इंटरनेट के जरिए आपके करोड़पति बनने में देर नहीं...

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. बस, एक नए आइडिया - नए, नायाब विचार का सवाल है बाबा! **-** विचारवान मनुष्य ही धनवान होता है. इस कहावत को इंटरनेट ने पूरी तरह सत्य सिद्ध कर ...

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बस, एक नए आइडिया - नए, नायाब विचार का सवाल है बाबा!


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विचारवान मनुष्य ही धनवान होता है. इस कहावत को इंटरनेट ने पूरी तरह सत्य सिद्ध कर दिया है. अगर आपके पास विचार हैं, तो बस ले आइए उसे इंटरनेट पर. अगर विचार नया सा, नायाब हो तो क्या कहने. आपका यह नया विचार देखते-देखते आपको रंक से राजा बना सकता है, दरिद्र से करोड़पति, अरब-खरब-नील-पद्म-शंखपति बना सकता है.

और, हम कोई पुरानी, हॉटमेल वाली बात नहीं करेंगे कि किस तरह सबीर भाटिया के दिमाग में इंटरनेट के जरिए मुफ़्त ईमेल सेवा प्रदान करने का विचार आया, और उनकी उधार मांग कर शुरू की गई कंपनी को माइक्रोसॉफ़्ट ने 400 मिलियन डॉलर में कुछ ही वर्षों पश्चात् खरीद लिया.

और, ऐसे तो कई उदाहरण हैं - ताज़ातरीन राइटली जिसे गूगल ने खरीदा और फ़्लिकर, जिसका बीटा संस्करण ही अभी ढंग से निकाला नहीं गया था, और जिसे याहू! ने खरीदा. ये इंटरनेट अनुप्रयोग भी लाखों डालर में खरीदे गए.

इस दफा हम बात करेंगे - सिर्फ एक विचार के जरिए, एक नायाब खयाल के जरिए, इंटरनेट से लाखों कमाना - वह भी बिना कोई पूंजी लगाए, बिना कोई सेवा प्रदान किए, बिना किसी अनुप्रयोग को जारी किए, पूरी ईमानदारी से...

क्या यह संभव है?

हाँ. यह संभव है. और ऐसे कई-कई उदाहरण हैं. दो ताज़ा-तरीन उदाहरण आपके सामने हैं.

1 मिलियन डॉलर जाल पृष्ठ का विचार

विल्टशायर, इंग्लैंड के रहने वाले एलेक्स ट्यू नामक 21 वर्षीय निर्धन विद्यार्थी को अपने कालेज की पढ़ाई के लिए धन की आवश्यकता थी. उसके सामने विकल्प था - बैंक से आसानी से मिलने वाले ऋण के जरिए अपनी पढ़ाई का खर्च पूरा करे और फिर आने वाले 15-20 साल तक उस ऋण को किश्तों में चुकाता रहे.

उसे यह विकल्प नहीं जँचा.

वह निर्धन था. परंतु विचारों से नहीं. उसके जेहन में कई विचार आए. अंततः एक नायाब सा विचार उसके जेहन में कौंधा. और यह नायाब विचार न सिर्फ उसके कालेज की पूरी पढ़ाई का खर्चा दिला गया, न सिर्फ उसे करोड़पति बना गया, बल्कि इंटरनेट के इतिहास में उसका नाम दर्ज करा गया.

क्या विचार किया था उसने?

कोई जटिल विचार भी नहीं था वह.

उसने सादा सा विचार किया. इंटरनेट पर अपने घर-पृष्ठ का नाम उसने दिया - मिलियन डॉलर होम पेज. फिर उसने इस पृष्ठ को 100 पिक्सेल खण्ड (10x10 पिक्सल के) के 10000 खण्डों को (कुल एक मिलियन यानी दस लाख पिक्सल) प्रति पिक्सेल 1 डालर में बेचने का निर्णय किया ताकि उससे मिले पैसों को वह अपनी पढ़ाई में लगा सके, और हो सके तो कुछ कमाई भी. ध्यान रहे कि आपके सामान्य कंप्यूटर स्क्रीन पर आमतौर पर 800x600=240000 पिक्सेल होते हैं. इन पिक्सलों को कंपनियाँ या कोई भी व्यक्ति खरीद कर अपना विज्ञापन उतने आकार में लगा सकता था. यह पृष्ठ कम से कम 5 वर्षों के लिए उपलब्ध रखने की गारंटी दी गई थी.

देखते देखते ही इस पृष्ठ पर जगह पाने की व्यक्तियों और कंपनियों में होड़ लग गई. कंपनियों को अपना विज्ञापन देने का सबसे सस्ता साधन यह नजर आया तो चर्चा में बने रहने के लिए व्यक्तियों को. अब एलेक्स ने अपने प्रति पिक्सेल 1 डालर वाली जगह को बोली लगाकर बेचना प्रारंभ कर दिया. आखिरी पिक्सेल भरते तक तो आखिरी के 1000 पिक्सेल को तो उसने 38100 डॉलर में ई-बे के जरिए बेचा!

उसका यह विचार न सिर्फ उसकी पढ़ाई का खर्चा उसे दिलवा गया, बल्कि इंटरनेट के जरिए, हींग लगे न फिटकरी , रंग चोखा कहावत को सिद्ध करता हुआ सिर्फ विचारों के जरिए वह करोड़पति (मिलियॉनेर) भी बन गया.

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आ रहा है ऐसा कोई विचार आपके दिमाग में?

2 लाल रंग के एक पेपर क्लिप के बदले मकान का विचार

मॉट्रियल, कनाडा के रहने वाले काइली मॅकडोनॉल्ड को अपने लिए स्वयं का एक घर पाने की चाहत हुई. इसे पाने सबसे आसान, सदियों पुराना व्यवसाय उसने चुना. इंटरनेट के जरिए वस्तुओं की अदला-बदली कर घर प्राप्त करना. और उसने इस काम की शुरूआत के लिए अपने पास उपलब्ध सबसे सस्ता, सबसे पास उपलब्ध वस्तु चुनी - पेपर क्लिप, जिससे उसकी उंगलियाँ खेल रही थीं - जब उसके दिमाग में यह विचार आया.

ब्लॉगस्पॉट पर मुफ़्त उपलब्ध साइट पर उसने अपने विचार को रखा. शीघ्र ही उसे अदला-बदली के प्रस्ताव आने लगे.

दस महीने से चल रहे व्यापार की कड़ी में सबसे ताज़ा प्रस्ताव उन्हें अमरीका के फ़ीनिक्स शहर में एक घर में साल भर बिना कोई किराया दिए रहने का मिला है.

मॅकडोनॉल्ड ने पिछले साल जुलाई में पहले इंटरनेट पर अपने पेपर क्लिप के बदले मछलीनुमा एक कलम का प्रस्ताव स्वीकार किया था जिसे बाद में उन्होंने उस कलम के बदले सिरामिक से बने दरवाज़े के हत्थे से बदला था. दरवाज़े के हत्थे को उन्होंने एक स्टोव से बदला, और स्टोव के बदले उन्होंने एक जेनरेटर का प्रस्ताव स्वीकार किया.

जेनरेटर को उन्होंने एक पार्टी बीयर सेट से, पार्टी बीयर सेट को स्नोमोबाइल यानी बर्फ़ पर चलने वाले स्कूटर से बदला. बर्फ़ पर चलने वाले इस स्कूटर को बदलना कठिन प्रतीत हो रहा था कि ऐसे में एक स्नोमोबाइलिंग पत्रिका ने स्कूटर के बदले कनाडा की रॉकी पर्वतमाला के साथ लगे कस्बे याक की यात्रा की व्यवस्था की. जाहिर है, इस यात्रा प्रस्ताव की तो अदला-बदली करनी ही थी ताकि मॅकडोनॉल्ड का अदला-बदली के व्यापार के जरिए, पेपर क्लिप के सहारे घर पाने का सपना साकार हो जाए. इसलिए उन्होंने यात्रा के ऑफ़र को एक सफ़ेद वैन से बदल लिया.

मॅकडोनॉल्ड का अदला-बदली का यह व्यापार जारी है. इन पंक्तियों के लिखे जाने तक मॅकडोनॉल्ड को उसके सपनों का मकान तो मिल ही गया है.

कौन जाने उन्हें सचमुच स्वयं का मकान किसी दिन मिल जाए. और हो सकता है इस अदला-बदली को वे जारी रखें तो किसी दिन अदला-बदली में अपने लिए कोई महल ही न ले आवें.

पेपर क्लिप के बदले महल?

ऐसा तुच्छ सा विचार आपके मन में पहले क्यों नहीं आया?

कोई बात नहीं. आइए विचार करते हैं. कोई न कोई नया आइडिया हमारे मन में भी क्लिक करेगा और हम भी उड़ानें भरेंगे - अपने स्वयं के जेट विमान पर.

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COMMENTS

BLOGGER: 3
  1. बस विचार मंथन जारी रखे, कभी तो मंजिल हाथ आयेगी. विश्वास से बड़ा कुछ नही.

    शुभकामनायें...

    समीर लाल

    जवाब देंहटाएं
  2. काश शेखचिल्ली जी आज के आधुनिक जमाने में पैदा हुए होते और अपने विचारों को अंतरजाल से बेचते, अवश्य ही उनका नाम भी बिल्लू और अन्य प्रसिद्ध करोड़पतियों के साथ लिया जाता!

    जवाब देंहटाएं
  3. sir ji web kaise bnaya jata hai plese replay

    जवाब देंहटाएं
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