ब्लॉगवाणी में विज्ञापन अंतत: दिखने लगे. सुखद दृश्य है यह. बहुत पहले मैथिली जी व सिरिल से मुलाकात हुई थी तब मैंने उनसे आग्रह किया था कि ...
ब्लॉगवाणी में विज्ञापन अंतत: दिखने लगे. सुखद दृश्य है यह. बहुत पहले मैथिली जी व सिरिल से मुलाकात हुई थी तब मैंने उनसे आग्रह किया था कि चाहे जितनी व जैसी भी आर्थिक समर्थता हो, किसी भी प्रकल्प को चलते रहने के लिए उसका स्व-वित्तपोषित बने रहना आवश्यक है, और इसलिए विज्ञापनों का सहारा ब्लॉगवाणी को लेना ही चाहिए. परंतु उस वक्त उनके निर्मल आग्रह व उनके अव्यवसायिक विचारों में मेरे तर्कों ने कोई बदलाव नहीं लाए थे. मैंने यही आग्रह नारद के लिए भी किया था और चिट्ठाजगत के लिए भी. नारद का क्रियाकर्म तो हो ही चुका है, चिट्ठाजगत् बाबा-आदम के जमाने के सर्वर पर होस्ट हुआ मरियल चाल चल रहा है. संसाधनों को जेनरेट कर वापस प्रकल्पों में लगाया जाना कतई बुरा नहीं है – अभी कुछ दिनों से ब्लॉगवाणी में विज्ञापन दिखने लगे हैं. चिट्ठाजगत.कॉम को भी यह बात समझनी होगी.
बहरहाल, ब्लॉगवाणी को साधुवाद और इसके न सिर्फ अनंतकाल तक चलते रहने, बल्कि दिन-दूनी रात चौगुनी प्रगति हेतु शुभकामनाएँ.
विज्ञापन ब्लॉगवाणी के सेहत के लिए फायदेमंद तो दिखाई दे ही रहे हैं, ब्लॉगवाणी में और भी फीचर्स सुविधाएँ जुड़ने की संभावनाएँ भी दिखाई दे रही हैं. क्या ही अच्छा हो कि ब्लॉगवाणी के पंजीकृत प्रयोक्ताओं को इसमें वर्डप्रेस के जरिए ब्लॉग का एक प्लेटफ़ॉर्म भी मिले – भारतीय भाषाओं के लिए ऑप्टीमाइज़ किया हुआ? वैसे भी, ऑनलाइन प्रकल्पों में छठे-चौमासे नई नई सुविधाएँ प्रयोक्ताओं के लिए जोड़ी जानी चाहिए, तभी वे राह में बनी रह सकती हैं.
और हाँ, ब्लॉगवाणी हॉट को नए सिरे से ऑप्टीमाइज किए जाने की जरूरत आपको नहीं लगती? – क्योंकि, संभवतः अभी ये उतना और, सचमुच का नहीं है हॉट!
रवि जी , आपका सुझाव बिलकुल सही है कि संसाधनों को जेनेरेट कर वापस प्रकल्पों में लगाना चाहिए . और ब्लोगवाणी पर विज्ञापन देखकर हमें भी ख़ुशी हुई . एक बात जानना चाहेंगे कि ब्लॉगवाणी पर दिख रहे विज्ञापन अथवा अन्य वेबसाइट जैसे भड़ास आदि पर दिखने वाले विज्ञापन का स्रोत क्या है और किस आधार पर प्राप्त हो सकता है ? यदि समय हो तो अवश्य बताइए ? होली की शुभकामनायें !
जवाब देंहटाएंकिसी भी प्रकल्प को चलते रहने के लिए उसका स्व-वित्तपोषित बने रहना आवश्यक है |
जवाब देंहटाएंआपकी यह बात वाकई दमदार है |
हम किसी भी उद्देश्य के लिए कुछ करते हैं तो उस की निरंतरता तभी बनी रह सकती है जब कि उस के लिए आर्थिक साधन भी निरंतर जुटाए जाते रहें. सांगठनिक काम हो तो उस स्तर पर उस के लिए संसाधन जुटाए जा सकते हैं। लेकिन यदि ये काम वैयक्तिक स्तर पर किए जा रहे हैं तो उन का आय का साधन होना चाहिए। आज के युग में ब्लागवाणी जैसे प्रक्रम को जारी रखने के लिए विज्ञापन का सहारा लेना बिलकुल उचित है।
जवाब देंहटाएंहमारी कोशिश ब्लागवाणी में लगातार नई सुविधायें जोड़ने की रहेगी. कुछ तो आप देख चुके, और कई सारे नये प्रयोग पाइपलाइन में हैं और समय चलते आते रहेंगे. आपके आब्ज़र्वेशन सटीक हैं. ब्लागवाणी हॉट को भी सुधारने की कोशिश करेंगे, आप इस बारे में अपने सुझाव जरूर दें कि कैसे इसे बेहतर बनाया जाये.
जवाब देंहटाएंधन्यवाद
सच है कि, किसी उपक्रम के चलने के लिऐ वह जरूरी है कि वह अपने आप चल सके। लेकिन ब्लॉगवाणी में मुझे तो केवल तेहलका ही ऐसा दिख रहा है जो विज्ञापन की श्रेणी में कहा जा सकता है।
जवाब देंहटाएंकई बार फंड की कमी के कारण कई उपयोगी प्रकल्प दम तोड़ देते हैं। इसलिए स्ववित्तपोषण तो एक अपरिहार्यता है। आपकी बात में दम है।
जवाब देंहटाएंहोली पर आपको अनेक शुभकामनाएं
उदकक्ष्वेड़िका …यानी बुंदेलखंड में होली
MONEY IS ' MOTHER TINCTURE ' FOR ALL ACTIVITIES . ,GOOD , BAD OR EVEN UGLY.
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