कहावत है कि घूरे के भी दिन फिरते हैं. मच्छरों के भी दिन फिर गए हैं. अब तक तो हम सभी मच्छर भगाने के, मच्छर मारने के तमाम जतन करते फिरते थे....
कहावत है कि घूरे के भी दिन फिरते हैं. मच्छरों के भी दिन फिर गए हैं. अब तक तो हम सभी मच्छर भगाने के, मच्छर मारने के तमाम जतन करते फिरते थे. मच्छरदानी से लेकर आलआउट और बिजली के रैकेट, फ़ॉगिंग मशीन से लेकर गम्बूजिया मछली तक न जाने क्या क्या उपाय करते रहते थे और ओडोमॉस लगा लगाकर अपने चेहरे और हाथ पैरों का सत्यानाश करते रहते थे. यही मच्छर अब हमारे वैक्सीनेशन के काम आएंगे. अभी तो मलेरिया के वैक्सीन तैयार हुए हैं, जरा ठहरें. आगे मल्टीपल बीमारियों – जिनमें सर्दी-जुकाम से लेकर टाइफ़ाइड-कुकुर खांसी तक हो सकते हैं, उनके वैक्सीन मच्छरों के डंक से मिलने लगेंगे.
मच्छरों के लिए ये बयार उलटी होगी. अचानक ही वे सबके प्रिय हो जाएंगे. कोई उन्हें हिजड़ों की तरह ताली मारकर अब नहीं मारेगा. बल्कि पुचकारेगा – मच्छर-मियाँ, आओ, जरा हमें भी काट खाओ. मगर होगा ये कि मच्छर-मियाँ आपको काटेंगे ही नहीं. उनका मूड ही नहीं होगा काटने को. या फिर, वे व्यक्ति की शख्सियत देख देख कर काटा करेंगे – जैसे कि ऐश्वर्या या हृतिक जैसों के पीछे तो मच्छर पड़े रहेंगे, या फिर सरकार में बैठे नेताओं के पीछे मच्छरों को जबर्दस्ती पीछे पड़वाया जाएगा, मगर आम आदमी मच्छरों के लिए वैसे ही तरसता रहेगा जैसे आजकल अरहर की दाल के लिए तरसता है.
फिनिट-आलआउट जैसे मच्छरमारकों का धंधा भले ही बिगड़ेगा, मगर फिर नए धंधे भी तो चालू होंगे – इनिट-आलइन जैसे मच्छर बचाओ, मच्छर बढ़ाओ कैमिकल तैयार होने लगेंगे. मच्छरदानी के बजाए मच्छरआनी बनने लगेंगी जिनमें बड़े बड़े छेद युक्त झालरों में विशिष्ट मच्छरों को आकर्षित करने वाले कैमिकल लगे होंगे जो इसके भीतर सोने वालों को मच्छरों से काटने (और इस तरह से मनुष्यों को बीमारियों से इम्यूनाइजेशन करने की) की संभावना बढ़ाने में सहयोग करेंगे. इन मच्छरआनियों के भीतर विशिष्ट किस्म के मच्छरों की खेप छोड़ी जाएगी जो रात भर सोते हुए मनुष्यों को जी भर कर काटेंगे और मनुष्य प्रेम से मच्छरों से अपने को कटवाएगा. ओडोमॉस नया फ़ॉर्मूला ओडोआस लेकर आएगा जो मॉस्किटो रिपेलेंट नहीं, बल्कि मॉस्किटो एट्रैक्टर का काम करेगा.
मकान और शहर भी मॉस्किटो फ्रेंडली बनेंगे. अपने अपने घरों के आसपास सभी को डबरों और कीचड़ों के लिए विशेष, अनिवार्य व्यवस्थाएं करनी पड़ेंगी ताकि मच्छर खूब और बहुत पैदा हों, घर घर पैदा हों. सड़कों के गड्ढों को पाटने के लिए कोई आवश्यकता नहीं होगी, बल्कि गड्ढों को पाटने वालों पर उल्टे कार्यवाही होगी – बरसाती पानी न सही नलों का बहता पानी तो ऐसे गड्ढों में भर कर मच्छरों के पलनो पोसने के लिए अनुकूल माहौल तैयार करता है. नगर पालिका – नगर निगम में मच्छरों के पालने पोसने और उनकी संख्या में इजाफ़ा करने के लिए तगड़े बजट का विशेष सेल बनाया जाएगा. इस सेल की खासियत ये होगी कि इसमें भ्रष्टाचार बिलकुल नहीं होगा. क्योंकि सेल में काम करने वालों को भी तो अपने को मच्छरों से कटवाना होगा कि नहीं? और मच्छर ही नहीं होंगे तो कौन काटेगा? इसीलिए वो पूरी ईमानदारी से काम करेंगे.
और, अभी तो जेनेटिकली मॉडीफ़ाइल मच्छरों के डंक से मलेरिया जैसी बीमारियों से इंसान को इम्यून बनाने की बात की जा रही है, कल को खुदा न करे इंसान को इंसानियत से इम्यून बनाने वाले मच्छर पैदा कर लिए जाएँ तो? पर, दूसरे एंगल से लगता है कि ये इम्यूनिटी तो इंसान में खुद ब खुद पैदा हो रही है. मच्छरों को इसके लिए किसी तरह की तकलीफ देने की शायद कभी कोई आवश्यकता ही नहीं होगी.
(समाचार कतरन – साभार टाइम्स आफ इंडिया)
पुनश्च: – मच्छर चालीसा आपने अभी तक पढ़ा या नहीं?
यह इसलिये किया जा रहा है शायद हम सब मच्छर की प्रतिरोधक क्षमता अपने अन्दर विकसित करने में सक्षम हो सकें । कोई गुण सीखें न सीखें लेकिन यह तो अच्छा गुण है, सब परिस्थितियों में जी लेने का और अपनी उपस्थिति की अनुभूति दिलाने का ।
जवाब देंहटाएंमच्छरआनी!! क्या शब्द है!
जवाब देंहटाएंपढ़ कर मजा आया....
aananddaayi post !
जवाब देंहटाएंabhinandan !
Shukriya.
जवाब देंहटाएं-Zakir Ali ‘Rajnish’
{ Secretary-TSALIIM & SBAI }</a
बढ़िया पोस्ट. मजेदार है.
जवाब देंहटाएंहाय, कब होगा! मेरी कालोनी में रीयल एस्टेट के रेट तब जूम कर जायेंगे! :)
जवाब देंहटाएंkammal ka blog..aur todduu post..will be visiting more frequently!!
जवाब देंहटाएं