पुस्तक समीक्षा हिन्दी कंप्यूटरी सूचना प्रौद्योगिकी के लोकतांत्रिक सरोकार हिन्दी कम्प्यूटरी के भूत-वर्तमान-भविष्य की रोचक, उत्तेजक, मनोरं...
पुस्तक समीक्षा
हिन्दी कंप्यूटरी
सूचना प्रौद्योगिकी के लोकतांत्रिक सरोकार
हिन्दी कम्प्यूटरी के भूत-वर्तमान-भविष्य की रोचक, उत्तेजक, मनोरंजक, अत्यंत ज्ञानवर्धक, और साथ ही, जाहिर है विडंबना-गाथाओं से भरपूर, कहानी हिन्दी अधिकारी वेद प्रकाश ने अपनी किताब - हिन्दी कंप्यूटरी - सूचना प्रौद्योगिकी के लोकतांत्रिक सरोकार में लिखी है.
(वेद प्रकाश)
प्रारंभ में ही अपनी बात कहते हुए वेद प्रकाश बताते हैं –
“.....हमारे कार्यालय में सभी सरकारी कार्यालयों की तरह अंग्रेज़ी का माहौल था. हिंदी के नाम पर प्रतियोगिताएँ, पुरस्कार योजनाएँ, हिंदी बैठकें भी चलती रहती थीं. इनके साथ ही अंदर ही अंदर हिंदी में काम की मात्रा धीरे-धीरे ही सही बढ़ती जा रही थी. इसी बीच कार्यालय में कंप्यूटर का प्रवेश हुआ. शुरू में यह काफी सीमित था. कंप्यूटर पर टाइप मात्र करने वाले लोग किसी टैक्नोक्रेट के समान श्रद्धा से देखे जाते थे. हिंदी विभाग के लोग तो सहम कर उधर ताकते तक न थे. ...”
अपनी बात को वे कुछ इस तरह आगे बढ़ाते हैं –
“...हिंदी अधिकारी होने के नाते मन में कम्प्यूटरों में हिन्दी इस्तेमाल नहीं कर पाने की बातें कहीं कसकती भी थीं. इसी कशमकश में दिन बीत रहे थे कि हमारे मुख्यालय ने हिंदी सॉफ्टवेयर की सीडी भेज दी. यह सीडी भारत सरकार के संस्थान सी-डेक के हिंदी सॉफ्टवेयर एएलपी (एपेक्स लैंग्वेज़ प्रोसेसर) की थी. यह एक डॉस-आधारित स्वतंत्र बहुभाषी हिंदी शब्द संसाधक था. लगभग उतना ही शक्तिशाली और सुविधा संपन्न जितना कि उस समय वर्ड स्टार नामक अंग्रेज़ी सॉफ्टवेयर था. उनके इस कदम ने मेरे जीवन की दिशा ही बदल दी. सबसे ज्यादा हम ही खिले हुए थे. मैं सोच रहा था कि अब हिंदी के विकास और प्रसार को कौन रोक सकता है.
लेकिन जल्द ही मुझे पता चल गया कि कंपनी का काम जिन सॉफ्टवेयरों में होता है, यह उनसे काफी अलग और काफी सीमित है. मेरे उत्साह पर तुषारापात हो गया. पर कोई बात नहीं. कंप्यूटर की पवित्र-पावन दुनिया में हिंदी का प्रवेश तो हुआ.
लेकिन ठहरिए, इसके साथ एक और समस्या आई. जो एएलपी सॉफ्टवेयर हमें भेजा गया था उसमें केवल इंस्क्रिप्ट कुंजीपटल था. चूँकि वह मैनुअल टाइपराइटर के कुंजीपटल से बुनियादी रूप से भिन्न था इसलिए हमारी टाइपटिस्ट ने उस पर टाइप करने से मना कर दिया. इस चक्कर से निकलने के लिए हमने सोचा कि एक कुंजीपटल खरीद लेते हैं जो रेमिंग्टन के हिंदी कुंजीपटल जैसा हो. ताकि हमारी टाइपिस्ट को उस पर काम करने में कठिनाई न हो.
कुंजीपटल विक्रेता ने हमारा ज्ञान वर्धन किया कि यह मामला कुंजीपटल का नहीं, सॉफ्टवेयर का है, इसलिए बेहतर हो कि हम उसका कंपनी का सॉफ्टवेयर खरीद लें जिसमें इंस्क्रिप्ट कुंजीपटल के साथ-साथ रेमिंग्टन कुंजीपटल और एग्ज़ीक्यूटिव कुंजीपटल भी दिया गया है.....”
पुस्तक को निम्न 9 अध्यायों में बंटा है. वैसे तो अध्यायों के शीर्षकों से ये भ्रम हो सकता है कि मामला पेचीदा और तकनीकी होगा, मगर तकनीकी बातों को बड़े ही रोचक और सरल भाषा में भली प्रकार से उदाहरणों से समझाया गया है, जिससे आम, गैर-तकनीकी पाठक को भी हिन्दी कम्प्यूटरी की कहानी पढ़ने में आनंद मिलता है और पठनीयता आद्योपांत बनी रहती है.
1 सूचना प्रौद्योगिकी और हिंदी समाज
2 हिंदी समाज के लिए सूचना प्रौद्योगिकी क्यों आवश्यक है?
3 हिंदी का मानक कोड क्यों?
4 यूनिकोड- समस्याएँ अनेक समाधान एक
5 ये हिंदी फोंट क्या हैं?
6 विंडोज़ 2000 और विंडोज़ एक्सपी में हिंदी या दूसरी भारतीय भाषाओं को सक्रिय कैसे करें?
7 हिंदी में टाइप कैसे करें?
8 परिवर्धित देवनागरी बनाम इंस्क्रिप्ट कुंजीपटल- राष्ट्रीय एकता की और बढ़ता कदम.
9 हिंदी सॉफ्टवेयर उपकरण – देर आयद दुरस्त आयद
लेखक पुराने हिन्दी फ़ोंटों की पेचीदगियों के बारे में मनोरंजक तरीके से कुछ यूँ खुलासा करते हैं -
“...इस बात को ज़रा ठंडे दिमाग से समझिए। यानी कि, मान लीजिए, 184 के स्थान पर, जिसे इस्की कोड में ‘क’ के लिए नियत किया हुआ है, यदि एक सॉफ्टवेयर निर्माता ने ‘ग’ रख दे और दूसरा सॉफ्टवेयर निर्माता ने इसी स्थान पर ‘च’ रख दे तो क्या होगा। पहले निर्माता के सॉफ्टवेयर में तैयार दस्तावेज़ में जहाँ-जहाँ ‘ग’ टाइप किया हुआ है, दूसरे सॉफ्टवेयर में खोलने पर वहीं-वहीं ‘च’ दिखाई पड़ेगा। और मानक इस्की कोड का इस्तेमाल करने वाले सॉफ्टवेयर में वहाँ ‘क’ दिखाई देगा; यानी बेतरतीब, अर्थहीन, अक्षरों का समूह स्क्रीन पर दृष्टिगोचर होगा। और मित्रो, यही हुआ भी है। आज हिंदी में कंप्यूटर पर आने वाली महत्वपूर्ण कठिनाइयों का यही कारण है। इंटरनेट, ई-मेल, ई-वाणिज्य और ई-शासन के बढ़ते घोड़े की लगाम हिंदी सॉफ्टवेयर निर्माताओं ने इसी तरह थामी है। इनके कोड व्यवस्था में नित नए प्रयोगों ने भारतीय भाषाओं के उपयोक्ताओं को बेहद परेशान किया है।
मानकीकरण न किए जाने और उसे न अपनाने के पीछे हिंदी सॉफ्टवेयर निर्माताओं की थोड़ी स्वार्थलिप्सा भी थी। अलग फोंट कोड के कारण यदि कोई संगठन या कंपनी एक बार उनके सॉफ्टवेयर को खरीद ले तो हमेशा उनके ही सॉफ्टवेयर खरीदने को मजबूर था, नहीं तो वह संगठन या कंपनी अपने विभिन्न कंप्यूटरों में तैयार हिंदी दस्तावेज़ों का आदान-प्रदान नहीं कर पाएगी। यही नहीं, न केवल उन्होंने अपने कोड दूसरे फोंट निर्माताओं से अलग रखे बल्कि अपने ही विभिन्न उत्पादों के लिए भी विभिन्न कोड बनाए ताकि उनके एक उत्पाद का ग्राहक दूसरे उत्पाद के फोंट इस्तेमाल न कर पाए।
इनकी इस स्वार्थलिप्सा के शिकार हुए सरकारी कार्यालय जिनमें राजभाषा नीति के चलते हिंदी का प्रयोग करना था तो दूसरी तरफ डेस्क टॉप पब्लिशर, जिन्हें भारतीय भाषाओं के मुद्रण को गला-काट प्रतियोगिता भरी दुनिया में टिके रहना था, नित नए फोंटों को अपनाते हुए।
इस अन्यायपूर्ण लूट में कोई फोंट निर्माता पीछे नहीं था।
इस मामले में भारत सरकार भी अपनी जिम्मेवारी से नहीं बच सकती। दूसरे देशों की सरकारों की तरह भारत सरकार का यह कर्तव्य था कि वह इस फोंट कोड के मानकीकरण में केंद्रीय भूमिका निभाती और इस दिशा में हो रहे निजी प्रयासों की कड़ी निगरानी करती, जैसाकि दूसरे देशों की सरकारों ने किया, तो फोंट कोड के कारण उत्पन्न समस्या पैदा ही नहीं होती.
शायद यह स्थिति अनंत काल तक चलती रहती यदि इंटरनेट के प्रसार ने सूचनाओं का आदान-प्रदान करने और आपस में वितरित करने के लिए मजबूर न किया होता, जिसके कारण एक नया फोंट मानक उभर कर आया—यूनिकोड।
लेकिन इन सुविधाओं का द्वार आपके लिए तभी खुलता है जब आप यूनिकोड अपनाते हैं। नहीं तो हिंदी कंप्यूटरी की दुनिया की अराजकता जस की तस विराजमान है।
हिंदी सॉफ्टवेयर निर्माता अब अपने सॉफ्टवेयरों में अपने फोंटों से यूनिकोड में कनवर्ज़न की सुविधा, और अन्य सॉफ्टवेयरों से कन्वर्ज़न की सुविधा का बड़े ज़ोर शोर से उल्लेख करते हैं। इन्होंने पहले तो अपने सॉफ्टवेयरों में किसी मानक का अनुपालन न करके हिंदी कंप्यूटरी के विकास में रुकावटें पहुँचाईं और अब खुद को मसीहा के तौर पर पेश कर रहे हैं। और इसके लिए एक बार फिर इन समस्याओं से अनजान हिंदी विभागों से मोटी कमाई कर रहे हैं। ...”
पुस्तक में हिन्दी कम्प्यूटरी संबंधी जानकारियों का खजाना भरा हुआ है. ये बात मुझे स्वीकारने में कोई शर्म नहीं है कि बहुत सी नई चीजें मैंने भी इस पुस्तक के जरिए जानीं. पुस्तक से ही उद्भृत एक उदाहरण :
अब एक बानगी विशेष कार्यों के लिए बने सॉफ्टवेयरों में हिंदी की सुविधा व समर्थन की। नीचे हम उन उन्नत कंप्यूटरी के उत्पादों एक सूची दे रहे हैं जो अपने खास कामों के लिए पूरी दुनिया में छाए हैं और साथ ही यूनिकोड के रास्ते हिंदी को अपना पूर्ण समर्थन प्रदान करते हैं:--
ऑपरेटिंग सिस्टम- कंप्यूटर पर कोई भी कार्य करने से पहले उस पर ऑपरेटिंग सिस्टम होना बहुत ज़रूरी होता है। ऑपरेटिंग सिस्टम हमारी भाषा और कंप्यूटर की भाषा के बीच पुल का काम करते हैं। यदि हमारा ऑपरेटिंग सिस्टम यूनिकोड समर्थक हो और हमने उसमें हिंदी को सक्रिय किया हुआ हो तो उस पर चल रहे किसी भी सॉफ्टवेयर के यूनिकोड समर्थक होते ही उसमें हिंदी समर्थन स्वतः ही आ जाता है। इसके लिए हमें किसी थर्ड पार्टी फोंटों की आवश्यकता नहीं होती। नीचे कुछ यूनिकोडसेवी ऑपरेटिंग सिस्टम दिए गए हैं---
· माइक्रोसॉफ्ट के विंडोज़ सीई, विंडोज़ 2000, विंडोज़ एनटी और विंडोज़ एक्सपी
· लिनक्स-जीएनयू ग्लिबसी 2.2.2 और नवीनतम के साथ /केडीई भी हिंदी में
· एससीओ यूनिक्सवेअर 7.1.0
· सन सोलेरिस
· एपल के मैक ओएस 9.2, मैक ओएस 10.1, मैक ओएस एक्स सर्वर, एटीएसयूआई
· बेल लैब्स प्लान 9
· कॉम्पैक्स ट्रू64 यूनिक्स, ओपन वीएमएस
· आईबीएम एआईएक्स, एएस/400, ओएस/2
· वीटा न्यूओवा का इन्फर्नो
· नया जावा प्लेटफार्म
· सिम्बिअन प्लेटफार्म
हिन्दी कंप्यूटिंग में रूचि रखने वालों के लिए यह पुस्तक निसंदेह उपयोगी और ज्ञानवर्धक होगी.
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हिन्दी कंप्यूटरी
सूचना प्रौद्योगिकी के लोकतांत्रिक सरोकार
लेखक:
वेद प्रकाश
273, पाकेट-डी,
मयूर विहार, फेज़ 2,
दिल्ली-110091
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प्रकाशक:
लोकमित्र
1/6588, सी-1, रोहतास नगर (पूर्व)
शाहदरा, दिल्ली-110032
दूरवाक् : 22328142
सर्वाधिकार@ वेद प्रकाश
प्रथम संस्करण 2007 ईस्वी
मूल्य : एक सौ पचहत्तर रुपये
वेद प्रकाश जी की यह किताब वाकई बहुत उपयोगी है। इसके बारे में बताने के लिए शुक्रिया।
जवाब देंहटाएंSHUKRIYA AAPKA ITNI ACHI JANKARI LEKH LIKHA.
जवाब देंहटाएंSHUAIB
http://shuaib.in/chittha
पुस्तक काम की जान पड़ती है, मंगाते हैं!
जवाब देंहटाएंजानकारी उपलब्ध कराने का शुक्रिया
ऑन लाइन खरीदी जा सकती है?
जवाब देंहटाएंसंजय जी,
जवाब देंहटाएंऑनलाइन खरीदने की कोई कड़ी तो नहीं है, अलबत्ता आप प्रकाशक को फोन कर सकते हैं अधिक जानकारी के लिए. किताब 2007 की है अतः मिलने के पूरे चांस हैं.
वाकई एक बढ़िया जानकारी दी आपने।
जवाब देंहटाएंशुक्रिया।
इस किताब की जानकारी देने के लिए अत्यंत आभारी हैं, धन्यवाद
जवाब देंहटाएंइस किताब की जानकारी देने के लिए अत्यंत आभारी हैं, धन्यवाद
जवाब देंहटाएंयह एक बेहतरीन किताब की सशक्त समीक्षा है। यह किताब सभी हिन्दी प्रेमियों और कंप्यूटर प्रेमियों को अवश्य पढ़नी चाहिए।
जवाब देंहटाएं-भूपेन्द्र कुमार
Wow! This book is what the doctor ordered.
जवाब देंहटाएंRavi Ji, u & Hariram ji know very well about my deep interest in history of Hindi/Indic computing.
Thanks for this info, I'm dying for it.