विश्व की प्रथम ब्लॉगज़ीन निरंतर के ताज़े अंक में पढ़िए तकनॉलाजी से लेकर सम-सामयिक विषयों पर एक से बढ़कर एक बेहतरीन आलेख. निरंतर - विश्व क...
विश्व की प्रथम ब्लॉगज़ीन निरंतर के ताज़े अंक में पढ़िए तकनॉलाजी से लेकर सम-सामयिक विषयों पर एक से बढ़कर एक बेहतरीन आलेख.
निरंतर - विश्व की प्रथम ब्लॉगज़ीन में पढ़ें मेरे ये दो आलेख...
विकिलीक्स : इंटरनेट पर सैद्धांतिक (सविनय) अवज्ञा आंदोलन की नई गांधीगिरी?
तमाम विश्व के हर क्षेत्र के स्वयंसेवी सम्पादकों के बल पर मात्र कुछ ही वर्षों में विकिपीडिया आज कहीं पर भी, किसी भी फ़ॉर्मेट में उपलब्ध एनसाइक्लोपीडिया में सबसे बड़ा, सबसे वृहद एनसाइक्लोपीडिया बन चुका है. कुछेक गिनती के उदाहरणों को छोड़ दें तो इसकी सामग्री की वैधता पर कहीं कोई प्रश्नचिह्न नहीं लगा. इसी की तर्ज पर एक नया प्रकल्प प्रारंभ किया जाने वाला है विकिलीक्स.
विकिलीक्स तकनीक में तो भले ही विकिपीडिया के समान है - विकि आधारित तंत्र पर कोई भी उपयोक्ता इसमें अपनी सामग्री डाल सकेगा, परंतु इसकी सामग्री पूरी तरह अलग किस्म की होगी. इसमें हर किस्म के, बिना सेंसर किए वे गोपनीय दस्तावेज़ हो सकेंगे जिन्हें सरकारें और संगठन अपने फ़ायदे के लिए आम जन की पहुँच से दूर रखती हैं. यही विकिलीक्स का मूल सिद्धान्त है.
आगे पढ़ें >>सुंदरलाल बहुगुणा से एक मुलाकात :
पर्यावरणविद् व चिपको आंदोलन के प्रणेता सुंदरलाल बहुगुणा पिछले दिनों रतलाम प्रवास पर थे। जनशिक्षण मंच में पर्यावरण विषय पर उनका व्याख्यान था। इस दौरान उन्होंने पर्यावरण डाइजेस्ट नामक पत्रिका के इंटरनेट संस्करण का लोकार्पण भी किया तथा जालघर की अपने तरह की अकेली व पहली चिट्ठा-पत्रिका निरंतर का अवलोकन भी किया। इस अवसर पर निरंतर के लिए पर्यावरण विषयों पर सुंदरलाल बहुगुणा से खास बातचीत की निरंतर के वरिष्ठ संपादक रविशंकर श्रीवास्तव ने। संवाद में प्रस्तुत है उसी बातचीत के कुछ अंश:
आप चिपको आंदोलन के प्रणेता रहे हैं। कश्मीर से कोहिमा तक वन को बचाने के लिए आपने गंभीर आंदोलन चलाए हैं। अपनी इस यात्रा के बारे में कुछ प्रकाश डालेंगे?
मनुष्य प्रकृति को अपनी निजी संपत्ति मानने की भूल कर बैठा है तथा इसके अंधाधुंध दोहन की वजह से संसार में अनेक विसंगतियाँ और समस्याएँ उत्पन्न हो रही हैं। प्रकृति के असंतुलन से मौसम का चक्र ही बदल गया है नतीजतन दुनिया के अनेक हिस्सों में प्राकृतिक प्रकोप बढ़ चला है। प्रकृति को बचाने के लिए प्रकृति को प्रकृति के पास वापस रहने देने के लिए ही चिपको आंदोलन की सर्जना की गई थी। संतोष की बात यह है कि देश में ही नहीं तमाम विश्व में इस मामले में जागृति आई है। वृक्षों को काटने के बजाए वृक्षों की खेती करना जरूरी है यह बात बड़े पैमाने पर महसूस की जा रही है और इस क्षेत्र में प्रयास भी किए जा रहे हैं।
टिहरी बाँध के निर्माण को रोकने के लिए आपका दो दशकों का लंबा, गहन आंदोलन भी फलीभूत नहीं हो पाया। आपका यह आंदोलन असफल क्यों हो गया?
ऐसा मानना तो अनुचित होगा। जन जागृति तो आई है कि बड़े बाँध नहीं बनेंगे। बड़े बाँध स्थाई समस्याओं के अस्थाई हल हैं। नदी का पानी हमेशा प्रवाहमान रहता है। बाँध कुछ समय बाद गाद से भर जाते हैं और मर जाते हैं। दूसरी बात यह है कि बाँध जिंदा जल को मुर्दा कर देते हैं। पानी के स्वभाव पर अध्ययन से यह बात स्पष्ट हुई है कि रुके हुए जल में मछलियों व अन्य जीव जंतुओं, जिनका जीवन प्रवाहमान पानी के अंदर होता है उनके स्वभाव में विपरीत व उलटे परिवर्तन हुए हैं। बड़े बाँध एक दिन अंततः सर्वनाश का ही कारण बनेंगे।
और अंत में, चिट्ठा-चर्चा में पूर्वप्रकाशित व्यंज़ल:
कटा ली हमने अपने अरमानों की पतंग
कुछ इस तरह स्वयं ही बन गए अपंग
अहसास तो हो चुके हैं जाने कब से खार
फिर क्या कर लेगा अपने तीरों से अनंग
कैसे करें शिकवा कि हमें कुछ नहीं मिला
ये दुनिया तो उसकी है जो है नंग धड़ंग
साथ चलने का आमंत्रण यूँ तो बहुत था
कुछ तो हमें ही बहुत पसंद था असंग
चार पंक्ति जमा के हो रही है भ्रांति रवि
सोचते हैं अब हम भी हो गए हैं अखंग**-**
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