पिछली पोस्ट कमरे कमरे पर... बहुत से पाठकों ने उत्कंठा जताई थी कि आखिर वे क्या वजहें रहीं थीं जिसके कारण एक रतलामी को भोपाली बनने को मजबू...
पिछली पोस्ट कमरे कमरे पर... बहुत से पाठकों ने उत्कंठा जताई थी कि आखिर वे क्या वजहें रहीं थीं जिसके कारण एक रतलामी को भोपाली बनने को मजबूर होना पड़ा.
दरअसल, मामला जहाँ गुड़ वहां मक्खी का है. रेखा (पत्नी) का तबादला जब भोपाल हो गया तो उसके साथ मुझे भोपाल आना ही था. मैं ठहरा इंटरनेट-जीवी. किसी इंटरनेट जीवी को एक अच्छी गति का इंटरनेट कनेक्शन युक्त एक कम्प्यूटर दे दीजिए, और फिर उसे कहीं भी बिठा दीजिए – उसे नर्क और स्वर्ग में फ़र्क़ ही नजर नहीं आएगा. जिसके लिए तमाम दुनिया एक क्लिक पर हाजिर हो उसके लिए तो बस्तर और न्यूयॉर्क दोनों ही बरोबर! सो इसी उम्मीद में मैंने भी अपना बोरिया बिस्तरा भोपाल के लिए बाँध लिया.
पर, शायद नहीं. रतलाम, रतलाम होता है और भोपाल, भोपाल. भोपाल आते ही सबसे पहले यहां के भारी भरकम, तीव्र गति के ट्रैफ़िक, भीड़ भरी तंग गलियों ने स्वागत किया. रतलाम शहर की गड्ढे युक्त सड़कें आपकी रफ़्तार को 20 किमी से अधिक बढ़ने नहीं देतीं और ये अहसास दिलाती फिरती हैं कि जीवन के लिए कतई कहीं कोई जल्दी नहीं. यहाँ भोपाल में उल्टा है. चिकनी चौड़ी सड़कों पर थोड़े धीरे चले कि पीछे से किसी ने ठोंका. साथ ही आजू-बाजू दो-पहिया वाहनों से अटी पड़ी पुराने भोपाल की तंग गलियों में आमने सामने से चौपहिया वाहनों को निकलते हुए देखना किसी भी व्यक्ति के लिए ‘संसार का पहला आश्चर्य’ देखने के समान है.
नहीं, शायद ये दूसरा आश्चर्य होगा. मेरे लिए पहला आश्चर्य था भोपाल की निर्बाध बिजली. जब मैं रतलाम से चला था तो साथ में अच्छी तरह से सहेज कर साथ में अपना बैटरी-इनवर्टर भी लाया था. रतलाम शहर की नित्य की आठ घंटे से अधिक की नियमित-अनियमित विद्युत कटौती के बीच इनवर्टर ही मेरा एकमात्र सहारा था. परंतु मुझे क्या पता था, कि इनवर्टर जैसी चीजें भोपालियों के लिए अजूबा होंगी. यहाँ तो बिजली गुल ही नहीं होती. भई, आखिर प्रदेश की राजधानी जो है. अंदर की बात अब पता चली कि ‘रतलामियों’ के हक की बिजली काट काट कर राजधानी के राजा किस्म के ‘भोपालियों’ को दी जा रही है. जेट लेग की तरह मुझे निर्बाध बिजली के साथ सेट होने में कुछ समय लगेगा.
रतलाम में इनवर्टर मेरे जीवन का सेंट्रल पाइंट था. जब बिजली सप्लाई की कटौती होती थी, तो इनवर्टर की बिजली का ही सहारा होता था. तमाम जतन किए थे मैंने इनवर्टर की बिजली को अधिकतम, मितव्ययिता से उपयोग करने के. जब बिजली ज्यादा देर गुल हो जाती थी – और ऐसा अकसर, आए दिन होता था तो इनवर्टर की ‘लो बैटरी’ की प्यारी सी सीटी की गूंज – कि भई अपना काम समेट लो, सहेज लो नहीं तो डाटा लॉस से भुगतना होगा – यहाँ भोपाल में सिरे से नदारद है. जब से यहाँ आया हूँ, उसकी आवाज सपने में भी सुनाई नहीं देती. आखिर मैंने ये क्या गुनाह कर डाला है? वो इनवर्टर, जिसके बगैर रतलाम में जीना मुश्किल था, यहाँ डब्बे में वैसा का वैसा ही बंद है. उस बेचारे इनवर्टर का भी क्या गुनाह है? उस इनवर्टर का क्या करूं ये भी समझ में नहीं आ रहा है. उसने मेरा लंबे अरसे तक साथ दिया है, तो उसे मैं कबाड़ में (भोपाल में इनवर्टर जैसा कॉसेप्ट ही नहीं है तो सेकंड हैंड भी कौन खरीदेगा?) बेच भी नहीं सकता. जब भी उस पर नजर पड़ती है तो एक उच्छवास सा उठता है और दिमाग में बात आती है – महलों के दिन भी फिरते हैं...
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tag : bhopal, battery, inverter, electricity, power cut, load shedding,
इन्वर्टर से मुक्ति मुबारक हो। यहां तो मैने एक अतिरिक्त इन्वर्टर लगवाया है और अब पूरे घर के लिये वोल्टेज स्टेबलाइजर में भी पैसा फूंक रहा हूं!
जवाब देंहटाएंअन्तत: शायद एक जेनरेटर भी लेना पड़े!
तो भोपाल के मजे लें.
जवाब देंहटाएंअच्छा हे रवि भाई कि बेशक इन्वरटर कबाड़ में जायेगा और आपको बिजली की भी आदम पड़ जायेगी. मेरे लिए आपका भोपाल आना भी अच्च्छा कि मैं अक्तूबर और दिसम्बर में भोपाल आऊंगा. मुलाकात की गांरटी हो गयी.
जवाब देंहटाएंसूरज
मित्रवर !
जवाब देंहटाएंआपका शीर्षक ही बहुत कुछ कह गया.
आपके लिए कोई भी जगह माकूल हो सकती है.
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शुभकामनाएँ
डॉ.चन्द्रकुमार जैन
आनंद लीजिये निरंतर बिजली का :-)
जवाब देंहटाएंमैं तो यही कामना करूंगा कि अब आपके इनवर्टर के दिन कभी न फिरें :)
जवाब देंहटाएंरवि जी आप बहुत ही भाग्यशाली हैं जी जब चाहें शहर बदल सकते हैं हम तो यहां एक खूंटे से बधें हैं। रतलाम जैसा ही कुछ हाल हमारी नवी मुम्बई का भी है, हमारे हिस्से की बिजली मेन मुम्बई को दे दी जाती है। हालांकि अभी इंवर्टर खरीदने की नौबत नहीं आयी है पर लग रहा है आप के भोपाल वर्णन से लग रहा है कि भोपाल काफ़ी अच्छा शहर है। मुबारक हो ऐसे शहर में पहुंचने के लिए
जवाब देंहटाएंअमां खां, राजधानी के मजे ले रये हो।
जवाब देंहटाएंसई है सई है।
तालों में ताल भोपाल ताल बाकी सब तलैंया
जवाब देंहटाएंबिजली में बिजली भोपाल की बिजली बाकी सब बिलैंया ।
मुबारक हो जी
अबाध बिजली और निर्बाध ट्रैफिक ।
वैसे भोपाल गलियों और गालियों का शहर है ।
शौक और शॉक का शहर है ।
पतंग और तमंचे का शहर है ।
मुबारक हो जी ।
फिर से मुबारक हो ।
राजधानी मुबारक हो. सच में घूरे के भी दिन फिरते हैं. :)
जवाब देंहटाएंbadhayee ho,aapka naya chiththak hoon.mana ratlam kam naheen hai.khas kar sham ko chikhane me ratlamee shev kha lo to jindagee bhar bhale na sahee aglee subah tak to yaad rahata hee hai.khair ratlam maine sirf train me baithe baithe hee kafee pahale dekha tha,jana pahale shev se fir aapke nam se.bhopal kafee ghoom chuka hoon kishton me.jana to shoorama bhopalee se bhee pahale shakeela banoo bhopalee aur unkee kawwalee se.Baharhal bahar se aa ke aap ratlamee ban gaye(aur nam bhee roshan kiya)lekin khan bhopalee ban ne kee jurrat na kariyega.Nehrooji tak kee himmat naheen padee.yakeen na ho to bhopal me unkaa stachoo dekh aao.rahee bat bijalee paanee kee to jaldee hee shaharee bhee ho jaoge.jaise main new york aake international ho gaya hoon(samajhata hoon).inverter sambhal ke rakhana.Mai bhee jab apne gaon jata hoon to notebook ke liye kayee extra baitariyan inverter vagairah to theek generator jarooree ho jata hai.bijalee jane ka time table naheeh par aane ke time ka aap chahen to satta khel sakate hain.gaon ka naam pata thikana naheen bataunga vapas bhee jana hota hai.khair mian thoda jyada naseehat de gaya.buddhon kee aadat hee hotee hai...........Mauj karo.sahee jagah pahunch gaye ho.
जवाब देंहटाएंरवि भाई, भोपाली बनने की ढेर सारी बधाई।
जवाब देंहटाएंअगली बार भोपाल आउंगा तो लंच आपके यहाँ तय है।
अपना पता जरुर भेज देना प्रभु।
रवि जी, काफी दिन बाद पूरी तरह से हिन्दीजगत में वापस आया हूँ. आपके चिट्ठे को, वह भी एक व्यक्तिगत लेख को, पढ कर अच्छा लगा.
जवाब देंहटाएंअब सवाल है कि रतलामी कहें या भोपाली !!
सस्नेह!!
-- शास्त्री जे सी फिलिप
-- हिन्दी चिट्ठाकारी के विकास के लिये जरूरी है कि हम सब अपनी टिप्पणियों से एक दूसरे को प्रोत्साहित करें
Ratlami Jee, the inverter thing came up. I was looking for a solar charged inverter. Is that kind of thing available in India yet?
जवाब देंहटाएंराग जी,
जवाब देंहटाएंजी हाँ, आप सोलर पावर लगवा सकते हैं. ये कोई 750 वाट का उपलब्ध है और सरकारी सबसिडी (अलग-2 राज्यों में अलग हो सकती है, इसके लिए अक्षय ऊर्जा विभाग से संपर्क करें) को मिलाकर करीब 90 हजार रुपए में आपके घर पर फिट हो सकती है. इसमें सोलर पैनल, बैटरी व इनवर्टर तथा घर की वायरिंग की फिटिंग इत्यादि सभी शामिल है. मैंने सोचा था, परंतु इसकी आरंभिक लागत ने मुझे वैकल्पिक साधनों की ओर जाने को मजबूर किया.