परालौकिक अनुभव की गूँज *-*-* बात बहुत पुरानी है. तब नई नई नौकरी लगी थी. अम्बिकापुर जैसे पहाड़ी जिले के सामरी तहसील के मुख्यालय कुसमी में मेर...
परालौकिक अनुभव की गूँज
*-*-*
बात बहुत पुरानी है. तब नई नई नौकरी लगी थी. अम्बिकापुर जैसे पहाड़ी जिले के सामरी तहसील के मुख्यालय कुसमी में मेरे जैसे कोई दो दर्जन से अधिक बैचलर्स भिन्न भिन्न विभागों में कार्यरत थे. हममें से अधिकतर के कई छोटे छोटे ग्रुप थे, और हम काम के बाकी बचे समय में प्राय: मौज मस्ती करते रहते थे जिनमें शुमार होता था जंगल की सैर, तालाबों की तैर और अकसर ताश की रमी का खेल. क्योंकि तब न तो केबल था न टीवी और न ही कम्प्यूटर्स. हमारे ग्रुप में एक डाक्टर खेस, जो वहाँ के प्रायमरी हेल्थ सेंटर में पदस्थ थे, बड़े मस्तमौला थे और वे हर प्रकार का नशा करते थे. गाँजा, चरस, सिगरेट, तम्बाखू, शराब, हँड़िया (वहाँ की देशी शराब जो चावल को सड़ाकर और जंगली जड़ी बूटी मिलाकर तैयार की जाती है, जो पीने में थोड़ी सी खट्टी लगती है, परंतु सीधे सिर पर चढ़ती है) इत्यादि सब कुछ, और प्राय: एक साथ दो-तीन चीज़ों का नशा. सही मायनों में वे एडिक्ट थे. और अगर पहाड़ी क्षेत्र के नाते उन्हें कभी कोई नशे की चीज़ नहीं मिलती थी, तो वे अस्पताल में उपलब्ध जिंजर (कंसन्ट्रेटेड इथाइल अल्कोहल जो दवाई के काम आता है) को टॉलू सोल्यूशन (खांसी की दवाई) के साथ मिलाकर पीते थे.
एक दिन हमारे ग्रुप के लोगों ने, जिसमें जाहिर है, डाक्टर खेस (जो कि क्रिश्चियन थे, अंग्रेजी में स्पेलिंग Xess) भी शामिल थे, ठंडी रात में एक पहाड़ी को कॉन्कर करने का प्रोग्राम बनाया जो कि मेरे ऑफ़िस के ठीक पीछे था. जम कर सर्दी पड़ती थी वहाँ. और हवा भी इतनी ठंडी चलती रहती थी कि मई-जून के गर्मी के दिनों में भी वहाँ के नेटिव लोग मोटे-मोटे लबादा (जिसे वे बोरकी कहते थे) ओढ़े रहते थे. बहरहाल हम सब रात दस बजे रवाना हुए. पहाड़ी के ऊपर तक पहुँचते पहुँचते एक बजने को हो रहा था. ठंड को काटने के लिए सबने भूत-प्रेतों की कहानियाँ सुनानी शुरू कर दी थीं, और साथ लाए सिगरेट-शराब का दौर तो साथ साथ चल ही रहा था. किसी ने कहानी सुनाया था कि वहाँ की किंवदंती के अनुसार जिस पहाड़ी पर हम चढ़ रहे थे, वहाँ के शीर्ष पर एक प्रेत रहता है जिसने कई जानें भी ले ली हैं. पहाड़ी के दूसरे सिरे पर अस्पताल का मुर्दाघर था जहाँ डाक्टर खेस प्राय: पोस्टमॉर्टम करते थे. उन्होंने भी मुर्दाघर के मुर्दों के साथ के अपने अनुभव की कई झूठी सच्ची, परंतु जीवंत कहानी सुनाई. पहाड़ी के सिरे तक पहुँचते-पहुँचते डाक्टर खेस द्वारा दी गई सिगरेट के कई कशों के बावजूद मेरे जिस्म में सिहरन दौड़ रही थी और मेरे मन में अजीब से अनुभव जागृत हो रहे थे. मुझे लगा कि जैसे मुझे ठंड जरा ज्यादा ही लग रही है.
अचानक ही मेरे हाँथ पाँव काँपने लगे और मेरे मुँह के भीतर से अनियंत्रित लार बहने लगी. दिमाग ने काम करना बन्द कर दिया और मैं गिर पड़ा. मेरे साथी दौड़ते हुए मेरे पास चले आए. एक ने मुझे उठाने की कोशिश की परंतु वह असफल रहा. मेरे हाथ पैर शिथिल हो गए थे. एकाध मिनट के लिए मुझे लगा कि यह दौरा क्षणिक था और कहीं कुछ नहीं हुआ है. परंतु फिर दूसरे ही पल फिर अजीब अहसास होने लगा और लगने लगा कि मैं मरने वाला हूँ. मुझे कोई शक्ति, शायद पहाड़ी का भूत मुझे अपने पास बुला रहा है. मेरा दिमाग प्रत्येक क्षण-दो क्षण में रह रह कर अजीब चीजें सोच रहा था. मैंने बदहवासी में बड़बड़ाना चालू कर दिया कि अब मैं मरने वाला हूँ और मेरी लाश यहीं कहीँ दफन कर दी जाए. मैं अंधेरे में दोस्तों से कागज़ कलम की माँग करने लगा ताकि मैं अपना वसीयत कर सकूँ और यह भी लिख सकूँ कि मेरे मृत्यु में किसी का कोई हाथ नहीं है, अन्यथा मेरे ये साथी बिला वजह परेशान होते. इस बीच मैं कब बेहोश हुआ, पता ही नहीं चला.
जब मुझे होश आया तो मैंने पाया कि मैं भूतों से घिरा हुआ हूँ. कोई मेरे पैर में मालिश कर रहा था तो कोई सिर पर. मैंने चिल्लाने की बेतरह कोशिश की, परंतु मेरे मुँह से आवाज़ ही नहीं निकली. डर के कारण मेरी घिग्घी बंध गई थी.
मुझे कुछ आवाज़ें सुनाई दी. एक भूत कह रहा था- इसे कुछ नहीं हुआ है यार. लगता है भूल से इसे मैंने अपनी गाँजा वाली सिगरेट दे दी थी. थोड़ा सा नशा चढ़ गया है इसे. पंद्रह-बीस मिनट में ठीक हो जाएगा. मुझे उस भूत की आवाज थोड़ी पहचानी सी लगी. वह डॉक्टर खेस की आवाज़ थी.
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बात बहुत पुरानी है. तब नई नई नौकरी लगी थी. अम्बिकापुर जैसे पहाड़ी जिले के सामरी तहसील के मुख्यालय कुसमी में मेरे जैसे कोई दो दर्जन से अधिक बैचलर्स भिन्न भिन्न विभागों में कार्यरत थे. हममें से अधिकतर के कई छोटे छोटे ग्रुप थे, और हम काम के बाकी बचे समय में प्राय: मौज मस्ती करते रहते थे जिनमें शुमार होता था जंगल की सैर, तालाबों की तैर और अकसर ताश की रमी का खेल. क्योंकि तब न तो केबल था न टीवी और न ही कम्प्यूटर्स. हमारे ग्रुप में एक डाक्टर खेस, जो वहाँ के प्रायमरी हेल्थ सेंटर में पदस्थ थे, बड़े मस्तमौला थे और वे हर प्रकार का नशा करते थे. गाँजा, चरस, सिगरेट, तम्बाखू, शराब, हँड़िया (वहाँ की देशी शराब जो चावल को सड़ाकर और जंगली जड़ी बूटी मिलाकर तैयार की जाती है, जो पीने में थोड़ी सी खट्टी लगती है, परंतु सीधे सिर पर चढ़ती है) इत्यादि सब कुछ, और प्राय: एक साथ दो-तीन चीज़ों का नशा. सही मायनों में वे एडिक्ट थे. और अगर पहाड़ी क्षेत्र के नाते उन्हें कभी कोई नशे की चीज़ नहीं मिलती थी, तो वे अस्पताल में उपलब्ध जिंजर (कंसन्ट्रेटेड इथाइल अल्कोहल जो दवाई के काम आता है) को टॉलू सोल्यूशन (खांसी की दवाई) के साथ मिलाकर पीते थे.
एक दिन हमारे ग्रुप के लोगों ने, जिसमें जाहिर है, डाक्टर खेस (जो कि क्रिश्चियन थे, अंग्रेजी में स्पेलिंग Xess) भी शामिल थे, ठंडी रात में एक पहाड़ी को कॉन्कर करने का प्रोग्राम बनाया जो कि मेरे ऑफ़िस के ठीक पीछे था. जम कर सर्दी पड़ती थी वहाँ. और हवा भी इतनी ठंडी चलती रहती थी कि मई-जून के गर्मी के दिनों में भी वहाँ के नेटिव लोग मोटे-मोटे लबादा (जिसे वे बोरकी कहते थे) ओढ़े रहते थे. बहरहाल हम सब रात दस बजे रवाना हुए. पहाड़ी के ऊपर तक पहुँचते पहुँचते एक बजने को हो रहा था. ठंड को काटने के लिए सबने भूत-प्रेतों की कहानियाँ सुनानी शुरू कर दी थीं, और साथ लाए सिगरेट-शराब का दौर तो साथ साथ चल ही रहा था. किसी ने कहानी सुनाया था कि वहाँ की किंवदंती के अनुसार जिस पहाड़ी पर हम चढ़ रहे थे, वहाँ के शीर्ष पर एक प्रेत रहता है जिसने कई जानें भी ले ली हैं. पहाड़ी के दूसरे सिरे पर अस्पताल का मुर्दाघर था जहाँ डाक्टर खेस प्राय: पोस्टमॉर्टम करते थे. उन्होंने भी मुर्दाघर के मुर्दों के साथ के अपने अनुभव की कई झूठी सच्ची, परंतु जीवंत कहानी सुनाई. पहाड़ी के सिरे तक पहुँचते-पहुँचते डाक्टर खेस द्वारा दी गई सिगरेट के कई कशों के बावजूद मेरे जिस्म में सिहरन दौड़ रही थी और मेरे मन में अजीब से अनुभव जागृत हो रहे थे. मुझे लगा कि जैसे मुझे ठंड जरा ज्यादा ही लग रही है.
अचानक ही मेरे हाँथ पाँव काँपने लगे और मेरे मुँह के भीतर से अनियंत्रित लार बहने लगी. दिमाग ने काम करना बन्द कर दिया और मैं गिर पड़ा. मेरे साथी दौड़ते हुए मेरे पास चले आए. एक ने मुझे उठाने की कोशिश की परंतु वह असफल रहा. मेरे हाथ पैर शिथिल हो गए थे. एकाध मिनट के लिए मुझे लगा कि यह दौरा क्षणिक था और कहीं कुछ नहीं हुआ है. परंतु फिर दूसरे ही पल फिर अजीब अहसास होने लगा और लगने लगा कि मैं मरने वाला हूँ. मुझे कोई शक्ति, शायद पहाड़ी का भूत मुझे अपने पास बुला रहा है. मेरा दिमाग प्रत्येक क्षण-दो क्षण में रह रह कर अजीब चीजें सोच रहा था. मैंने बदहवासी में बड़बड़ाना चालू कर दिया कि अब मैं मरने वाला हूँ और मेरी लाश यहीं कहीँ दफन कर दी जाए. मैं अंधेरे में दोस्तों से कागज़ कलम की माँग करने लगा ताकि मैं अपना वसीयत कर सकूँ और यह भी लिख सकूँ कि मेरे मृत्यु में किसी का कोई हाथ नहीं है, अन्यथा मेरे ये साथी बिला वजह परेशान होते. इस बीच मैं कब बेहोश हुआ, पता ही नहीं चला.
जब मुझे होश आया तो मैंने पाया कि मैं भूतों से घिरा हुआ हूँ. कोई मेरे पैर में मालिश कर रहा था तो कोई सिर पर. मैंने चिल्लाने की बेतरह कोशिश की, परंतु मेरे मुँह से आवाज़ ही नहीं निकली. डर के कारण मेरी घिग्घी बंध गई थी.
मुझे कुछ आवाज़ें सुनाई दी. एक भूत कह रहा था- इसे कुछ नहीं हुआ है यार. लगता है भूल से इसे मैंने अपनी गाँजा वाली सिगरेट दे दी थी. थोड़ा सा नशा चढ़ गया है इसे. पंद्रह-बीस मिनट में ठीक हो जाएगा. मुझे उस भूत की आवाज थोड़ी पहचानी सी लगी. वह डॉक्टर खेस की आवाज़ थी.
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बहुत बढ़िया! इसे कहते हैं दोस्ती। हम-पियाला, हम-निवाला, हमसफर, हम-जिन्न हों।
जवाब देंहटाएंइस टिप्पणी को एक ब्लॉग व्यवस्थापक द्वारा हटा दिया गया है.
जवाब देंहटाएंइस टिप्पणी को एक ब्लॉग व्यवस्थापक द्वारा हटा दिया गया है.
जवाब देंहटाएंरवि भाई,
जवाब देंहटाएंऐसे पारलौकिक अनुभव तो जाने कितने लोग रोज ही करते हैं, आपने भी किए धोखे से ही सही, मुबारकबाद।
मैंने आपका पूरा चिट्ठा पढ़ा क्योंकि आपने अम्बिकापुर का जिक्र किया जो मेरा गृहनगर है। दिल्ली में रहते 16 साल हो गए हैं और वहाँ के बारे में कुछ जानकर अच्छा लगा। अपने वहाँ के कुछ और अनुभव बताइये।
बहुत बदिया लगा जी आपका पारलौकिक अनुभव.... एक दो बार हम भी कर बैठे हैं.
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