और, वो भी शानदार, व्हाइट-कॉलर व्यवसाय. प्रतीत होता है कि चिट्ठाकारों के दिन बहुर चुके हैं. तो क्या बहुत जल्दी ही भारत में भी रेलमपेल ...
और, वो भी शानदार, व्हाइट-कॉलर व्यवसाय. प्रतीत होता है कि चिट्ठाकारों के दिन बहुर चुके हैं. तो क्या बहुत जल्दी ही भारत में भी रेलमपेल मचेगी? वो भी हिंदी चिट्ठाकारी में?
वाल स्ट्रीट जर्नल में मार्क पेन ने लिखा है कि अमरीका में आज की तारीख में उतने ही प्रोफेशनल ब्लॉगर (ब्लॉगर जिन्होंने ब्लॉगिंग को अपनी रोजी-रोटी का प्राथमिक साधन बनाया है) हैं जितने कि वहां वकील हैं. वे आगे लिखते हैं कि कम्प्यूटर प्रोग्रामरों और अग्निशामकों से कहीं ज्यादा संख्या में अब अमरीकी अपने ब्लॉगीय विचारों को छापकर आजीविका कमा रहे हैं.
वे आंकड़े देते हुए बताते हैं कि 1% अमरीकी के पास ब्लॉगीय आय किसी न किसी रूप में पहुँच रही है. 2 करोड़ अमरीकी चिट्ठाकारों में से कोई 4 लाख 52 हजार ब्लॉगरों के प्राथमिक आय के संसाधन ब्लॉग लेखन ही है. यदि किसी चिट्ठे के महीने के 1 लाख से अधिक विशिष्ट पाठक होते हैं तो उसका चिट्ठा 75 हजार अमरीकी डॉलर सालाना आय अर्जित कर सकता है. बहुत से चिट्ठाकार किसी उत्पाद या सेवा के बारे में लिख-लिखकर 75 से 250 डॉलर तक आय प्राप्त करते हैं. वरिष्ठ व्यवसायिक चिट्ठाकारों जो कम्पनियों के लिए नियमित लिखते हैं, 45 हजार से 2 लाख अमरीकी डालर सालाना वेतन दिया जाता है. तमाम बड़े व्यवसायिक जाल स्थल पर हर विषय – तकनीकी से लेकर राजनीतिक टिप्पणियों पर व्यवसायिक चिट्ठाकारों से मानदेय आधार पर लिखवाया जा रहा है.
मार्क पेन ये भी बताते हैं कि चिट्ठाकारों में जॉब सेटिस्फेक्शन – याने अपने व्यवसाय में संतुष्टि आमतौर पर तुलनात्मक रूप से अधिक पाया गया है और वे अपने काम में खुश रहते हैं.
अब जरा ये बताइए कि भारतीय ब्लॉगरों को अमरीकी चिट्ठाकारी संबंधी इस धमाकेदार खबर से कुछ आशा, कुछ उम्मीद लगाना चाहिए कि नहीं?
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बिल्कुल बस बहुत जल्दी ही हमें उम्मीद करना चाहिये कि रिटेल मार्केट के खिलाड़ियों को ब्लॉगरों की जरुरत पड़्ने वाली है और यह सब बहुत बड़े पैमाने पर भारत में शुरु होने वाला है।
जवाब देंहटाएंइसी आस में जिये जा रहे हैं.
जवाब देंहटाएंटेन्शन न लें, इसमें भी आऊटसोर्सिंग हो रही है!! :D
जवाब देंहटाएंबिल्कुल .. उम्मीद पर ही दुनिया टिकी है।
जवाब देंहटाएंummeed ummeed ....ummeed
जवाब देंहटाएंमंदी ने उस दिन को कुछ दूर धकेल दिया है.
जवाब देंहटाएंहिन्दी पाठको की संख्या अभी उस स्तर पर पहूँची नहीं है.
Bharat me yah bahut pahle hi pahunch chuka hai.. Aaj se 3 sal pahle College me jab mere ek mitra ko ek company me job mili thi "as a blog writer" to hame bahut ashchary hua tha.. mere kai doston ne kaha ki yah S/W field chhod kar bahut badi galti kar raha hai.. magar mera tab bhi yahi manna tha ki yah bahut aage jayega.. Aaj vo apna khud ki ek chhoti si blog writing company chala raha hai, aur free launcing ke taur par commercial blogs ke liye likhta bhi hai..
जवाब देंहटाएंHindi me abhi yah bahut dur ki kaudi manata hun.. abhi hindi blog ko sabse pahle Blog Vs Sahitya ke chakkar se bahar nikalna hoga..
बहुत बढ़िया खबर! आँखों में नोट ही नोट चमकने लगे हैं अब तो! :)
जवाब देंहटाएंभारत में सिर्फ 41% लोग हिंदी बोलते हैं, और उनमें से भी सिर्फ 1-3% के पास ही अंतरजालीय सुविधा उपलब्ध है। और उस छोटी सी संख्या में से भी कितने ऐसे हैं जिन्हें पता ही नहीं है कि हिंदी में भी चिट्ठे लिखे जाते हैं! बहुत समय है, जो अंगरेजी में आज हो रहा है वह हिंदी में बीस साल बाद होगा ही!
बाक़ी उत्पादों की ही तरह...ये स्थिति भारत में देर से पहुँचेगी
जवाब देंहटाएंअच्छा है, ऐसी ही "ठण्डी हवायें" चलाते रहिये बीच-बीच में, गर्मी के दिन आसानी से कट जायेंगे… :)
जवाब देंहटाएंखुशनुमा खबर्…लेकिन ये अमित जी क्या बोले कि इसमें भी आउट्सोर्सग हो रही है…।मतलब ब्लोगर्स दूसरों से चिठ्ठे लिखवा रहे हैं?
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