आइए, हिन्दी में कुछ जांच पड़ताल करें...

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यदि हमारा ईमेल पता कुछ ऐसा हो – रवि@रतलामी.कॉम , या फिर हमारे ब्लॉग का पता कुछ यूँ हो – एचटीटीपी: // चकल्लस. ब्लॉगस्पॉट.कॉम तो कितना सुं...

icann top level hindi domain name testing

यदि हमारा ईमेल पता कुछ ऐसा हो – रवि@रतलामी.कॉम , या फिर हमारे ब्लॉग का पता कुछ यूँ हो – एचटीटीपी://चकल्लस.ब्लॉगस्पॉट.कॉम तो कितना सुंदर हो!

पर, अब धीरे धीरे ये संभव होने लगेगा. इस क्षेत्र में एक कदम आगे बढ़ाया जा चुका है और हिन्दी नामधारी जाल-पतों के परीक्षण किए जा रहे हैं.

आपसे आग्रह है कि आप भी इनका परीक्षण करें. व अपने अनुभव बांटें.

परीक्षण क्यों आवश्यक हैं?

हम सभी विभिन्न प्लेटफ़ॉर्मों में सैकड़ों तरह के अनुप्रयोग इस्तेमाल करते हैं. ये सभी अनुप्रयोग अब तक के मानक, अंग्रेजी जाल पतों व ईमेल पतों को ही समझ पाते हैं. और इनमें से बहुत से तो यूनिकोड कम्पायलेंट भी नहीं हैं. और इनमें हिन्दी नामधारी जालपतों का इस्तेमाल करने पर आप सभी के अनुभव अलग-अलग हो सकते हैं.

इन अनुभवों के आधार पर हिन्दी जालपतों की भविष्य की योजनाएँ बनाई जा सकेंगी व अनुप्रयोगों को हिन्दी जालपता सक्षम बनाया जा सकेगा.

मैंने कुछ जांच परख की हैं, जिन्हें आप यहाँ पर देख सकते हैं. कुछ इसी तरीके से आप भी यह जांच-परख कर सकते हैं व अपने अनुभवों को साझा कर सकते हैं.

इसके लिए या तो आप इसी विकि पृष्ठ पर खाता खोल कर अपना अनुभव लिख दें या फिर मुझे ईमेल से भेज दें या फिर यहीं पर टिप्पणी के माध्यम से बता दें. आपके अनुभवों को आपके नाम के साथ इस पृष्ठ पर जोड़ दिया जाएगा. आपके समय के लिए आपको अग्रिम धन्यवाद.

 

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COMMENTS

BLOGGER: 14
  1. इऩटऱनेट पर हिन्दी देखकर अचछा लगता है
    गुगल ने हिन्दी सऱच लौऩच किया हे और साथ ही
    गोस्टटस ने हिन्दी टूल लौऩच किया हे
    आप एक बडा वाणिज्यिक साइट का मालिक हो या एक छोटा हॉबि साइट का परिचालक,
    गोस्टटस आपको आपके साइट/ब्लाग के ट्रैफिक के बारे मे ठोस परिसंख्यान भेज सकती है।
    मुफ्त और व्यवसायिक सेवा के बीच चुनने के लिये देखें
    http://gostats.in

    जवाब देंहटाएं
  2. रवि जी,
    बहुत ही बेहतरीन काम, इसके लिए आपको साधुवाद। अगर यह संभव हो सके कि वेब यूआरएल और ईमेल देवानागरी में बनने लगे तो यह नेट की दुनिया में बड़ी क्रांति होगी। लेकिन आपने जितने भी लिंक्स इस पोस्ट पर दिए हैं हमारे यहां उनमें से कोई भी नहीं खुल रहा है। और दूसरा ये कि मुझे लगता है कि उससे भी पहले हमारी जरूरत हिन्दी की लिपि में एकरूपता लाने की हो। जैसे कोई यूनिकोड में काम कर रहा है तो कोई और किसी और फोन्ट में। अब हम लोग तो आज भी हिन्दी में आनलाइन कम्पोजिंग से काम चला रहे हैं।
    सबसे पहले नेट पर हिन्दी (देवनागरी) की एकरुपता को लाया जाए तो नेट पर हिन्दी का प्रचलन काफी आसान और व्यापक होगा। कुछ हिन्दी के चिट्ठे तो दिख भी नहीं रहे हैं वहां पर शब्दों की जगह डॉट और बाक्स दिखने लगते हैं पहले हमें इन सब समस्याओं से भी निपटने की कोशिश करनी चाहिए।
    पर नो डाउट आप जो काम कर रहे हैं वो नेट पर हिन्दी को आगे ले जाने में बहुत ज्यादा मदद कर रहा है और हम जैसे लोग जो आज मजे से अंतर्जाल की दुनिया को हिन्दी की नजर से देख रहे हैं वो शायद आप जैसे कुछेक हिन्दी प्रेमियों की वजह से ही संभव है। वरना हम जैसे नॉन टेक्निकल लोगों के लिए यह संभव नहीं।
    पुन आपके काम और कुछ नया करने की कोशिश पर शुक्रिया।

    जवाब देंहटाएं
  3. w3c.org द्वारा युनिकोडित यूआरएल को भी स्वीकार किया जाने लगा है, लेकिन .(डॉट) के पहले के शब्द तक आंशिक रूप में। .com, .in(राष्ट्र का नाम), .org, .edu, .mil आदि एक्सटेन्शनों को ज्यों का त्यों Basic Latin में रखना ही उचित माना गया है। अर्थात् "रविरतलामी.com" में .com सिर्फ Basic Latin script में ही रहे।

    पहला सवाल तो यह उठता है कि इनका हिन्दी अनुवाद करेंगे आप या सिर्फ देवनागरी लिप्यन्तरण? दूसरा सवाल यह उठता है कि यदि विश्व की सैंकड़ों युनिकोडित भाषाओँ/लिपियों में लोग एक्सटेंशन भी देने लगे तो वह वेबसाइट किस संवर्ग (category) का है, यह कैसे पहचानेंगे? इनके लिए मानकीकरण कौन निर्धारित करेगा? कई लोग तो भूमण्डलीय एकता अखण्डता के लिए यह प्रयास कर रहे हैं, समग्र विश्व में एक ही सर्वमान्य सर्वसुलभ, सबसे सरल, सबसे समर्थ लिपि का प्रचलन होना चाहिए।

    जवाब देंहटाएं
  4. बेनामी6:34 pm

    मैं कई दिनो से यही सोच रहा था की हम कैसे अपना योगदान दे सकते है? आपने राह दिखा दी :)

    जालपतों का विभिन्न लिपियों में होना कहीं इसकी विकास गति न रोक दे. मेरे विचार भी कुछ कुछ हरिरामजी से मिलते झुलते है.

    जवाब देंहटाएं
  5. उत्तम कार्य की अच्छी जानकारी. आभार.

    जवाब देंहटाएं
  6. बेनामी2:48 am

    हरिराम जी आपने सही फ़रमाया है. इस वक्त रविरतलामी.com जैसे डोमेन उपलब्द हैं लेकिन शायद कम लोगो को इसकी जानकारी है . ICANN इस वक्त इन डोमेन को पूर्णतया लोकल करना चाहता है और प्रयासरत है. हो सकता है .com <=>alias हो जाए .कॉम से.

    वैसे मुझे देख कर आश्चर्य होता है की हिन्दी ब्लोग्गेर्स अपने महल के द्वार की नेम प्लेट अंग्रजी में क्यों लिखते हैं? लेकिन यह निश्चय ही बदलेगा ऐसा मेरा मानना है. वैसे गूगल के ट्रांस्लितेरेशन टूल ने मुझे हिन्दी में लिखना तो सिखा दिया.

    राजेश

    जवाब देंहटाएं
  7. वैसे मुझे देख कर आश्चर्य होता है की हिन्दी ब्लोग्गेर्स अपने महल के द्वार की नेम प्लेट अंग्रजी में क्यों लिखते हैं?

    राजेश जी, आपकी उत्कंठा स्वाभाविक है. आज भले ही यह सुविधा उपलब्ध है और प्रायः सभी को हिन्दी में देवनागरी मे ही नाम रखना चाहिए, परंतु जब हमने शुरूआत की थी तो उस समय ब्लॉगर में तथा ब्राउजरों में ब्लॉग शीर्षकों को देवनागरी में देखने दिखाने में तमाम दिक्कतें थीं. और इसी लिए इस चिट्ठे पर भी इसका पुराना रोमन नाम चिपका हुआ है. और, नाम तो नाम है - एक बार नाम चल गया तो चल गया!

    जवाब देंहटाएं
  8. रवि जी नमस्कार,

    कभी http://रामचन्द्रमिश्र.net पर भी पधारिये।
    कहिये तो आपके लिये http://रविरतलामी.com
    आरक्षित करा दें।

    राम चन्द्र मिश्र

    जवाब देंहटाएं
  9. मिश्र जी, धन्यवाद. आपकी दी गई कड़ी पर क्लिक करने पर सर्वर नाट फाउंड एरर आता है - जबकि कड़ी को ब्राउजर पर कॉपीपेस्ट करने पर खुल जाता है. और यही उद्देश्य है इस परीक्षण का. अनुप्रयोगों को आईडीएन कम्पायलेंट बनाना.

    जवाब देंहटाएं
  10. रवि जी, आप भी क्या बात कर रहे हैं...
    फ़ायर फॉक्स मे क्लिक करने पर यू आर एल बदल जाता है, पर पेज खुल जाता है,
    ऑपेरा मे यू आर एल भी http://रामचन्द्रमिश्र.net दिखाता है,
    बस इन्टरनेट एक्स्प्लोरर मे ही समस्या है।

    जवाब देंहटाएं
  11. बेनामी3:51 am

    रवि जी आपने बिल्कुल सही लिखा है. यह तो आप जैसे लोगो की बहुत हिम्मत वाली बात ही है की शुरू में कुछ ना होते हुए भी इंटरनेट पे हिन्दी की लौ आप ने जगाई. इस बात पे हार्दिक बधाई.

    हिन्दी की तो बदकिस्मती ही है की इंटरनेट ताल्लुक अनुप्रोयोग अभी तक हिन्दी को नज़रंदाज़ करते रहे हैं (बराबरी कीजिये जापानी, चीनी, रूसी और अन्य भाषाओ से जिनको हरदम इंटरनेट अनुप्रोगो में उप्युक्क्त स्थान मिलता रहा है). माइक्रोसॉफ्ट ने आज तक भी हिन्दी को बैसाखी पे रखा हुआ है लिपि के सहारे अपने अनुप्रोगो में. यहाँ तक की ब्राउजर भी पूर्णतया हिन्दी में नही है जबकि अन्य भाषाओ में है. हालाकि यह स्तिथि तेजी से बदल रही है.

    IDNs का इंटरनेट पे आगाज़ हो चुका है. अभी तक यह ठंडे बसते में इसलिए थे क्यों की कोई भी ब्राउजर सप्पोर्ट नही था. IE7 जो इसी साल लॉन्च हुआ है IDN compliant है पहेली बार. ICANN भी इसी दिशा में काम कर रहा है. इसीलिए ICANN को हमारी तरफ़ से जितना फीडबैक मिलेगा उतना अच्छा होगा. गौर फर्मयिये की चीनी भाषा की तरफ़ से कितना फीडबैक जा रहा है.

    राम चन्द्जी आपका IDN देख कर बहुत अच्छा लगा. उसमें कुछ कंटेंट और जोडीये. आपका URL नही बदल रहा है बस punycode में कनवर्ट हुआ है. भविष्य में ऐसा नही होगा और URL unicode में ही दिखेगा.

    राजेश

    जवाब देंहटाएं
  12. बेनामी2:41 pm

    ऑपेरा के हिन्दी भाषी ब्राउजर में सम्बन्धित कड़ीयों को खोला जा सकता है, साथ ही http://उदाहरण.परीक्षा/वार्ता:मुख्य_पृष्ठ पर दी गई तीनों कड़ीयाँ भी मजे से खुल रही है.

    इंटरनेट एक्सप्लॉरर-6 इसका समर्थन नहीं करता.

    फायर फोक्स में भी तीनो कड़ीयाँ खुल रही हैं.

    जवाब देंहटाएं
  13. kamal ka kaaam hai sahab aap tu kubh liktai hai.....blogging ko ek nai disha aap dai rahai hai hum jasai bacchai bhi aap sai bahut kuch seekh hi lagai...lakin hindi main kasai type karo sir ji.

    जवाब देंहटाएं
  14. इरशाद जी, आप इस कड़ी में देखें आपको हिन्दी लिखने के बहुत से औजार मिलेंगे. ट्यूटोरियल भी.
    http://raviratlami.blogspot.com/2007/02/how-to-write-in-hindi.html

    जवाब देंहटाएं
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