बढ़ती खुशियाँ घटती खुशियाँ

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अच्छा, क्या आप ये बता सकते हैं कि आप कल ज्यादा खुश थे कि आज? अच्छा, अच्छा - परसों आप कितना खुश थे? आने वाले कल या फिर आने वाले परसों के घ...

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अच्छा, क्या आप ये बता सकते हैं कि आप कल ज्यादा खुश थे कि आज? अच्छा, अच्छा - परसों आप कितना खुश थे? आने वाले कल या फिर आने वाले परसों के घटत-बढ़त के बारे में क्या खयाल है आपका – बता सकते हैं कि आप कितना खुश रह पाएंगे?

यदि एक सर्वे के नतीजों की मानें तो यकीनन आप कल की अपेक्षा आज ज्यादा खुश हैं और कल को और ज्यादा खुश होंगे. आज से दस साल पहले आप जितना खुश थे उससे कहीं ज्यादा खुश आप आज हैं. इस हिसाब से, दस साल पहले की आपकी खुशी, आपके बीस साल पहले की खुशी से ज्यादा रही थी क्योंकि इस दरमियान दुनिया दिन पर दिन ज्यादा खुश होती जा रही थी, होती जा रही है. और, जाहिर है, दुनिया के साथ दुनिया के लोग दिनोंदिन ज्यादा खुश होते जा रहे हैं.

अब पड़ताल ये करनी होगी कि हमारी खुशी बढ़ाने के पीछे के फ़ैक्टर आखिर क्या हैं. शोधकर्ताओं को छोड़ दें – हो सकता है, उनके अपने मापदंड होंगे खुशियों को मापने के. मगर कई मामलों में मैं वास्तव में बहुत खुश हूं. पहले की अपेक्षा बहुत सी खुशियाँ हैं मेरे पास. कुछ उदाहरण देना चाहूंगा -

लोग महंगाई का नाहक रोना रो रहे हैं. दरअसल इसके ‘खुशी’ फ़ैक्टर की ओर किसी का ध्यान ही नहीं गया है. बीते कल को मैं जिस चीज को चार आने में खरीदता था, आज उसे चार रुपए में खरीदता हूँ. मेरी खरीदने की औकात भले ही न बढ़ी हो, मगर मैं खुश हूं कि मैं महंगी चीजें खरीदने के महंगे सपने तो देख सकता हूं. पहले सपने भी आते थे तो वही चार आने के! अब जब मेरे सपने भी रईस हो गए हैं तो मैं क्योंकर न खुश होऊं भला. टमाटर और गोभी के भाव पचास रुपए किलो बिकते हैं तो मैं खुश होता हूं कि चलो व्यापारियों और किसानों को अब उनके उत्पादन का सही मूल्य तो मिलने लगा है. अब मैं बाजार जाता हूं, तो पचास रुपए किलो की गोभी लेकर, भले ही महीने में एकाध बार और सौ-दो सौ ग्राम खरीदता होऊं, पर मेरे मन में गर्व की, खुशी की अनुभूति होती है - मैं भी गोभी पचास रुपए किलो की खरीदकर खा सकता हूँ. रुपए में किलो भर गोभी नित्य खरीदकर सुबह-शाम खाने में यह खुशी कहीं मिल सकती है भला? दस रुपए किलो की गोभी भी कोई गोभी है लल्लू? साला उसमें तो स्वाद भी नहीं आता. आ ही नहीं सकता. और जब यह कल को सौ रुपए या डेढ़ सौ रुपए किलो बिकेगा, तब इसके क्या कहने. फिर मैं जब कोई साल दो साल में यदा कदा लाकर खा लिया करूंगा तब मैं आज की अपेक्षा कहीं ज्यादा खुश होऊँगा. पचास रुपए की खुशी और सौ रुपए की खुशी में ज्यादा खुशी कौन सी है ये बात तो खैर, उल्लू और गधे भी बता देंगे.

संचार साधनों की ही ले लें. पहले कितना कष्ट होता था. पत्र-पोस्टकार्ड-अंतर्देशीय-लिफ़ाफ़ा न जाने क्या क्या जतन करते थे अपना खोज खबर अपने दोस्तों परिजनों को बताने के. और कभी तो तमाम झंझटों को पार करते हुए खुद अपनी तशरीफ लेकर पधारना पड़ता था. अब तो दन्न से मोबाइल घुमाया मिस काल दिया और हो गया. थोड़े से ज्यादा खुश लोगों के लिए याहू-एमएसएन ऑडियो-वीडियो चैट है. अब तो आपको सालगिरह तो क्या, तेरहीं-बरसी पर भी कहीं जाने की जरुरत नहीं, किसी से प्रत्यक्ष मिलने की झंझट नहीं. फोन से, चैट से, ईमेल से शुभकामनाएं-संवेदना - चाहे जिस तरह के संदेश हों, चाहे जिस मात्रा में हों, प्रकट कर सकते हैं और भले ही सामने वाला आभार तले मर खप जाए. खुशियाँ देने वाले इन औजारों का मैं भी भारी भरकम प्रयोग बेहद खुशी से करता हूं, और जाहिर है जब इन औजारों में नई नई ख़ूबियाँ नित्य आती हैं तो मैं और ज्यादा-ज्यादा खुश हो लेता हूं.

अब, वैसे तो मैं आपको ऐसे दर्जनों और वजहें गिना सकता हूँ पहले की तुलना में ज्यादा और ज्यादा खुश रहने के. पर इससे आपका क्या सरोकार? इस दौरान आप भी कोई कम खुश थोड़े ही न हुए होंगे. सारा जग जो खुश, ज्यादा खुश हुआ जाता है. तो फिर निर्लज्जता से खीसें क्यों निपोर रहे हैं? कुछ अपनी भी तो गिनाएं.

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व्यंज़ल

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औरों को दुःखी देख मैं खुश हो गया

बदलाव की बातें करके खुश हो गया


वहां और भी थे बहुत से सबब मगर

धर्म की बात सुन कर खुश हो गया


हादसों के प्रभाव शायद बदलने लगे

तभी मेरा एक हिस्सा खुश हो गया


गया तो था मैं एक सजदे में मगर

विनाश की बातें कर खुश हो गया


ये फ़क़त वक्त वक्त की बात है रवि

रोने की बात पे आज खुश हो गया


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(समाचार कतरन साभार टाइम्स ऑफ़ इंडिया)

COMMENTS

BLOGGER: 8
  1. हम् खुश् हो गये। भगवान आपकी खुशियों इजाफ़ा करे।

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  2. ये फ़क़त वक्त वक्त की बात है रवि
    रोने की बात पे आज खुश हो गया


    --गज़ब. रवि भाई. आप दिल लूट लेते हो. हमेशा टिपियाता नहीं क्यूँकि आप समझते हो. इसलिये लिबर्टि ले लेता हूँ मगर पढ़ता जरुर हूँ. विजिटर एकाउन्ट चेक कर लें चाहें तो. :)

    जवाब देंहटाएं
  3. बेनामी11:31 am

    काफी अच्छा लिखते है आप रवि जी. वैसे आज पहली बार मैंने आपका ब्लॉग पढ़ा है|
    पढ़कर अच्छा लगा. मै आशा करूँगा की आप ऐसे ही अच्छा लिखते रहेंगे|

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  4. आप खुश तो हम भी खुश. देखा ऐसे खुशियाँ बढ़ रही है :)

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  5. हमने तो संतोष धन पाल रखा है :-)

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  6. khushi to jamare aaspaas hi hai ...ab ye ham par nirbhar karta hai ki ham kis cheez mein khushi dhoondhte hain.

    जवाब देंहटाएं
  7. रविजी नमस्कार,
    आपके व्यंग्य ने सचमुच खुशी दी और इसमें दी गईं मिसालें भी रोचक हैं--
    1.महंगाई के दौर में महंगे सपने देखने की आज़ादी
    2.तकनीकी रुप से समृद्ध होने की खुशी
    3.समय की बचत से खुशी

    आपका
    केतन

    जवाब देंहटाएं
  8. दूसरों को दुखी देख खुश होने की बात पर से याद आया ==क्या फ़िर कहीं कोई वस्ती उजड़ी -लोग क्यों जश्न मानाने आए -तेरी बातें ही सुनाने आए -लोग भी दिल को दुखाने आए ==रोने की बात पर खुश होने पर याद आया ==बात रोने की लगे फ़िर भी हंसा जाता है -यूँ भी हालात से समझोता किया जाता है -Brij Mohan Shrivastava

    जवाब देंहटाएं
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