2009 की हिन्दी चिट्ठाकारी के दिशा-मैदान पर देबाशीष चक्रवर्ती की पैनी नज़र

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कुछ सवाल थे - हिन्दी चिट्ठाकारी की वर्ष 2008 की उपलब्धियाँ क्या रही थीं, किन विषयों पर ज्यादा चूना पोता गया तो किन विषयों पर चिट्ठाकार कल्टी...

कुछ सवाल थे - हिन्दी चिट्ठाकारी की वर्ष 2008 की उपलब्धियाँ क्या रही थीं, किन विषयों पर ज्यादा चूना पोता गया तो किन विषयों पर चिट्ठाकार कल्टी मार गए, हिन्दी के सेलेब्रिटी ब्लॉगर कौन थे तो सेलेब्रिटी ब्लॉगपोस्ट कौन सा रहा था, कामाग्नि, वासना, मस्तराम वगैरह के अलावा आपको चिट्ठाकारी में कौन से विषय पढ़ना पसंद हैं, हिन्दी चिट्ठों की राह में कैसी क्या कुछ कठिनाइयां हैं इत्यादि इत्यादि....


इन सवालों के जवाब भले ही चिट्ठाकारों और चिट्ठा-पाठकों ने देने में भयंकर कोताही बरती हो, ऐसे भयंकर सवाल पूछने वाले देबाशीष पिछले दिनों अचानक पकड़ में आ गए, और मजबूरन उन्हें खुद इन सवालों के जवाब देने पड़े. देखिए - बेहद मनोरंजक-ज्ञानवर्धक-प्रेरक सवाल जवाब इस यू-ट्यूब वीडियो पर:

COMMENTS

BLOGGER: 17
  1. काफी अच्छा साक्षात्कार दिखाया, अच्छा रहता यदि किसी बन्द जगह पर रिकार्ड करते, कई बाहरी आवाजें आ रही थीं। हिंदी चिठ्ठाकारी की कई बातें पता लगीं।

    मनीषा

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  2. क्या बात है रवि भाई बहुत ख़ूब इन्टरव्यू ले डाला आपने देबाशीष दा का । अच्छा रहा के, हमें जवाब ढूँढना नहीं पड़े उन कठिन सवालों के । हा हा ।

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  3. मकरसंक्रान्ति की हार्दिक शुभकामनाएँ,

    मैंने तकनीकि प्रश्नोत्तरी ब्लॉग 'तकनीक दृष्टा तैयार किया है, समय हो तो अवश्य पधारें:

    ---ब्लागिंग या अंतरजाल तकनीक से सम्बंधित कोई प्रश्न है? अवश्य अवगत करायें:
    तकनीक दृष्टा/Tech Prevue

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  4. बहुत खूब बढियां इंटरव्यू रहा पर ये पूछना चाहिए था कि
    , क्या ब्लॉग हिन्दी का उत्थान कर पा रहे हैं या अगर कोई ऐसा सोचे तो वह सही है ?
    2. अगले कुछ वर्षों में हिन्दी के ब्लॉग जगत को किस स्तर पर पहुँचा हुआ देखते हैं या उनकी क्या कामना है ?
    उन्होंने कहा कि हिन्दी के ब्लॉग से अगले 5 वर्षों तक कमाया नहीं जा सकता. मैं उनकी इस बात को उचित नहीं मानता.

    देबू दा से मिलने की इच्छा थी. पता नहीं कब मिल पाऊंगा परर आपने उन्हें सुनाया. धन्यवाद.

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  5. इंटरव्यू बढ़िया लगा---ज्ञानवर्धक भी था।

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  6. बेनामी2:57 am

    खूब :)

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  7. बेनामी6:53 am

    वाह! पकड़ा गया महारथी। नल के पास बैठे कुर्सी पर पांव हिलाते हुये देबू का इंटरव्यू मजेदार रहा।

    देबाशीष ने इस सवाल का जबाब नहीं दिया कि २००८ में हिंदी ब्लागिंग की क्या कमियां रहीं। लेकिन २००८ का सबसे बड़ा अभाव यह रहा कि इस साल इंडीब्लागीस का आयोजन नहीं हुआ जिसके पीर,बाबर्ची,भिस्ती,खर देबाशीष ही हैं।

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  8. बहुत बढिया देबाशीष जी । अच्छा लगा सुनकर !रतलामी जी को धन्यवाद !

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  9. ये लो… नोबल पुरस्कार विजेता अभी 2009 के बारे में ही सोच रहे हैं… मैंने तो 2040 के हिन्दी ब्लॉग की भी भविष्यवाणी कर दी है… जरा इसे देखिये…
    http://sureshchiplunkar.blogspot.com

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  10. इस वीडियो में बहुत कुछ ऐसा है जिससे मुझे सख़्त आपत्ति है. पहली बात तो ऑफस्‍क्रीन बर्तनों की ठक-ठक की इतनी आवाज़ें हैं, कि देबाशीष से ज़्यादा ध्‍यान इसमें फंसा रहता है कि यह खाना खाये जा चुकने के बाद की आवाज़ें हैं, या खा सकने की उम्‍मीद अब भी बाकी है. दूसरे, फ्रेम में कंटिन्‍युअसली एक मरगिल्‍ला नल दिख रहा है, लेकिन नल में पानी नहीं है, क्‍या यह हिंदी ब्‍लॉगिंग पर सांकेतिक प्रहार है? अगर है तो निर्देशक महोदय इसके लिए दाद के काबिल हैं. मगर आलोचना के भी हैं, काबिल, क्‍योंकि देबाशीष हो सकता है स्‍कूल गये हों, लेकिन सभ्‍य सामाजिक संस्‍कार सीखने से रह गये और समूची बातचीत के दौरान लगातार गोड़ हिला रहे हैं, जबकि कैमरा इस हिलावट को ऑब्‍ज़र्व करने से साफ़ बच रहा है, जो इंस्‍वेस्टि‍गेटिव जर्नलिज़्म के ख़्याल से एक अक्षम्‍य सिनेमाई, या कहें, वीडियोयी अपराध है? मीमांसा का अभाव है वाली बात सही है, चंद्रभूषण, अनिल, अभय, मेरे जैसे इक्‍का-दुक्‍का लोग करते रहते हैं, जिसे इक्‍का-दुक्‍का लोग समझ भी जाते हैं यह भी सही है लेकिन ये बकिया के लोग न भी हों, मैं भी सेलेब्रेटीज़ नहीं हूं ऐसी उल्‍टी-सीधी बात देबाशीष के मुंह से सुनना मेरे लिए सचमुच सन्‍नकारी अनुभव था! क्‍या पूना में सुपाड़ी लेकर पिटाई करनेवाले लोग उपलब्‍ध हैं (यह सवाल मैं निहायत प्रायवेटली पूछ रहा हूं ऐसा ही समझा जाये.. लेकिन सुपाड़ी स्‍पॉंन्‍सर कौन करेगा की गुज़ारिश मैं पब्लिकली कर रहा हूं)..
    वेरी बैड वीडियो. नॉट अपटू माई स्‍टैंडर्ड. बट दैट्स द केस विद द होल हिंदी ब्‍लॉगिंग, इजंट इट?

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  11. अच्छा लगा देखकर। कमाई तो २००९ में ही होगी। कम से कम मैंने तो तय किया है।

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  12. बहुत खूब. मन प्रसन्न कर दिया आपने.

    वे जवाब जो हम गुप्त मतदान के रूप में दर्ज कर आए, उनको सरेआम बुलवाया गया :) वैसे पसन्दिदा चिट्ठों के नाम भी पूछ लेते, मजा आता :)

    अच्छा प्रयास. बधाई.

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  13. रवि जी
    कृपया देबु जी का साक्षात्कार शब्दों में भी प्रकशित करे। हिंदी ब्लॉग पर चर्चा शुरु करने पर हार्दिक धन्यवाद।

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  14. एक बात बताऊं, मैने जो भी हाई फ़ाई प्रोफ़ेशनल अंग्रेजी ब्लाग देखे हैं वो एक विशेष पैटर्न में लिखे जाते हैं. यानि कि नई खबर को पहले पकड़ते हैं. एक विषय विशेष को लेकर चलते हैं. और दिन में ४-६ पोस्ट ठेल देते हैं.
    प्रोफ़ेशनल हिंदी ब्लाग एक विशेष प्रकार के पाठकों को आकर्षित करने की कोशिश करते हैं और उन्ही के अनुसार लिखते हैं. उनके पेज का डिजाइन भी एकदम अलग और बढिया होता है.
    ज्यादातर हिंदी ब्लागर इस सिस्टम के हिसाब से नही लिखते हैं. देवाशीष जी जो कह रहे हैं कि अगर कोई कानून की अच्छी जानकारी रखता है तो वो अपने नालेज को ब्लाग से फ़ैलाये. ये एक
    बहुत ही सटीक विचार है प्रोफ़ेशनल ब्लागिंग के लिए क्योंकि आप जब एक विषय विशेष पर लिखेंगे तो आपका पाठक वर्ग भी निश्चित होगा और आप अच्छी तरह पोस्टों पर ध्यान लगा पायेंगे.
    जब ये बढेगा तो एड नेटवर्क भी इसपर ध्यान देंगे. उदाहरण के लिये अगर आप प्रोग्रामिंग के बारे मे लिखते हैं तो आप प्रोग्रामिंग की किताबें अपने ब्लाग से बिकवाकर कमीशन पा सकते हैं.
    ऐसा अंग्रेजी ब्लागर भी करते हैं.

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  15. रवि जी,

    देबाशीष चक्रवर्ती जी के साथ आपने अपनी बातचीत में अहम मुददे छूने की कोशिश की है, 10 मिनट की समय सीमा में काफी कुछ कह दिया गया है । मैं भी इस बात से सहमत हूं कि ब्‍लॉगिंग के नाम पर कमाई करना तो एक सपना है और मैं मानता हूं कि जिन्‍हें कमाई करनी है, वो ब्‍लॉगिंग न करें । सैलिब्रिटी इसमें शामिल हों या न हों, मैं समझता हूं कोई फर्क नहीं पड़ेगा, हां हिंदी प्रेमी या साहित्‍यकारों को अधिक महत्‍व दिया जाना चाहिए, चाहे वह किसी भी स्‍तर के हों । हिंदी ब्‍लॉगिंग को आगे बढ़ाने और दिन-दूनी रात चौगुनी गतिविधियां जिस तरह से जारी हैं, उनका स्‍वागत किया जाना चाहिए । आपको और देबाशीष जी को बहुत-बहुत बधाई कि वर्ष भर की समीक्षा अपने पाठकों तक आपने पहुंचाई ।

    जवाब देंहटाएं
  16. इस साक्षात्कार के लिए बहुत धन्यवाद। यह जानने की जिज्ञासा है कि आपने इसे किस तरह के इक्विपमेंट से तैयार किया।

    हिंदी ब्लोगों से कमाई तभी हो सकेगी जब उसमें विज्ञापनों की व्यवस्था हो सके। क्या हिंदी का कोई तकनीकी जानकार एडसेंस, एडब्राइट आदि के जैसा हिंदी के विज्ञापन वितरितने करने का कोई सोफ्टवेयर या कंपनी शुरू करने पर विचार करेगा? चिट्ठाजगत, ब्लोगवानी जैसे चिट्ठा एग्रिगेटर तैयार हो चुके हैं। अब विज्ञापन वितरक (औंर संग्राहक, जैसे एडवर्ड) सोफ्टर हिंदी में तैयार होना चाहिए।

    क्या यह मुश्किल काम है, पैसे बहुत लगेंगे, तकनीकी दृष्टि से चुनौतीपूर्ण होगा, इन विषयों पर रवि जी, अपने ब्लोग में चर्चा करें, ताकि आपका कोई पाठक इस ओर विचार करने लगे।

    मैं समझता हूं संजय बेंगाणी जैसे तकनीकी दृष्टि से कुशल और व्यवयास का तजुर्बा रखनेवाले हिंदी प्रेमी इस काम को बखूबी कर सकते हैं और इससे पैसे भी कमा सकते हैं।

    जवाब देंहटाएं
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