहा होता है उसके ऊपर अब कोई लोड नहीं होता. तो ऐसे में क्या होगा? मालगाड़ी की गति अनंत हो जाएगी और वो बेपटरी होकर दुर्घटना-ग्रस्त हो जाएगी. ऐसे ही अचानक खाली (जब आप वापस बिजली चालू करेंगे) चलती मालगाड़ी पर अचानक लोड दे दिया जाएगा तो क्या होगा? मालगाड़ी धड़ से रूक जाएगी.

यही हाल हमाले विद्युत संयंत्रों का होगा. विद्युत संयंत्र अपने अपने लोड शेयरिंग के हिसाब से सिंक्रोनाइजेशन में चलते हैं. ‘अर्थ आवर’ के शुरू होते ही उनका लोड अचानक ही खत्म कर दिया जाएगा तो वे अचानक ही सिंक्रोनाइजेशन से बाहर हो जाएंगे और या तो वे दुर्घटनाग्रसत् हो जाएंगे या सुरक्षा के लिहाज से वे स्वयंमेव बन्द हो जाएंगे. इसी तरह ‘अर्थ आवर’ की समाप्ति पर जब अचानक लोड बढ़ेगा तो फिर से एकबार यही स्थिति आएगी. और, एक बार कोई विद्युत संयंत्र सिंक्रोनाइज़ेशन से बाहर हो जाता है तो उसे वापस सिंक्रोनाइजेशन में लाने में समय, सावधानी और तैयारी लगती है. फिर, यहाँ पर तो लोड चहुँओर बन्द हो रहा है, ऐसे में यदा कदा टोटल ब्रेकडाउन की स्थिति भी आ सकती है. यानी – डिज़ॉस्टर को खुले आम आमंत्रण.

‘अर्थ आवर’ की अवधारणा अच्छी है, मगर इसमें व्यावहारिक परिवर्तन की दरकार है. 24 घंटों में क्षेत्रों की सहूलियत व प्रायोगिकता के हिसाब से बिजली बंद करने के समय को अलग-अलग किया जाना चाहिए ताकि इसके कारण विद्युत संयंत्रों व विद्युत वितरण कार्यप्रणाली में आने वाले झटकों को रोका जा सके.

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(समाचार कतरन – भास्कर.कॉम से साभार)

COMMENTS

BLOGGER: 9
  1. बेनामी12:15 pm

    yeh sab bade lagon k chonchle hain....

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  2. चोचलों के भी अपने फायदे है.

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  3. आह मैं तो डर गया. ठीक है, बत्ती नहीं बुझाउंगा !
    :)

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  4. बि‍ल्‍कुल सही कहा रवि‍ जी। ये अर्थ आवर भारत के संदर्भ में फालतू की संकल्‍पना है। अब जहां 24 घंटे में 1 से 4 घंटे तक बि‍जली मि‍ल रही हो उस देश में अर्थ आवर क्‍या क्‍या मतलब है ??

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  5. रवि जी बहुत सटीक !
    एक इलेक्ट्रिकल इंजीनीयर के नाते से कह रहा हूँ इसके परिणाम विनाशकारी होंगे. अलग अलग समयों पर अलग अलग समय लोड शेडिंग ही एकमात्र विकल्प है ,यह शोशेबाजी नहीं .

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  6. धरती घंटा मनायें मगर आहिस्ता आहिस्ता। :)

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  7. अर्थ ऑवर कई वर्षों से पूरे विश्व में होता रहा है... इसके चलते किस जगह पॉवर प्लांट्स "आउट "ऑफ़ सिंक" हुए हैं, रवि भाई, इसके कुछ उदाहरण मिल जाते तो लेख अधिक विश्वसनीय होता। अर्थ ऑवर के दौरन चुटकी बजाते ही हर चीज़ बंद नहीं होती... हम सभी की घड़ियाँ थोड़ी-आगे आगे पीछे चलती हैं और साथ ही हर किसी का ध्यान भी नहीं होता कि 20:30:00 होते ही सब बंद कर देंगे। (कुछ बड़ी बिल्डिंगो को छोड़कर) जो भी बिजली की चीज़े बंद होती हैं सब धीरे-धीरे ही होती हैं।

    अर्थ ऑवर बिजली बचाने के लिए नहीं है बल्कि पर्यावरण के लिए अपनी प्रतिबद्धता दर्शाने हेतु है। यदि बिजली बचाना ही उद्देश्य हो तो सारी दुनिया में एक घंटे के लिए बिजली काटी जा सकती थी लेकिन इससे केवल बिजली बचेगी -लोगों में जागरूकता नहीं आएगी। “अर्थ ऑवर” तो केवल एक सांकेतिक बात है –इसका पालन करने के साथ-साथ आपको पर्यावरण के प्रति वास्तव में जागरूक होना ही होगा।

    हर पश्चिमी अवधारणा बुरी भी नहीं होती... "अर्थ ऑवर" वैलंटाइन डे की तरह नहीं है... पर्यावरण हम सबका साझा है -इसमें पूरब पश्चिम की कोई बात ही नहीं।

    जवाब देंहटाएं
    उत्तर
    1. ललित जी, लेख की विश्वसनीयता पर प्रश्नचिह्न लगाने का सवाल ही नहीं उठता. मैंने यह लेख एक सर्टीफ़ाइड चार्टर्ड इलेक्ट्रिकल इंजीनियर होने के नाते विद्युत प्रदाय प्रणाली की अंदरूनी जानकारी होने के नाते लिखा है. यदि अर्थ आवर से प्रेरणा लेकर सभी लोग बत्ती एक साथ बुझा देंगे (भले ही इसमें 10-15 मिनट का अंतराल हो तो भी,) तो विनाशकारी परिणाम होंगे जिनका जिक्र मैंने किया है.

      मैं इस अवधारणा के खिलाफ नहीं हूँ. लेख के आखिरी पैरा में लिखा भी है. इस अर्थ आवर को एक ही दिन रात आठ बजे के बजाए उस दिन शाम सात बजे से बारह बजे के बीच अपने-अपने समयानुसार वितरित कर दिया जाना चाहिए ताकि सिस्टम में समस्या भी न हो और बिजली की बचत भी हो, और संदेश भी सही ढंग से पहुँचे.

      हटाएं
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सावधान! ऊर्जा बचत के लिए ‘अर्थ आवर’ बन सकता है ‘डिज़ॉस्टर आवर’
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